New Delhi, Aug 25: पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता मरियप्पन थांगवेलु का जीवन ऐसी तमाम कठिनाईयों से भरा हुआ था जिनकी वजह से कोई आम इंसान टूट सकता है, लेकिन दिव्यांग होने के बावजूद मरियप्पन ने ऐसा कभी नहीं सोचा । उसने जो सोचा, वो साबित करके दिखाया । बड़ी से बड़ी रुकावट भी उसके एथलीट बनने के सपने को नहीं तोड़ पाई । 21 साल की उम्र में भारत को रियो पैरालिम्पिक्स खेलों में ऐतिहासिक मेडल जिताने वाले मरियप्पन की प्रेरणादायक कहानी आगे जाने, जिन्हें 29 अगस्त को वर्चुअल सम्मेलन में खेल रत्न से सम्मानित किया जाएगा ।
तमलिनाडु के छोटे से गांव की पैदाइश
मरियप्पन का जन्म तमिलनाडु के सालेम शहर के पास पेरियावादमगाती नाम के एक गांव में हुआ । बचपन बहुत अभाव में गुजीरा । बहुत छोटे थे
5 साल की उम्र में दुर्घटना
वहीं मरियप्पन की जिंदगी तब बदल गई जब वो 5 साल की उम्र के थे, एक बस दुर्घटना में उनका सीधा पैर घायल हो गया । चोट इतनी गंभीर थी
सिल्वर मेडल जीता
मरियप्पन की खेलों में ऐसी रुचि देखकर स्पोर्ट्स टीचर ने उन्हें बढ़ावा दिया । 14-15 साल की उम्र में उन्होने पहली बार किसी कंपटीशन में हिस्सा
गोल्ड जीतकर नाम किया रौशन
रियो पैरालंपिक फाइनल में मरियप्पन ने 1.89 मीटर की जम्प के साथ गोल्ड मेडल जीता, भारत का नाम दुनिया में रौशन कर दिया । पैरालंपिक
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