New Delhi, Oct 23 : रेल की पटरी पहले बिछती है, धीरे-धीरे लोग आस-पास कब्ज़ा करते रहते हैं. हम बेहतर संसाधनों के साथ पैदा हुए हैं, इसलिए हमारा कहना आसान है लेकिन ये कहने का ख़तरा तो उठाना ही पड़ेगा कि ये सही नहीं है और तिस पर सरकारें सही जगह देने की बजाय अवैध कॉलोनियों को वैध करती रहती हैं.
दिल्ली में तो रवायत सी है. एक रिपोर्ट के दौरान दिल्ली की ऐसी अवैध कॉलोनी गई थी जहां ट्रैक से 20 कदम पर पूरी कॉलोनी बसी हुई है.
कई सालों पहले दिल्ली में चुनावों के नज़दीक अक्सर ऐसा होता था कि किसी सरकारी ज़मीन पर 24-25 घंटे बैठो और विधायक आकर बिजली कनेक्शन दे देता था.
ये कब्ज़े वाली हरकतें सिर्फ़ संसाधनविहीन नहीं करते हैं, पॉश कॉलोनियों के लोग भी यही करते हैं. लाजपत नगर जैसे इलाकों में सरकार ने रिफ्यूजियों को जगह दी तो उसके आस-पास और कब्ज़ा होता रहा. कभी किसी ने अपने डीडीए फ्लैट को रिश्वत देकर और बढ़ा लिया.
ज़मीर भी कब तक ज़िंदा रहेगा, एक-एक किलोमीटर लंबे मॉल बनाने के लिए ज़मीनें हैं लेकिन कितने लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं. किसी बड़े व्यापारी की ज़मीन का अधिग्रहण नहीं होता क्या?
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