New Delhi, Sep 20 : देख रहा हूं, मदन मोहन झा को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने से कई लोगों को हैरत हुई है, मगर मुझे नहीं हुई. 2015 के विधान सभा चुनाव के वक्त से ही देख रहा हूं बिहार में कांग्रेस की नजर सवर्ण वोटरों पर खास कर ब्राह्मणों पर रही है. वैसे तो बिहार में टाइटल देख कर किसी की जाति का पता लगाना मुश्किल है, मगर 2015 जब कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा थी, उस वक्त मैंने इसके उम्मीदवारों की सूची देखी थी. 41 उम्मीदवारों में कम से कम 11 टाइटल से सवर्ण थे और इनमें से पांच ब्राह्मण थे.
यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि राजद की सूची में टाइटल से एक ही ब्राह्मण नजर आया, वह था राहुल तिवारी, वरिष्ठ राजद नेता शिवानंद तिवारी का पुत्र. जदयू की 101 उम्मीदवारों की सूची में टाइटल से दो ब्राह्मण दिखे. और तो 160 उम्मीदवारों वाली भाजपा की सूची में भी टाइटल से पांच ब्राह्मण का ही पता चल पाया था, जो भाजपा सवर्णों की और खासकर ब्राह्मण-बनियों की पार्टी मानी जाती थी.
यह संभवतः महागठबंधन की रणनीति थी कि राजद यादव और मुसलिम के बीच पैठ बनायेगा, जदयू का फोकस अति पिछड़ों और कुरमी-कोइरी को एकजुट रखना होगा और कांग्रेस अपने पुराने दौर के सवर्ण और खास कर ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करेगी. दिलचस्प बात यह है कि 2015 में कांग्रेस की यह रणनीति कारगर रही, ये पांचों ब्राह्मण उम्मीदवार जीत कर विधानसभा पहुंचे. संभवतः यही वजह है कि कांग्रेस एक बार फिर से बिहार में सवर्ण कार्ड और ब्राह्मण कार्ड खेलने का मन बना रही है.
दरअसल बिहार में महागठबंधन का हिस्सा होने की वजह से कांग्रेस को यह लाभ मिल जाता है कि वह सवर्णों को टिकट देकर जीत जाती है.
दिलचस्प है कि इन्हीं संभावनाओं के बीच यह खबर भी बाजार में है कि पूर्णिया के पूर्व सांसद भाजपा नेता उदय सिंह इस बार कांग्रेस में संभावनाएं टटोल रहे हैं. क्योंकि पूर्णिया से फिलहाल जदयू के संतोष कुशवाहा सांसद हैं, ऐसे में उन्हें लगता है कि उन्हें टिकट नहीं मिलेगा. उदय सिंह ही क्या, कीर्ति आजाद और शत्रुघ्न सिंहा जैसे सवर्ण नेता का इस बार भाजपा से टिकट कटना तय है, क्या पता इन्हें भी कांग्रेस में ठिकाना मिल जाये. खबर तो यह है कि पूरे देश में भाजपा के 150 सांसदों का टिकट कटेगा. ये लोग अब अपनी संभावना किस दल में तलाशेंगे कहना मुश्किल है. मगर मदन मोहन झा को अध्यक्ष बनाने से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस बिहार में इस बार खुलकर सवर्ण राजनीति का कार्ड खेलेगी और एससी-एसटी कानून की वजह से नाराज सवर्णों को लुभाने की कोशिश करेगी.
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