New Delhi, Aug 20 : आज जब ज़्यादातर न्यूज़ चैनल्स पर चर्चाओं का मतलब तेज़ाबी बहसें हो चुकी हैं जिनका हासिल कुछ भी नहीं। इन बहसों में सिवाय शोर शराबे, दुराग्रहों, और बेहद सतही तर्कों के कुछ नहीं होता। 90 के दशक में कई ऐसे टीवी पत्रकार उभरे जिन्होंने मीडिया में सेंसेशन और अग्रेशन को तरजीह दी। उसके बाद 21वी सदी की मीडिया के कुछ चमत्कारी मीडिया किरदार भी जन्मे जो खबरों में सांप-बिच्छु, नाग-नागिन, और अपराध जगत की खबरों की मसालेदार घटिया सनसनी पत्रकारिता के नाम पर उतारते रहे।
इस सबके बीच एक नाम है जो बदलते दौर के साथ बदला नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी आपकी अदालत में हैं।
प्रश्न क्या रखने हैं इसकी तैयारी सब करते हैं। पर कैसे रखने हैं?? मारक प्रश्नों पर मेहमान को उत्तर देने के लिए सहज बाध्य कर देना और वो भी तब जब सामने अटल जैसा वाकपटु हो साधारण बात नहीं।
इस एपिसोड की एक और खासियत है। जज के तौर पर मृणाल पांडेय की मौजूदगी। जज और वादी दोनों कवि। और एक सेट पर तीन पत्रकार!!! एक जवाब मांगते हुए, एक जवाब देते हुए और एक उन जवाबों के परिपक्व निष्कर्ष निकलते हुए।
ये नब्बे के दशक के मध्य की पत्रकारिता है। गुज़रे बीस सालों से ज़्यादा वक़्त ने आक्रमकता के नाम पर पत्रकारिता का कितना बेड़ागर्क कर दिया गया है उसे भी आप इस एपिसोड को देखकर समझ सकते हैं।
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