New Delhi, Aug 17 : सत्ता के सामने विपक्ष की आवाज़ के चिर प्रतिनिधि अटल जी को नमन। आप सत्ता के ही नहीं अपनी पार्टी में भी विपक्ष की तरह थे मगर थोड़े कमज़ोर विपक्ष की तरह। विपक्ष के नेता के तौर पर आप सदन से वाकआउट करते रहे मगर उनको अपनी पार्टी से गेटआउट नहीं कर सके जिन्होंने आपके उसूलों को कुचल डाला। ऐसा होता तो राजनीति कुछ कम क्रूर होती। सबकी सब जगह कहाँ चलती है और सब कोई सब जगह से जा भी नहीं जा सकता। किसी से यह उम्मीद ज़्यादती है। यह बात सिर्फ नोट करने के लिए हैं। इसीलिए कई बार आपकी कविताओं में भी उसी राजनीति का विपक्ष दिखता है जिसका विरोध पार्टी में न दिखता हो। यह भी कमाल ही है।
आपने जिस नेहरू की तस्वीर अपनी जगह न देख कर टोक दिया था, आज उस नेहरू की तस्वीर हर जगह से हटाई जा रही है। उन्हें दिन रात गालियां दी जाती हैं
आपका जीवन कहता है कि विपक्ष में होना लोकतंत्र के लिए होना है। यह बात आज उस पार्टी के लोग समझ नहीं पाते हैं जो पत्रकारों का बहिष्कार करते हैं,
इसके बाद भी आपके बोलने की शैली याद की जाएगी। उसकी अपनी जगह रहेगी। आपकी कविताएं गूंजती रहेंगी। गूंज रही हैं। आप भारत के लोकतंत्र की राजनीतिक विरासत हैं।
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