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राष्ट्रपति के हाथों मिला था बहादुरी पुरस्कार, लेकिन आज जूते सिलने को विवश है ये शख्स

शहंशाह को बहादुरी के लिये दिल्ली के लालकिले पर राष्ट्रपति ने उन्हें बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था, लेकिन आज ये शख्स तंगहाल जिंदगी जीने को विवश है।

New Delhi, Jan 20 : यूपी के आगरा में सिर्फ 11 साल की उम्र में शहंशाह ने दो लोगों की जान बचाई थी, उन्होने तब अपने जान की परवाह ना करते हुए पानी में कूद गये और दोनों इंसान को बचा लिया, इस बहादुरी के लिये दिल्ली के लालकिले पर राष्ट्रपति ने उन्हें बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था, लेकिन आज ये शख्स तंगहाल जिंदगी जीने को विवश है, वो एक जूते के कारखाने में नौकरी कर रहे हैं, अवॉर्ड देते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ने उनसे पूछा था, कि बड़े होकर क्या बनोगे, तब बड़े ही आत्मविश्वास के साथ शहंशाह ने कहा था पुलिस अधिकारी बनूंगा।

बहादुरी पुरस्कार
आगरा के थाना एत्माद्दौला यमुना ब्रिज के पास दलित बस्ती मोतीमहल के एक छोटी सी झोपड़ी में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाला शहंशाह अपने पूरे परिवार के साथ रहता है। 11 साल की उम्र में 2 सितंबर 2007 को शहंशाह अपनी वीरता की वजह से सुर्खियों में थे, लेकिन आज वो तंगहाल जीवन जीने को विवश हैं।

दो लोगों को बचाया था
तब शहंशाह सिर्फ 11 साल के थे, उन्होने यमुना में डूबते हुए 2 युवकों को बचाया था, उनकी इस वीरता के लिये साल 2009 के गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें वीरता सम्मान से सम्मानित किया था। तब सोनिया गांधी, तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी, दिल्ली की तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित समेत कई बड़ी हस्तियों ने उनकी पीठ थपथपाई थी।

सरकारी खर्च पर पढाई
पुरस्कार मिलने के कुछ महीने बाद ही उनके पढाई का पूरा इंतजाम कर दिया गया, पूरा खर्च सरकार उठाती थी, साल 2013 में इंटर पास किया, इसके बाद सरकारी मदद मिलनी बंद हो गई, आगे पढाई करने के लिये लखनऊ से दिल्ली तक खूब भागदौड़ की, लेकिन साल 2014 में अधिकारियों ने नई सरकार बनने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया, घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से मजबूरन उसे रोजगार तलाशना पड़ा, फिलहाल वो जूते की फैक्ट्री में काम कर रहा है।

मां ने बयां किया दर्द
शहंशाह की मां अनीशा ने बताया कि मुझे मेरे बेटे पर बहुत नाज है, लेकिन सरकार की बेरुखी की वजह से इंजीनियरिंग का सपना देखने वाला लड़का मजदूरी कर रहा है, शहंशाह के 12वीं पास होते ही ना पैसा मिला और ना ही रहने के लिये कोई मकान, जिस समय उनके बेटे को वीरता पुरस्कार दिया गया था, तब आगरा के तत्कालीन डीएम ने मकान देने का भी वायदा किया था, इसके लिये उन्होने साल 2010 में साढे सात हजार रुपये कर्ज लेकर नगर निगम में ड्राफ्ट जमा करवाया था।

नहीं मिला मकान
शहंशाह की मां ने कहा कि अब तक उन लोगों ने मकान के नाम पर 24 हजार रुपये जमा करवा चुके हैं, लेकिन सरकार के उदासीन रवैये की वजह से उन्हें अब तक मकान नहीं मिला है, उन्होने तंगहाली की हालत बताते हुए कहा कि बेटा पूरे सप्ताह काम करने के बाद केवल 500 रुपये कमा पाता है, इससे तो परिवार का गुजर-बसर ही मुश्किल से होता है, घर बनाने की बात तो बहुत दूर है।

इंजीनियर बनने का था सपना
राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार हासिल करने वाले शहंशाह ने कहा कि जिस समय पुरस्कार मिल रहा था, तब बहुत खुशी हो रही थी, लग रहा था कि मैं अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बदल दूंगा, लेकिन कई साल बीत जाने के बाद जब कोई मदद के लिये आगे नहीं आया, तो पढाई छोड़कर मैंने जूते बनाने की फैक्ट्री में काम करना शुरु कर दिया, ताकि किसी तरह से अपने परिवार को दो जून की रोटी दे सकूं।

मन करता है अवॉर्ड फेंक दूं
शहंशाह के पिता विस्सा ने कहा कि मैंने अपने बेटे को तैरना सिखाया, उसने यमुना में डूब रहे दो लोगों की जान बचाई, हम गरीब हैं, इसलिये अपने बेटे को अच्छे से पढा नहीं पाए, सरकार से कुछ उम्मीद थी, लेकिन उन्होने भी मुंह मोड़ लिया। पुरस्कार सम्मान समेत तमाम प्रशस्ति पत्र एक दिखावा जैसा लगता है, कभी-कभी तो ये मन करता है कि इस अवॉर्ड को यमुना में फेंक दूं।

पैसे लेकर भी घर नहीं दिया
शहंशाह के पिता ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पुरस्कार मिलते समय तत्कालीन आगरा के डीएम ने वायदा किया था कि उन्हें मकान दिया जाएगा, पैसे ले लेने के बावजूद आज तक छत नसीब नहीं हुई, झोपड़ी में पूरा परिवार रहने को विवश है, लेकिन कोई देखने और सुनने वाला नहीं है, अधिकारियों के चक्कर काट कर परेशान हो गया हूं।

IBNNews Network

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