New Delhi, Jul 13 : कांग्रेस के पास अब भी कुछ प्रगतिशील बौद्धिक नेता बचे हुए हैं! इनमें ज्यादातर कुलीन और उच्चवर्णीय हैं। कुछ विदेश में पढ़े हैं तो कुछ विदेश-पलट हैं! ये विद्वान तो हैं पर इनके पास हिंदुस्तानी जुबान और ठेठ देसी मुहावरे नहीं हैं! इसलिए सही बोलने की कोशिश में अक्सर गलत बोल जाते हैं! मणिशंकर अय्यर और शशि थरूर इसके ‘ज्वलंत’ उदाहरण हैं! मनुवादी-संघी धारा पर ये जैसे ही निशाना साधते हैं, वह पलटकर कांग्रेस की तरफ आ जाता है!
विचार प्रेषण और कम्युनिकेशन के मोर्चे पर राहुल गांधी और कांग्रेस की असल परेशानी यही है! ‘मनुवादी-संघी-कारपोरेट तंत्र’ से आजिज जनता के बीच देसी जुबां और मुहावरे में बोलने वाले समझदार और तरफदार वक्ता या संप्रेषक कांग्रेस के पास बहुत कम हैं!
इस बार भी कुछ वैसा ही होता नजर आ रहा है!
सच पूछिए तो थरूर ने सैद्धांतिक रूप से भी कुछ भी ग़लत नहीं कहा! पर थरूर या अय्यर जैसे लोगों के पास एकेडमिक सेमिनारों की भाषा है। आम जन को समझाने वाली भाषा नहीं है। ‘हिंदू पाकिस्तान’ का जुमला हमारे-आपके लिए ठीक और समझने लायक है। पर जब इस देश में टीवी चैनलों के जरिए यह ब्रिगेड इस कदर चीजों को टृिइवियलाइज करने में जुटी है तो ‘हिंदू पाकिस्तान’ के अर्थ का अनर्थ क्यों नहीं करा सकती! आज सुबह मेरे मुहल्ले के पार्क में कई भाजपा-विरोधी लोगों ने भी थरूर की भाषा को ग़लत ठहराया। अब हम-आप उन्हें समझाते रहें।
कुछ समय पहले मणिशंकर ने क्या कहा था: ‘नीच!’ उसे जोड़ दिया गया जाति से। लेकिन मणिशंकर ने ‘निकृष्ट’ या ‘निम्न स्तरीय’ कहा होता तो ‘नगपुरिया पंडे’ भी उनके कहे के अर्थ का अनर्थ नहीं कर पाते!
किसी उच्च स्तरीय सेमिनार में बोलने और आम जनता के बीच बोलने के बीच बड़ा फर्क होता है, यारो!
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