New Delhi, Aug 10 : ऊं नम: शिवाय, इस मंत्र का जाप आपको जीवन की हर मोह माया से दूर कर सकता है । शिव के सिवा ना कोई सत्य है और ना ही कोई असत्य । शिव का ना कोई आदि है ना ही अंत, शिव निराकार सबमें समाए हुए है । आदर्श पति की प्रतिमूर्ति हैं तो पत्नी के वियोग में विनाश की क्षमता रखने वाले प्रेमी हैं शिव । शिव को कई और नामों से भी जाना जाता है । कौन हैं शिव, महादेव या महाकाल, क्यों उन्हें दिया गया पशुपति जैसा नाम आगे जानें सब कुछ ।
शिव का केवल एक ही अस्त्र है
वज्र शिव का शक्तिशाली अस्त्र है। वज्र को शिव निरीह पशु-पक्षियों को बचाने के लिए तथा मानवता विरोधी व्यक्तियों के विरुद्ध व्यवहार में
स्वार्थियों पर प्रयोग किया गया ये अस्त्र
जब भी मनुष्य और जीव-जंतु अपना दुख लेकर शिव के पास आए, शिव ने उन्हें आश्रय दिया और सत् पथ पर चलने का परामर्श दिया। जिन्होंने
पशुपति इसलिए कहलाए
यह अस्त्र मात्र कल्याणार्थ है, इसी कारण इसे ‘शुभ वज्र’ कहा गया है। मनुष्य के समान पशुओं के प्रति भी शिव के हृदय में अगाध वात्सल्य था।
बाघंबर क्यों कहलाए शिव
योगचर्चा के सूत्रपात के बाद से योगी आसन के लिए उस वस्तु का व्यवहार करते हैं जो उत्ताप और विद्युत का अवाहक है। मगर पहले योगी
सच्चे हृदय से मांगे शिव का आश्रय
मनुष्य के प्रयोजन और अप्रयोजन के बारे में मनुष्य से अधिक परम पुरुष जानते हैं। वही सच्चा साधक है जो परम पुरुष से कुछ अभिलाषा नहीं
प्रभु का नाम आशुतोष इसलिए कहलाया
शिव पर्वत पर रहा करते थे । दूर-दूर से लोग उनके पास दौड़े आते। वे उन्हें अपने विषाण (सींग) के वज्रघोष से पुकारते, इसलिए लोग उन्हें
(वेबसाइट पर मिली जानकारी के आधार पर, सत्यता के लिए विशेषज्ञ से संपर्क करें )
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