अध्यात्म

जनेऊ कैसी होनी चाहिए, क्या हैं इसे पहनने के नियम और महत्व

जनेऊ या फिर यज्ञोपवीत के बारे में आप तो जानते ही होंगे, लेकिन इसके महत्व और इसे धारण करने के नियम के बारे में शायद नहीं जानते होंगे, पढ़िए

New Delhi, Nov 08: हमारे वैदिक धर्म में जनेऊ का बहुत महत्व माना जाता है। जनेऊ या यज्ञोपवीत संस्कार हर बालक का होता है, इसके बाद कहते हैं कि उसका दूसरा जन्म हुआ है। आप जनेऊ नहं समझ रहे हैं तो याद करिए कि अक्सर आप देखते हैं कि लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इसी धागे को जनेऊ कहते हैं। ये सूत से बना पवित्र धागा होता है। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ पहनने के कुछ नियम होते हैं। साथ ही जनेऊ कैसी होनी चाहिए इसके बारे में हम आपको बता रहे हैं। ये बड़े काम की बातें हैं, आपको हर कहीं नहीं मिलेंगी। पहले आपको बताते हैं कि जनेऊ तीन धागे होते हैं। ये तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं, सत्व, रज और तम का प्रतीक है। गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक माने जाते हैं।

जनेऊ कैसी होनी चाहिए
जनेऊ के नियमों में पहले आपको बताते हैं कि ये कैसी होनी चाहिए, जनेऊ में मुख्य तौर पर तीन धागे होते हैं। हर धागे के अंदर तीन तीन तार होते हैं। इस तरह से नौ तार होते हैं। एक मुंह, दो नाक, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारों को मिलाकर कुछ नौ होते हैं। जनेऊ में 5 गांठें होनी चाहिए। ये ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक होती हैं। साथ ही ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक मानी जाती हैं।

जनेऊ की लंबाई
जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होनी चाहिए। इसका मतलब ये है कि जनेऊ पहनने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने की कोशिश करनी चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्र ग्रंथ, नौ अरण्यक समेत कुल 32 विद्याएं होती है। यही कारण है कि पुरातन समय में यज्ञापवीत संस्कार के बाद ही किसी बालक को ज्ञान अर्जित करने के लिए गुरुकुल भेजा जाता था।

जनेऊ धारण करने के नियम
जनेऊ पहनने के बाद इसके जितने भी नियम हैं उनका पालन करना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन से पहले जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए उसके बाद इस काम से निवृत होने के बाद ही उतारना चाहिए। जनेऊ कमर से ऊपर होनी चाहिए, जिस से ये अपवित्र ना होने पाए। जनेऊ का कोई तार टूट जाए या फिर वो 6 महीने से पुरानी हो जाए तो उसे बदल देना चाहिए।

महिलाएं भी पहन सकती हैं
जनेऊ केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी धारण कर सकती हैं। लेकिन उनको भी इसके नियमों का पालन करना जरूरी हैं। जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदल देने की परम्परा है। महिलाओं  को हर बार मासिक धर्म के बाद जनेऊ को बदल देना चाहिए । माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान जनेऊ अपवित्र हो जाती है। तो उसे धारण नहीं करना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

जनेऊ शरीर से बाहर नहीं निकालना चाहिए
जनऊ धारण करने के बाद उसे शरीर से बाहर नहीं निकालना चाहिए. अगर वो खंडित हो जाए तो बदल लेना चाहिए. जनेऊ को साफ करने के लिए भी शरीर से बाहर नहीं निकालना चाहिए, उसे गले में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें । जनेऊ में चाभी का गुच्छा नहीं बांधना चाहिए। बालक जब जनेऊ के नियमों को समझने लगे तो उसका यज्ञोपवीत करना चाहिए।

जनेऊ का मेडिकल कनेक्शन
बहुत कम लोग ही ये बात जानते हैं कि जनेऊ धारण करने का मेडिकल कनेक्शन भी है। मेडिकल साइंस के मुताबिक दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। साथ ही आकस्मात आघात का खतरा भी कम हो जाता है। बुरे सपने आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

शरीर के लिए जरूरी है जनेऊ
कान में जनेऊ लपेटने से सूर्य नाड़ी जागृत होती है, कान पर जनेऊ लपेटने से पेट से संबंधित रोग और हाई बीपी की समस्या से बचाव होता है। जनेऊ धारण करने से शरीर में विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है इस से काम-क्रोध पर कंट्रोल करने में आसानी होती है। इसके अलावा जनेऊ पवित्रता का एहसास कराती है। इंसान बुरे कामों से बचता है, तो ये हैं जनेऊ के महत्व, शरीर पर इसका होना ही इंसान को सदाचार की ओर ले जाता है।

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