New Delhi, Jul 31 : तो क्या यह मान लिया जाये कि बिहार में रिश्वतखोरी अब भयावह रूप ले चुकी है ? उसे रोकने की सरकारी कोशिशें विफल हो चुकी हैं ? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बातों से तो ऐसा ही लगता है। इसके पूर्व मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौनाचार कांड, सरकारी तंत्र की कार्यशैली को बेपर्दा कर चुका है। बेझिझक यह कहा जा सकता है कि शासन तंत्र अपनी खामियों को पकड़ने और उसे दुरुस्त करने की की इच्छाशक्ति खो चुका है। उसमें क्षमता तो है ,लेकिन इच्छाशक्ति मर चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस बात को स्वीकार करते नजर आते है। यह स्थिति तब है जब बिहार के सुशासन की पूरे देश में ख्याति है।
पहले बात रिश्वतखोरी की। मुख्यमंत्री 27 जुलाई को पटना में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने आवासों का वितरण कर रहे थे। वहां उन्होंने महिलाओं का आह्वान किया कि रिश्वत मांगनेवालों को घेरकर उसका फोटो मोबाईल से खींच सबको दिखायें ताकि वैसे लोगों पर कार्रवाई हो सके।यानी नीतीश जी ने यह मान लिया कि सरकारी योजनाओं में घूसखोरी हो रही है। इससे यह भी मतलब निकलता है कि घूसखोरी रोकने के लिए बना सरकारी तंत्र प्रभावी नहीं है। इस साफगोई के लिए मुख्यमंत्री की तारीफ होनी चाहिये। ऐसा नहीं है कि उनकी ओर से घूसखोरी रोकने और सचमुच का सुशासन कायम करने की कोशिश नहीं हुई। अपनी ओर से उन्होंने भरपूर कोशिश की ,लेकिन राज्य की नौकरशाही ने उनका साथ नहीं दिया। उन्होंने नौकरशाही को जवाबदेह बनाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके।
याद करें उनका पिछला कार्यकाल। वे हर जिले में जाते थे। वहां मंच से राज्य के बड़े अधिकारियों के मोबाईल नंबर सार्वजानिक करते थे और लोगों से कोई समस्या होने पर उन्हें फोन करने को कहते थे। जनता के दुःख दर्द को समझने और उसके निपटारे के लिए उन्होंने अधिकारियों को गांवों में रात्रि विश्राम करने का निर्देश भी दिया था। लेकिन किसी ने उसका पालन नहीं किया। जब ज्यादा फोन आने लगे तो अधिकारियों ने अपने फोन नंबर बदल लिए। जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम चलाया। उसका भी ठोस नतीजा नहीं निकला। उसे भी बंद करना पड़ा।अधिकारियों ने समस्या के निपटारे में दिलचस्पी नहीं ली।
अब नीतीश महिलाओं के सहारे घूसखोरी पर अंकुश लगाने की कोशिश में हैं। कह सकते हैं कि महिलायें उनकी अंतिम उम्मीद हैं। शराबबंदी अभियान में उन्होंने महिलाओं की सक्रियता देखी और परखी है। इसीलिए उन्होंने महिलाओं से घूसखोरों का फोटो खींचने का आह्वान किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इसकी शुरुआत की थी। वहां उन्हें काफी सफलता भी मिली। दिल्लीवाले बताते हैं कि घूसखोरी पर काफी अंकुश लगा है। अब खुलेआम घूस मांगने में सरकारी बाबू डरते हैं। क्या बिहार में ऐसा हो पायेगा ? इस तरीके के अपने खतरे भी हैं।
नौकरशाही में भ्रष्टाचार पुरानी और विश्वव्यापी समस्या है। रोकने के जितने उपाये किये गये ,उतनी घूसखोरी बढ़ती गई। दरअसल नौकरशाही ‘कालिया नाग’ की तरह है ,जिसे नाथने के लिए उसके फन को कृष्ण की तरह पांव तले रौंदना जरुरी है। अगर सचमुच इसे ख़त्म करना है तो नौकरशाही से दो -दो हाथ करना पड़ेगा। उसमें यह खौफ पैदा करना पड़ेगा कि गलत करने पर या आदेश मानने में कोताही पर बचना नामुमकिन है। नौकरशाही को नाथनेवालों में कल्याण सिंह, मायावती, लालू प्रसाद, चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव जैसे मुख्यमंत्रियों का नाम लिया जाता है। क्या नीतीश जी ‘कालिया नाग’ के फन को रौंदने को तैयार हैं ? या उनकी राजनीति महिलाओं के सहारे ही आगे बढ़ेगी ?
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