वायरल

‘पत्रकारों के बीच बढ़ती कटुता से इंडस्ट्री को और नुकसान पहुंचेगा’

चाहे वामपंथी पत्रकार हों या दक्षिणपंथी पत्रकार, कांग्रेसी पत्रकार हों या गैर-कांग्रेसी पत्रकार- ज़्यादातर वे समझौते करते हैं इस पेशे में व्याप्त अनिश्चितता और असुरक्षा की वजह से।

New Delhi, Oct 10 : अनेक साथी मुझसे असहमत होते हैं, लेकिन मैंने अपना एक उसूल बनाया है। जब तक मैं पत्रकारिता के पेशे में सक्रिय हूं, तब तक हमपेशा लोगों के नाम लेकर उनकी आलोचना करने से यथासंभव परहेज करूंगा। इसलिए नहीं कि किसी के अनुचित कामों पर परदा डालना चाहता हूं या आलोचना करने से डरता हूं या ईमानदार नहीं रहना चाहता, बल्कि इसलिए कि ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि किसी पूर्वाग्रह, दुराग्रह, द्वेष या ईर्ष्या में हम किसी को निशाना बना रहे हैं।
वैसे भी व्यक्तियों के नाम मुझे महत्वपूर्ण नहीं लगते। महत्वपूर्ण वह प्रवृत्ति और परिस्थिति है, जिसकी वजह से मीडिया की साख दिनों-दिन गिरती जा रही है। मुझे लगता है कि हर पत्रकार में सच्ची पत्रकारिता के कीड़े कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य मौजूद होते हैं। दरअसल उनमें जो पतन दिखाई देता है, वह उन प्रवृत्तियों और परिस्थितियों की वजह से ही दिखाई देता है, जिनसे हमारी लड़ाई है।

चाहे वामपंथी पत्रकार हों या दक्षिणपंथी पत्रकार, कांग्रेसी पत्रकार हों या गैर-कांग्रेसी पत्रकार- ज़्यादातर वे समझौते करते हैं इस पेशे में व्याप्त अनिश्चितता और असुरक्षा की वजह से। क्या यह तथ्य नहीं है कि आज की तारीख़ में बड़े से बड़े पत्रकारों तक को उतनी भी रोज़गार-सुरक्षा हासिल नहीं है, जितनी कि एक सरकारी प्यून या क्लर्क को भी रहती है? यह एक ऐसी परिस्थिति होती है, जिसमें ज़्यादातर पत्रकार टूट जाते हैं और समझौता कर लेते हैं। ऐसे पत्रकार न के बराबर होते हैं, जो अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं और सिद्धांतों को ढोते हुए असफल हो जाने तक का जोखिम उठा लेते हैं।

एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि दुनिया आपके कथित संघर्षों का ढोल भी तभी पीटती है, जब आप सिद्धांतों से समझौता करके भी सफल हो जाएं। यदि आप सिद्धांतों से समझौता करना कबूल न करें और असफल हो जाएं, तो आपके संघर्षों की कद्र होना तो दूर, बड़ी आबादी को उनके बारे में पता तक नहीं होता।
जब आप बड़े हो जाते हैं, तो आपके साथ तरह-तरह की कहानियां जुड़ती चली जाती हैं और आपकी छोटी-छोटी बातें भी अन्य लोगों के लिए बड़ी हो जाती हैं। कुछ अपवाद भी रहे होंगे, लेकिन बड़े पत्रकार अंततः वही कहलाए, सत्ता और सियासत के गलियारों में जिनकी गहरी घुसपैठ और सांठ-गांठ रही और जिन्हें सत्ता का, विभिन्न वैचारिक गुटों या संगठनों का प्रोत्साहन मिलता रहा और जो उनके द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत होते रहे।

अब हमारे जो हमपेशा मित्र इस व्यावहारिक सच्चाई को समझकर अपने जीवन की राह तय करते हैं, अगर हम उन्हें गलत कहें तो यह बेतुका है। हर व्यक्ति को अपना रास्ता तय करने का हक है। हर व्यक्ति के जीवन के मकसद और उसूल अलग-अलग हो सकते हैं। ज़रूरी नहीं कि वे हमारी सोच के हिसाब से चलें या हम उनकी सोच के हिसाब से चलें।
आज हमारे वामपंथी और कांग्रेसी मित्र जिन कथित दक्षिणपंथी सुपर-स्टार पत्रकारों को गरियाते हैं, वे यह नहीं समझ पाते कि अगर वे दक्षिणपंथी सुपर-स्टार पत्रकार भी 20-25 साल से किसी वामपंथी-कांग्रेसी रुझान वाले मालिक के चैनल में काम कर रहे होते, तो वे भी आज उसी ग्राउंड पर खड़े दिखाई देते, जिस ग्राउंड पर किसी वामपंथी-कांग्रेसी रुझान वाले मालिक के चैनल में काम करने वाले सुपर-स्टार पत्रकार दिखाई दे रहे हैं।

इसी तरह, हमारे दक्षिणपंथी मित्र जिन कथित वामपंथी-कांग्रेसी रुझान वाले सुपर-स्टार पत्रकारो को गरियाते हैं, वे भी यह नहीं समझ पाते कि अगर वे वामपंथी-कांग्रेसी सुपर-स्टार पत्रकार भी किसी दक्षिणपंथी रुझान वाले मालिक के चैनल में लंबे समय से काम कर रहे होते, तो वे भी उसी ग्रांउड पर खड़े होते, जिसपर किसी दक्षिणपंथी मालिक के साथ काम करने वाले सुपर-स्टार पत्रकार दिखाई देते हैं।
इसलिए, कौन पत्रकार किस ग्राउंड पर खड़ा है, यह अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उसकी लगाम किसके हाथ में है और जिसके हाथ में उसकी लगाम है, उसके हित किन नैतिक-अनैतिक प्रयोगों और सांठ-गांठ से सधते हैं। पत्रकारों के अच्छा या बुरा बनने में काफी बड़ा योगदान उन संस्थानों के मालिकों का भी होता है, जिन संस्थानों में वे काम करते हैं।

सिस्टम इस तरह चलता है कि मीडिया संस्थानों के मालिक प्रायः स्वतंत्र हो नहीं सकते, क्योंकि वे बिजनेसमैन होते हैं और अपने कारोबारी हितों के लिए उन्हें सारे नैतिक-अनैतिक प्रयोग करने होते हैं और इसलिए अंततः उनकी लगाम सरकार के हाथों में आ ही जाती है। लोकतंत्र में कुछ देर तक सरकार से वे तभी जूझ सकते हैं, जब उनकी लगाम ऐसे मुख्य विपक्षी दलों के हाथों में हो, जो पहले सत्ता में रहे हैं या आगे जिनके सत्ता में आने की संभावना हो। फिर संपादक स्तर के पत्रकार इसलिए स्वतंत्र नहीं होते, क्योंकि उनकी लगाम उन मालिकों के हाथों में होती है, जिनकी लगाम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार या मुख्य विपक्षी दलों के हाथों में होती है। निचले स्तर के पत्रकार इसलिए स्वतंत्र नहीं होते, क्योंकि उनकी लगाम उन संपादकों के हाथों में होती है, जिनकी लगाम मीडिया मालिकों के हाथ में होती है।

इसलिए मीडिया कभी पूरी तरह स्वतंत्र था या आज है या कल हो सकता है, यह केवल और केवल एक भ्रम है। और इसलिए, यदि हम अपने आग्रहों-दुराग्रहों, राग-द्वेष इत्यादि के आधार पर केवल कुछ पत्रकारों, चाहे वे कथित तौर पर किसी भी विचारधारा या राजनीतिक गुट के साथ जुड़े हों, उनको निशाना बनाएं, या उनके प्रति कटुता का सार्वजनिक प्रदर्शन करें, तो यह बात हमें उचित नहीं लगती।
बल्कि वक्त की ज़रूरत तो मुझे यह लगती है कि जब राजनीति ने पत्रकारिता को पूरी तरह बंधक बना रखा है, तब पत्रकारों की एकता विचारधारा के नाम पर खंडित नहीं होनी चाहिए, वरना अभी और नुकसान देखने को मिलेगा। पत्रकारिता के व्यवसाय में हम ऊंचे मानदंड भी तभी तय कर पाएंगे, जब हमारी आपसी एकता मज़बूत होगी और स्थितियों-परिस्थितियों पर खुले दिल-दिमाग से विचार कर सकेंगे। शुक्रिया।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
IBNNews Network

Recent Posts

निवेशकों को मालामाल कर रहा ये शेयर, एक साल में 21 हजार फीसदी से ज्यादा रिटर्न

कैसर कॉरपोरेशन लिमिटेड के शेयर प्राइस पैटर्न के अनुसार अगर किसी निवेशक के इस शेयर…

2 years ago

500 एनकाउंटर, 192 करोड़ की संपत्ति जब्त, योगी कार्यकाल के 100 दिन के आंकड़ें चौंकाने वाले

दूसरे कार्यकाल में यूपी पुलिस ने माफिया को चिन्हित करने की संख्या भी बढा दी,…

2 years ago

गोवा में पति संग छुट्टियां मना रही IAS टॉपर टीना डाबी, एक-एक तस्वीर पर प्यार लूटा रहे लोग

प्रदीप गवांडे राजस्थान पुरातत्व विभाग में डायरेक्टर हैं, वहीं टीना डाबी राजस्थान सरकार में संयुक्त…

2 years ago

5 जुलाई, मंगलवार का राशिफल: धैर्य से काम लें मकर राशि के जातक, बनता काम बिगड़ जाएगा

आय के नए रास्‍ते खुल रहे हैं, अवसर का लाभ उठाएं ।मित्रों और सगे- सम्बंधियों…

2 years ago

बोल्ड ड्रेस में लेट गई आश्रम की बबीता, खूब पसंद की जा रही तस्वीरें

इस तस्वीर में त्रिधा चौधरी ब्रालेस तो है, ही साथ ही बोल्ड कपड़े पहने नजर…

2 years ago

मलाइका से भी दो कदम आगे निकली अर्जुन कपूर की बहन, कैमरे के सामने उतार दिया ‘जरुरी कपड़ा’

अंशुला के इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि वो अपनी वन पीस ड्रेस…

2 years ago