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विश्व गुरु को बना रहे हैं विश्व-चेला

अब दुनिया के 100 सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का नाम जुड़वाने के लिए आप इतने बेताब हो रहे हैं कि पांच सरकारी और पांच निजी शिक्षा संस्थानों के माथे पर ‘प्रतिष्ठित’ की चिपकी लगाकर उन्हें रस्सा कुदवाएंगे ?

New Delhi, Jul 11 : आज दो खबरों ने मेरा ध्यान एक साथ खींचा। एक तो दक्षिण कोरिया के सहयोग से दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल फोन का कारखाना भारत में खुलना और दूसरा देश की छ​ह शिक्षा संस्थाओं को सरकार द्वारा ‘प्रतिष्ठित’ घोषित करना ताकि वे विश्व-स्तर की बन सकें। दोनों खबरें दिल को खुश करती हैं लेकिन उनके अंदर जरा झांककर देखें तो मन खिन्न होने लगता है। दोनों खबरों की एक-दूसरे से गहरा संबंध है।

दोनों शिक्षा से जुड़ी हैं। पांच करोड़ लोगों का यह छोटा-सा देश सवा सौ करोड़ के भारत को मोबाइल बनाना सिखाएगा ? आप डूब क्यों नहीं मरते ? आपको शर्म क्यों नहीं आती ? 70 साल आप भाड़ झोंकते रहे। नकल करते रहे। कभी कार की नकल कर ली, कभी फोन की, कभी रेल की, कभी जहाज की, कभी रेडियो की, कभी टीवी की, कभी इसकी, कभी उसकी ! अरे प्रधानमंत्रियों और शिक्षामंत्रियों, तुमने किया क्या ? इस महान राष्ट्र को, इस नालंदा और तक्षशिला के राष्ट्र को तुमने नकलचियों की नौटंकी बना दिया। तुम्हारे विश्वविद्यालयों ने कौनसे मौलिक अनुसंधान किए हैं, जिन्होंने दुनिया की शक्ल बदली हो ?

अब दुनिया के 100 सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का नाम जुड़वाने के लिए आप इतने बेताब हो रहे हैं कि पांच सरकारी और पांच निजी शिक्षा संस्थानों के माथे पर ‘प्रतिष्ठित’ की चिपकी लगाकर उन्हें रस्सा कुदवाएंगे ? इसका अर्थ भी आप समझते हैं या नहीं ? क्या इसका अर्थ यह नहीं कि पश्चिम के शिक्षा मानदंडों की नकल आप हमारे विश्वविद्यालयों से करवाएंगे ? ताकि वे उनकी पंगत में बैठने लायक बन सकें। धिक्कार है, ऐसी ‘प्रतिष्ठा’ पर! हमारे इन अधपढ़ और अनपढ़ नेताओं को शिक्षा के मामलों की बुनियादी समझ होती तो हम अपनी प्राचीन गुरुकुल पद्धति की नींव पर आधुनिक शिक्षा की ऐसी अट्टालिका खड़ी करते कि दुनिया के वे ‘सर्वश्रेष्ठ’ विवि हमारी नकल करते।

हम अध्यात्म और विज्ञान, आत्मा और शरीर, इहलोक और परलोक, अभ्युदय और निःश्रेयस, आर्य और अनार्य, गांव और शहर, गरीब और अमीर– सबके उत्थान का मार्ग दुनिया को दिखाते। भारत को ‘विश्वगुरु’ बनाने का दम भरनेवाले राष्ट्रवादी लोग उसे भौतिकतावादी दुनिया का चेला बनाने के लिए किस कदर बेताब हो रहे हैं ? उनकी लीला वे ही जानें।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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