अटल, रजत, मृणाल और आपकी अदालत

प्रश्न क्या रखने हैं इसकी तैयारी सब करते हैं। पर कैसे रखने हैं? मारक प्रश्नों पर मेहमान को उत्तर देने के लिए सहज बाध्य कर देना और वो भी तब जब सामने अटल जैसा वाकपटु हो साधारण बात नहीं।

New Delhi, Aug 20 : आज जब ज़्यादातर न्यूज़ चैनल्स पर चर्चाओं का मतलब तेज़ाबी बहसें हो चुकी हैं जिनका हासिल कुछ भी नहीं। इन बहसों में सिवाय शोर शराबे, दुराग्रहों, और बेहद सतही तर्कों के कुछ नहीं होता। 90 के दशक में कई ऐसे टीवी पत्रकार उभरे जिन्होंने मीडिया में सेंसेशन और अग्रेशन को तरजीह दी। उसके बाद 21वी सदी की मीडिया के कुछ चमत्कारी मीडिया किरदार भी जन्मे जो खबरों में सांप-बिच्छु, नाग-नागिन, और अपराध जगत की खबरों की मसालेदार घटिया सनसनी पत्रकारिता के नाम पर उतारते रहे।

इस सबके बीच एक नाम है जो बदलते दौर के साथ बदला नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी आपकी अदालत में हैं। Rajat Sharma जी उनका इंटरव्यू कर रहे हैं। 1995 का ये एपिसोड कमाल का है। पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि स्थापित पत्रकारों के लिए ये इंटरव्यू मज़बूत उदाहरण है।

प्रश्न क्या रखने हैं इसकी तैयारी सब करते हैं। पर कैसे रखने हैं?? मारक प्रश्नों पर मेहमान को उत्तर देने के लिए सहज बाध्य कर देना और वो भी तब जब सामने अटल जैसा वाकपटु हो साधारण बात नहीं। हवाला कांड से लेकर नरसिम्हा राव से अटल के रिश्ते तक, तत्कालीन दौर में यूपी में मायावती की सरकार बनवाने फिर अलग हो जाने तक के प्रश्न और उनके तर्क संगत उत्तर मांगना उतनी ही सरलता के साथ ये दीगर है।

इस एपिसोड की एक और खासियत है। जज के तौर पर मृणाल पांडेय की मौजूदगी। जज और वादी दोनों कवि। और एक सेट पर तीन पत्रकार!!! एक जवाब मांगते हुए, एक जवाब देते हुए और एक उन जवाबों के परिपक्व निष्कर्ष निकलते हुए।
ये नब्बे के दशक के मध्य की पत्रकारिता है। गुज़रे बीस सालों से ज़्यादा वक़्त ने आक्रमकता के नाम पर पत्रकारिता का कितना बेड़ागर्क कर दिया गया है उसे भी आप इस एपिसोड को देखकर समझ सकते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)