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चुनाव से ऐन पहले नेताओं का ‘दल-बदल’, जानें क्‍यों कानून के बावजूद इन पर नहीं हो सकती कार्रवाई?

क्‍या आप जानते हैं, नेताओं के पार्टी बदलने पर रोक लगाने के मकसद से एक दल बदल विरोधी कानून बना हुआ है । लेकिन क्या अभी विधायकों और मंत्रियों पर कोई कार्रवाई हो सकती है? आगे पढ़ें ।

New Delhi, Jan 15: देश के 5 राज्‍यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही नेताओं, विधायकों और मंत्रियों के पार्टी बदलने का सिलसिला भी शुरू हो गया है । बीजेपी में तो जैसे भगदड़ सी मच गई है । सत्‍तधारी सरकार से अब तक 15 से ज्यादा विधायक और मंत्री पार्टी छोड़ चुके हैं । जाहिर है इतनी बड़ी संख्‍या में विधायकों को पलायन योगी सरकार के लिए अच्‍छी खबर नहीं है । ऊपर से इन विधायक-मंत्रियों के आरोप । ये सभी, योगी सरकार पर दलितों-पिछड़ों और समाज के अन्य वर्गों को नजरअंदाज करने का आरोप भी लगा रहे हैं । जो कि चुनाव में पार्टी के लिए गंभीर हो सकता है ।

बीएसपी से बीजेपी अब सपा
दल बदल करने वाले मंत्रियों-विधायकों में स्‍वामी प्रसाद मौर्य का नाम सबसे पहला है । मौर्य 2017 के चुनाव से पहले बीएसपी छोड़कर बीजेपी में आए थे और अब ठीक चुनाव से पहले बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए हैं । यानी 5 साल सरकार में मंत्री पद का आनंद उठाया और अब टिकट पर बन आई तो पार्टी छोड़कर कहीं और चल दिए । मौर्य ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ज्‍वॉइन कर ली है । बहरहाल सवाल ये है कि क्‍या ऐसे नेताओं पर कार्रवाई नहीं हो सकती है, वो भी तब जब देश में दल-बदल कानून मौजूद है ।

क्‍यों नहीं हो सकती कार्रवाई?
जनता ऐसे नेताओं से बखूबी परिचित है और वो दल बदल करने वाले नेताओं का ये चुनावी खेल समझती है । लेकिन इन पर कोई कार्रवाई क्‍यों नहीं होती, वो आपको बताते हैं । सबसे पहली बात ये कि जिन विधायकों और मंत्रियों ने पार्टी छोड़ी है, उनके खिलाफ पार्टी अपने स्तर पर कुछ भी नहीं कर सकती, क्योंकि अब वो नेता उनकी पार्टी का हिस्सा ही नहीं रहे हैं । दूसरा सवाल ये कि क्‍या इन पर दल-बदल कानून के तहत कोई कार्रवाई हो सकती है? तो इसका जवाब भी ना में ही है । आज तक की एक रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता से बातचीत के हवाले से लिखा गया है, चूंकि राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं, ऐसे में वहां पर विधायक और मंत्रियों के पाला बदलने पर उन्हें अयोग्य होने का खतरा भी नहीं है । इसीलिए चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर पार्टी बदलने का सिलसिला शुरू हो जाता है ।
(Info From-aajtak.in/elections)

नहीं लागू होगा दल-बदल कानून
रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के हवाले से आगे लिखा गया है कि, चुनाव से पहले पार्टी बदलने वाले इन नेताओं पर दल बदल कानून भी लागू नहीं होगा और चुनाव बाद नई विधानसभा के गठन होने के बाद इन नेताओं के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई नहीं की जा सकती । ऐसे लोग जो विधायक या मंत्री नहीं हैं, उन्हें पार्टी बदलने पर कोई खतरा भी नहीं है । विराग गुप्ता के मुताबिक वो नेता जो संसद के सदस्य हैं, उनका ढाई साल का कार्यकाल अभी बाकी है, ऐसे में अगर उनमें से कोई सांसद पार्टी बदलता है तो उनके अयोग्य होने का खतरा है ।
दल-बदल कानून क्या है?
आंकड़ों के मुताबिक, 1957 से 1967 के बीच 542 बार सांसदों और विधायकों ने पार्टी बदली है । जबकि 1967 के आम चुनाव से पहले 430 बार सांसदों-विधायकों ने पार्टी बदल डाली । वहीं 1967 के बाद तो एक रिकॉर्ड भी बना, जिसमें दल बदलुओं के कारण 16 महीने के भीतर ही 16 राज्यों की सरकारें गिर गईं । 1967 में हरियाणा के विधायक गयालाल ने 15 दिन में ही तीन बार पार्टी बदल दी । इसके बाद से ‘आया राम, गया राम’ की कहावत कही जाने लगी । इस तरह के दल बदल पार्टियों के लिए मुश्किल खड़ी कर देते हैं, ऐसे में इन पर रोक लगाने के लिए 1985 में राजीव गांधी की सरकार कानून लेकर आई थी । जिसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाता है तो उसे अयोग्य करार दिया जा सकता है । इसके अलावा कोई विधायक या सांसद पार्टी व्हीप का पालन नहीं करेगा तो भी उसकी सदस्या जा सकती है।
(Info From-aajtak.in/elections)

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