New Delhi, Aug 01 : मेरे एक रिश्तेदार असम में लेक्चरार की नौकरी करने गए थे। वहीं बस गए। रिटायर भी हो गए कई साल पहले। उनका बड़ा बेटा और बहू भी वहीं किसी कॉलेज में पढ़ाते हैं, छोटे बेटे ने एक चाय बागान भी लगा लिया है। मगर कुछ साल पहले पूरे परिवार को परेशान होकर बिहार में यहां वहां भटकते देखा। वे सुबूत जुगाड़ने आये थे कि 1971 से पहले से वे भारत के नागरिक हैं।
भैरवलाल दास जी ने कुछ दिनों पहले बताया था कि आजकल बिहार राज्य के अभिलेखागार में असम से आये बिहारियों की भारी भीड़ उमड़ रही है।
रोशन के पिता और भाई भी कई दशक से असम में हैं और ये अपना कारोबार भी कर रहे हैं। इन्होंने अपना खतियान पेश किया तो असम के अधिकारियों ने उसे पुष्टि के लिये दरभंगा भेज दिया।
रोशन बताते हैं कि असम में लोग बांग्लादेशियों से पहले बिहारियों को भगा देना चाहते हैं। क्योंकि बांग्लादेशी कम पैसे में काम करने को तैयार हो जाते हैं, बिहारी मजदूर अधिक पैसा मांगते हैं। वे बस इतना चाहते हैं कि बांग्लादेशियों को वोट देने का अधिकार नहीं मिले।
इन हालात में मैं सोच रहा हूँ कि बिहार के लाखों दलित, आदिवासी और भूमिहीन मजदूर वहां खुद को भारतीय नागरिक कैसे साबित करेंगे। उनके पास तो कभी खानदान में किसी के नाम जमीन ही नहीं रही है।
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