New Delhi, Jul 09 : ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि 2019 में भाजपा बहुमत से दूर रह जायेगी. सीएसडीएस का सर्वे भी यही इशारा कर रहा है और राजनीतिक विश्लेषक भी पार्टी के 200-225 सीटों के बीच अटक जाने की आशंका जता रहे हैं. यूपीए की जो स्थिति है, उससे लगता नहीं है कि वह चुनाव से पहले संयुक्त विपक्ष टाइप का कोई गठबंधन बना पायेगी. ऐसे में यूपीए भी बहुत से दूर ही रहेगा. ऐसे में कई छोटी पार्टियां ऐसी हैं, जो किंग मेकर साबित हो सकती हैं. इन पार्टियों की खासियत यह है कि ये जरूरत पड़ने पर यूपीए का भी समर्थन कर सकती हैं और एनडीए का भी. इन्हें विचारधारा के नाम पर किसी से परहेज नहीं है. आइये जानते हैं इन पार्टियों के बारे में…
1. तृणमूल कांग्रेस
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी तृणमूल कांग्रेस की बंगाल में आज तूती बोलती है. पंचायत तक के चुनाव में उसके मुकाबले में कोई नजर नहीं आता.
2. बीजू जनता दल-
ओड़िशा में बीजू जनता दल का भी यही हाल है. वहां उसका एकछत्र राज है. 2014 में पार्टी ने 21 में से बीस सीटें जीती थीं. भाजपा को महज एक सीट आयी थी.
3. डीएमके-एआईडीएमके-
तमिलनाडु में 39 लोस सीटें हैं, 2014 में इनमें से 37 सीटें एआईडीएमके ने जीत ली थी. मगर तब जयललिता जीवित थीं.
4. तेलगू देशम पार्टी-
आंध्र प्रदेश की 20 लोकसभा सीटों में 2014 में तेलगू देशम पार्टी को 15 सीटें मिली थीं. वहां पार्टी का मुकाबला वाईएसआर कांग्रेस से है. 176 सीटों वाली आंध्र विधानसभा में तेलगु देशम पार्टी के पास 103 और वाईएसआर कांग्रेस के पास 66 सीटें हैं. भाजपा के पास सिर्फ चार सीटें हैं, कांग्रेस गायब हो चुकी है. ऐसे में टीडीपी और वाईएसआऱ दोनों जितनी भी सीटें जीते, ये किंगमेकर हो सकती हैं.
5. तेलंगाना राष्ट्र पार्टी- तेलंगाना की 17 सीटों में से 2014 में 11 सीटें जीतने वाली तेलंगाना राष्ट्र पार्टी वहां की सबसे बड़ी पार्टी है. उसके बाद कांग्रेस को दो, भाजपा को एक और टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस को एक सीटें वहां मिलीं. 119 सीटों वाली तेलंगाना विस में टीएसआर के पास 90 सीटें हैं. 13 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे स्थान पर है. टीआरएस ने 2019 में गैर कांग्रेस, गैर भाजपा गठबंधन के लिए हामी भरी है, मतलब यह पार्टी चुनाव के बाद किसी धड़े का समर्थन कर सकती है.
6. जेडीएस-
जेडीएस कर्नाटक में तीसरे नंबर की पार्ठी है. अभी कर्नाटक में वह सरकार को लीड कर रही है. फिलहाल कांग्रेस के साथ है.
स्पेशल कमेंट- हालांकि सपा, बसपा, राकांपा, शिव सेना, जदयू, राजद, अकाली दल, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी जैसी अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जो 2019 में मजबूत रहने की स्थिति में है. मगर अमूमन इनमें से ज्यादातर पार्टियों का स्टैंड क्लीयर है. यह दिलचस्प है कि जहां उत्तर भारत की श्रेत्रीय पार्टियां मोदी समर्थन और मोदी विरोध के ट्रैप में उलझी हैं वहीं दक्षिण भारत की पार्टियों ने अवसर के हिसाब से निर्णय़ लेने के लिए खुद को स्वतंत्र रखा है. ऐसे में 2019 में उनका बारगेनिंग पावर ज्यादा दमदार हो सकता है.
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