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‘भाजपा असम में जो कर रही है, वह ठीक कर रही है, हम बेवकूफ बन गए’

भाजपा सरकार असम में हिंदू सांप्रदायिकता का नंगा नाच रचा रही है। अब तीन दिन बाद कांग्रेस के नौसिखिया नेता को बुजुर्ग कांग्रेसियों ने समझाया कि बेटा, तुम्हारा यह दांव उल्टा पड़ रहा है।

New Delhi, Aug 07 : कांग्रेस पार्टी देश की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी है लेकिन उसके नेता कितने भौंदू सिद्ध हो रहे हैं ? उनके भौंदूपन ने सारी विरोधी पार्टियों की हवा निकाल दी है। कल तक कांग्रेस असम में नागरिकता के सवाल पर भाजपा सरकार की भर्त्सना कर रही थी। राहुल गांधी और ममता बेनर्जी सुर में सुर मिलाकर राग अलाप रहे थे। नाम लिये बिना दोनों यह कहने की कोशिश कर रहे थे कि भाजपा सरकार ने जिन 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना है, वे सब मुसलमान हैं।

अर्थात भाजपा सरकार असम में हिंदू सांप्रदायिकता का नंगा नाच रचा रही है। अब तीन दिन बाद कांग्रेस के नौसिखिया नेता को बुजुर्ग कांग्रेसियों ने समझाया कि बेटा, तुम्हारा यह दांव उल्टा पड़ रहा है। अगर तुम्हारे बयान से प्रभावित होकर असम और बंगाल के कुछ मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के साथ आ भी गए तो सारे देश के हिंदू मतदाता भाजपा की तरफ खिसक जाएंगे। ध्रुवीकरण हो जाएगा।

यही बात कार्यसमिति में विशेष आमंत्रित असमिया नेताओं ने कही। उन्होंने यह भी बताया कि नागरिकों की तकनीकी भूल-चूक के कारण 40 लाख में बहुत-से हिंदुओं, बंगालियों, राजस्थानियों आदि का भी पंजीकरण नहीं हो सका है। इस पर राहुल गांधी ने पल्टी खाई और कांग्रेस प्रवक्ता ने घोषित किया कि कांग्रेस सरकार ने 2005 से 2013 के बीच 82728 बांग्लादेशियों को अवैध घुसपैठिए कहकर निकाल बाहर किया जबकि पिछले चार साल में भाजपा सरकार ने सिर्फ 1822 को बाहर निकाला। याने भाजपा डाल-डाल तो कांग्रेस पात-पात ! मनमोहन सिंह सरकार ने 2009 में 489 करोड़ रु. खर्च करके लोगों की नागरिकता की जांच के लिए 25000 कर्मचारी नियुक्त किए थे।

अर्थात भाजपा असम में जो कर रही है, वह ठीक कर रही है। हम बेवकूफ बन गए। हमें माफ कर दीजिए। लेकिन कांग्रेस ने कोई सबक नहीं सीखा। अब वह मुजफ्फरपुर में बच्चियों के साथ हुए बलात्कार का विरोध करते हुए सारा ठीकरा भाजपा के माथे फोड़ रही है। केंद्र की भाजपा सरकार का उससे क्या लेना-देना ? मुख्यमंत्री नीतीश ने जो भी जरुरी कार्रवाई हो सकती है वह कर दी है। अच्छा होता कि इस राक्षसी कुकर्म का विरोध करते हुए विरोधी दल सत्तारुढ़ दलों को भी शामिल करते। तब उनका विरोध सच्चा विरोध कहलाता। अभी तो वह नौटंकी-जैसा लगता है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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