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भारतीय पत्रकारिता के ‘कुलदीप’ रहे हैं कुलदीप नैय्यर

कुलदीप नैय्यर : इमरजेंसी के खिलाफ जो धुआंधार लिखा उन्होंने , सत्ता से जिस तरह वह सिर उठा कर टकराए , आज की तारीख़ में कोई पत्रकार सपने में भी नहीं सोच सकता।

New Delhi, Aug 23 : उर्दू पत्रकारिता से कैरियर शुरू करने वाले कुलदीप नैय्यर अंगरेजी पत्रकारिता में आ कर भारतीय पत्रकारिता में एक मानक बन कर हमारे बीच उपस्थित रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस में बहुतेरे संपादक आए-गए लेकिन कुलदीप नैय्यर ने जो ज़ोरदार और धारदार पारी खेली उस का कोई सानी नहीं। वह भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय संपादकों में शुमार हैं। उन के श्वसुर पंजाब सरकार में मंत्री रहे थे। कुलदीप नैय्यर भी एक समय लालबहादुर शास्त्री के सूचना सलाहकार रहे थे। मिजाज से भरपूर कांग्रेसी रहे कुलदीप नैय्यर ने लेकिन बतौर इंडियन एक्सप्रेस संपादक इमरजेंसी में इंदिरा गांधी और उन की इमरजेंसी की ईंट से ईंट बजा दी थी।

रामनाथ गोयनका के वह अर्जुन बन कर उभरे थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर। इमरजेंसी के खिलाफ जो धुआंधार लिखा उन्होंने , सत्ता से जिस तरह वह सिर उठा कर टकराए , आज की तारीख़ में कोई पत्रकार सपने में भी नहीं सोच सकता। उन दिनों जब समूचे इंडियन प्रेस ने निरंकुश सत्ता के आगे घुटने टेक दिए थे तब सत्ता प्रतिष्ठान के ख़िलाफ़ कुलदीप नैय्यर के लेखों की आंधी चल रही थी। नतीज़तन उन्हें जेल की सैर करनी पड़ी। क़ानून की पढ़ाई करने के बाद नैय्यर ने अमरीका से पत्रकारिता की पढ़ाई की। फिर फिलासफी में पी एच डी की थी। वह चाहते तो वकालत कर सकते थे , प्रोफेसर बन सकते थे लेकिन उन्हों ने पत्रकारिता को चुना। वैसे भी वह पत्रकारिता करते थे , सिर्फ़ नौकरी नहीं। इंडियन एक्सप्रेस का उन का संपादक रूप तो जब मशहूर था तब था , बाद के दिनों में बिटवीन द लाइंस वाला सिंडिकेट कालम भी खूब मशहूर हुआ।

सब से बड़ी बात यह कि वह सच को सच , झूठ को झूठ कहने के तलबगार थे। शास्त्री जी का जब ताशकंद में निधन हुआ तब नैय्यर भी उस यात्रा में उन के साथ रहे थे। उन्हों ने स्टेट्समैन , द टाइम्स लंदन , इंडियन एक्सप्रेस जैसे अख़बारों के अलावा समाचार एजेंसी यू एन आई और प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो में भी काम किया था। लंदन में वह भारत के उच्चायुक्त भी रहे और राज्यसभा के सदस्य भी। मैं उन को उन की सरलता और सौम्यता के लिए भी जानता हूं। पंजाबियत भी उन में भरपूर थी। पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा होने और वहां पढ़ने-लिखने के नाते पाकिस्तान से उन का खासा लगाव था। भारत-पाकिस्तान संबंधों को सहज बनाने की उन की कोशिश भले रंग नहीं लाई पर इस के लिए वह निरंतर सक्रिय रहे। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बस में लाहौर कुलदीप नैय्यर भी गए थे। एक समय वह अकसर लखनऊ आते रहते थे। यह अस्सी-नब्बे का दशक था। तब उन से कई बार मिलना हुआ करता था। एक बार लखनऊ से अयोध्या की उन की यात्रा में मैं भी उन के साथ गया था। वह मंदिर आंदोलन के उबलते हुए दिन थे। राम मंदिर भी वह तब गए थे। पूजा-अर्चना भी की थी। मंदिर आंदोलन के संतों से भी वह मिले थे और बाबरी एक्शन कमेटी के लोगों से भी। तमाम स्थानीय लोगों से भी।

उन की कोशिश थी कि कोई सर्वमान्य हल निकल जाए। लेकिन पाकिस्तान से सहज संबंधों की कोशिश की तरह वह यहां भी कामयाब नहीं हुए। पर निराश नहीं थे। अपनी सामर्थ्य भर उन्हों ने कोशिश पूरी की। लेकिन नफ़रत और विवाद की दीवार इतनी बड़ी हो चुकी थी कि कोई रास्ता शेष नहीं रह गया था। कुलदीप नैय्यर की आत्मकथा की भी एक समय चर्चा हुई लेकिन खुशवंत सिंह की आत्मकथा की तरह तहलका नहीं मचा सकी। कुलदीप नैय्यर ने पत्रकारिता के अलावा कई सारे सामाजिक कार्य भी किए हैं। मानवाधिकार के लिए भी वह लड़ते रहे हैं। लेकिन याद हम उन्हें उन की गौरवशाली और शानदार पत्रकारिता के लिए ही करते हैं। ख़ास कर इमरजेंसी में , इमरजेंसी के विरोध वाली पत्रकारिता के लिए। तमाम सारे सम्मान पाने वाले , ढेर सारी किताबों , लेखों , टिप्पणियों को लिखने वाले कुलदीप नैय्यर को हम भारतीय पत्रकारिता के कुलदीप के नाते सर्वदा अपनी यादों में याद रखेंगे , मन में बसाए रखेंगे।
विनम्र श्रद्धांजलि !

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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