New Delhi, Jul 31 : इमरान खान की जीत का भारत सरकार ने अभी तक खुलकर स्वागत नहीं किया है। वह शायद इंतजार कर रही है, उस घड़ी का जब इमरान स्पष्ट बहुमत जुटा लेंगे और अपने प्रधानमंत्री होने की खुद घोषणा कर देंगे लेकिन चुनाव-परिणाम आने के दो-तीन दिन बाद सरकार ने जो भी बयान जारी किया है, उसमें दो बातें कही हैं। एक तो पाकिस्तानी जनता की तारीफ की है कि उसने लोकतंत्र की रक्षा की।
आतंकवादियों को बुरी तरह से हराया। दूसरे, उसने उम्मीद जाहिर की है कि नई सरकार हिंसा और आतंकवाद पर रोक लगाएगी। लेकिन हमारी सरकार ने इमरान खान के उस बयान पर अभी तक मौन साधा हुआ है, जो उन्होंने चुनाव के बाद दिया था। उन्होंने कहा था कि वे भारत से व्यापार बढ़ाना चाहते हैं और कश्मीर का सवाल बातचीत से हल करना चाहते हैं। यदि भारत एक कदम बढ़ाएगा तो हम दो बढ़ाएंगे। भारत सरकार का ठिठकना मुझे समझ में आता है, क्योंकि सारी दुनिया मानकर चल रही है कि इमरान खान फौज के मोहरे हैं लेकिन क्या पता कि जल्दी ही वे खुद-मुख्तार की तरह पेश आने लगें। भारत सरकार एक पासा फेंककर क्यों नहीं देखती ?
इमरान का खुले-आम स्वागत क्यों नहीं करती ? उन्हें भारत-यात्रा का निमंत्रण क्यों नहीं देती ? क्या मालूम इमरान फौज का रवैया बदलने में ही कामयाब हो जाएं ?
जहां तक पाकिस्तान की चुनावी-धांधली का प्रश्न है, यह मामला गंभीर रुप धारण कर सकता है लेकिन यह पाकिस्तान का अंदरुनी मामला है।
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