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मातम में गैरों के लिये आंसू बहाकर पैसे वसूलती हैं ये महिलाएं, ये है अजीबो-गरीब परंपरा

अपनों के लिये आंसू सभी बहाते हैं, लेकिन ये वो महिलाएं हैं, जो गैरों की मौत पर रुदन करती हैं, रोना इनका पेशा है।

New Delhi, Jul 16 : क्या आपने कभी सुना है, कि किसी के घर में किसी की मौत हो जाने के बाद उसके अंतिम संस्कार से पहले रोने के लिये किसी को पैसे देकर बुलाया जाता है, शायद पढकर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच है। ये अजीबोगरीब और हैरान कर देने वाली परंपरा अफ्रीका के एक देश में प्रचलित है। जहां पर मातम में रोने के लिये बाहर से लोग आते हैं, और बकायदा इस काम के लिये उन्हें पैसे मिलते हैं।

रोने के पैसे मिलते हैं
जी हां, अफ्रीका के इस देश में अगर किसी के परिजन की मौत हो जाती है, तो यहां पर मौत पर रोने के लिये पेशेवरों को पैसे देकर बुलाया जाता है, अफ्रीका के घाना के पेशेवर मूरर्स अजनबी लोगों के अंतिम संस्कार में रोने के लिये जाते हैं। बकायदा उन्हें यहां पर रोने के लिये पैसे चुकाकर विदा किये जाते हैं।

शौक के साथ पेशा
रिपोर्ट के अनुसार घाना में कुछ ऐसे समूह हैं, जिनका शौक के साथ ये पेशा भी है, घाना के पेशेवर मूरर्स की एक नेता ने बताया कि जो लोग अपने रिश्तेदारों के अंतिम संस्कारों में रो नहीं पाते हैं, वो लोग हमें बुलाते हैं, हम सभी वहां जाकर रोते हैं, जिससे आस-पड़ोस को लोगों को पता चलता है कि घर में मातम हो गया है। इसके लिये हम लोग पैसे चार्ज करते हैं। ये शौक के साथ-साथ हमारा पेशा भी है।

ज्यादातर विधवा महिलाएं
पेशेवर मूरर्स की नेता अमी डोक्ली ने बताया कि हमारी टीम में सभी विधवा महिलाएं हैं, किसी अजनबी के गुजर जाने पर उनके लिये रोना हमारे लिये आसान काम नहीं हैं, लेकिन फिर भी हम इस काम को अच्छे से करते हैं। हमारे रोने की वजह से आस-पड़ोस के लोगों को जानकारी मिल जाती है कि इस घर में मातम हुआ है, इसी वजह से लोग हमें बुलाते हैं।

भारत में भी है रुदाली गैंग
अपनों के लिये आंसू सभी बहाते हैं, लेकिन ये वो महिलाएं हैं, जो गैरों की मौत पर रुदन करती हैं, रोना इनका पेशा है, राजस्थान के कुछ गांवों में आज भी सामंतो( प्रभावशाली) की मौत पर रोने के लिये लोगों को जाना ही पड़ता है। कुछ दिन उन्हीं के घर पर रहकर मातम मनाना पड़ता है, रुदालियों का रोना आज भी राजस्थान के आदिवासी और पिछड़े जिलों में गूंजता है। सिरोही जिले में सैकड़ों रुदालियां आज भी रहती हैं।

परंपरा का हवाला
इस संबंध में जब स्थानीय विधायक जगसीराम कोली से सवाल किया गया, तो उन्होने कहा कि पहले से ही ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिसे गांव के आज भी निभा रहे हैं। अगर किसी को शिकायत है तो वो इसके खिलाफ आवाज उठा सकता है, लेकिन परंपरा के नाम पर सालों से चली आ रही इस रिवाज को लोग आज भी ढो रहे हैं।

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