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सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस की तैयारी कैसी है, सवाल यह है कि पब्लिक कितनी ऊबी है

कांग्रेस के चाल-चरित्र को जानने समझने वाले यह जानते हैं कि कांग्रेस एक हाथी है, एक तो वह हिलना-डुलना पसंद नहीं करती. चलती भी है तो मंथर चाल से।

New Delhi, Sep 13 : पिछले दिनों एक काफी अनुभवी पत्रकार से बातचीत हो रही थी. जैसा कि आजकल हर कोई पूछता है, उन्होंने भी पूछा कि 2019 को लेकर आपका क्या अनुमान है. मैंने कहा, लग तो रहा है कि गठबंधन की सरकार बनेगी, और कांग्रेस की जो तैयारी दिख रही है, उससे यही लगता है कि सरकार बीजेपी ही बनायेगी. उन्होंने इस पर कहा, कांग्रेस की तैयारी से आपका क्या मतलब है? 2004 में कांग्रेस कितनी तैयार थी? कांग्रेस कभी तैयारी नहीं करती.

उनकी इस बात ने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया. मैंने आजादी के बाद से भारतीय इतिहास पर गौर किया कि कांग्रेस ने सत्ता पाने के लिए कभी कोई जोर-शोर की तैयारी नहीं की है. उससे सत्ता छिनती जरूर है, मगर हमेशा छीनने वाले फेल हो जाते हैं और सत्ता बाइ-डिफॉल्ट उसे मिल जाती है. 1980 में भी यही हुआ. फिर 1991 में हुआ और फिर 2004 में. हर बार दूसरे दलों ने, मोरचों ने, सरकार बनायी, पहले दो बार तो विपक्षी सरकार चला ही नहीं पाये, अटल जी ने सरकार पांच साल चलाई फिर भी लोग उकता गये और कांग्रेस को मौका दे दिया.
आज के वक्त में लिखे जा रहे राजनीतिक विश्लेषणों में आप देखेंगे कि कहा जा रहा है, एक तरफ अमित शाह पूरे भारत में घूमकर बहुत माइन्यूटली सारी तैयारी कर रहे हैं. कभी बांग्ला सीखते हैं तो कभी उड़िया. हिंदी पट्टी के संभावित घाटे की दूसरे इलाकों से भरपाई करने की कोशिश करते हैं. जगह-जगह भोट-कटुआ पार्टी और उम्मीदवार तलाश रहे हैं, हर राज्य में जाकर कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर रहे हैं. मगर राहुल गांधी आराम से बैठे हैं, बहुत दवाब आता है तो कहीं किसी यूनिवर्सिटी में जाकर एकआध सभा कर लेते हैं. वे न राजस्थान में सक्रिय हैं, न एमपी में, जहां उनके जीत की सबसे अधिक उम्मीद जतायी जा रही है. यूपी में भी वे अखिलेश औऱ माय़ावती को जोड़ने के लिए बहुत कोशिशें नहीं कर रहे. दक्षिण के राज्यों को तो उन्होंने छोड़ ही रखा है. ममता दीदी से उनका झगड़ा ही है, लालू-तेजस्वी से कोई बातचीत नहीं. बस संयुक्त विपक्ष का एक शिगूफा है, जो मार्केट में चल रहा है.

यह देख कर जरूर अजीब लगता है. मगर कांग्रेस के चाल-चरित्र को जानने समझने वाले यह जानते हैं कि कांग्रेस एक हाथी है, एक तो वह हिलना-डुलना पसंद नहीं करती. चलती भी है तो मंथर चाल से. उसे तेज गति से चलना, काम करना पसंद नहीं है. यह सिर्फ पार्टी के तौर पर नहीं है. सरकार चलाते वक्त भी वह इसी अदा से काम करती है. वह कम से कम बदलाव करती है. नया करने की बात तो सोचती भी नहीं.
जबकि मोदी जी को हर काम में नयापन चाहिए, लोगों को चौंकाना उनकी सबसे पसंदीदा एक्टिविटी है. वे हर योजना को ग्रैंड तरीके से लागू करते हैं. और हर बार लोगों को बताना चाहते हैं कि ऐसा देश में पहली बार हो रहा है. मोदी जी को इसका फायदा तो कम होता है, नुकसान अधिक हो जाता है. हर बार वे लोगों को अटेंशन खींचते हैं औऱ किसी न किसी कंट्रोवर्सी में फंस जाते हैं. मगर लोगों का अटेंशन खीचने की लत ऐसी है कि वे छोड़ ही नहीं सकते.

जबकि कांग्रेस मानती है कि कुछ नया करेंगे ही नहीं, तो कंट्रोवर्सी नहीं होगी. कांग्रेस हर मामले में यथास्थितिवादी है. वह न शॉल ले कर नवाज शरीफ के घर जाती है, न सर्जिकल स्ट्राइक करती है. वह कहती है कि पाकिस्तान से न दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी. सेफ गेम खेलो. यह एक उदाहरण है. अब जैसे एससी-एसटी का मामला है, कांग्रेस उसमें फंसती ही नहीं. भाजपा ने अपनी तत्परता से एक बार दलितों को दुश्मन बनाया, फिर सवर्णों को बना लिया.
यह वर्किंग स्टाइल का फर्क है. इसलिए कांग्रेस 2019 की तैयारियों में कहीं नजर नहीं आ रही. पता चलेगा कि एक दिन मायावती, अखिलेश और दूसरी पार्टियों ही राहुल को खोजते-खोजते दिल्ली पहुंच जायेंगी कि अरे भाई, चुनाव आ गया, गठबंधन कब बनाओगे. राहुल नींद से जगेंगे और कहेंगे कि हां, ठीक बात. बना लेते हैं. 2004 में भी यही हुआ था. तैयारी तो सिर्फ भाजपा ने की थी, फील गुड का नारा दिया था. खूब रथ घूमे थे. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि भाजपा हार भी सकती है. कांग्रेस भी वाकओवर देने के मूड में दिखती थी. मगर नतीजा आया तो कांग्रेस जीत गयी.हो सकता है, इस बार ऐसा न हो. मगर यह भी हो सकता है कि हो ही जाये. और अगर ऐसा होगा. 2019 में कांग्रेस आगे निकलेगी तो वह उसकी तैयारियों की वजह से नहीं, पब्लिक की उब की वजह से होगा. इसलिए यह मत देखिये कि कांग्रेस की तैयारी कैसी है, यह देखिये कि पब्लिक कितनी ऊबी है.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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