‘मिनी लोकसभा चुनाव’ से क्‍यों हैं दूर प्रशांत किशोर? आखिर है कहां राजनीतिक के खिलाड़ी

prashant kishore

प्रशांत किशोर कहां हैं, देश के 5 राज्‍यों में चुनाव होने हैं और उनका नाम तक चर्चा में नहीं हैं । चुनाव रणनीतिकार कहां गायब है, आइए जानते हैं ।

New Delhi, Feb 03: देश में चुनाव का त्‍यौहार होने वाला है । उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं । तारीखों का ऐलान हो चुका है अब बस वोट पड़ने बाकी हैं । लेकिन एक नाम जो पिछले कुछ सालों में चुनाव के दौरान हरदम सामने आता रहा है वो इस बार चर्चा से गायब है । हम बात कर रहे हैं चर्चित चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की । आखिर पीके कहां हैं?

क्‍यों गायब हैं प्रशांत किशोर?
लोकसभा चुनाव 2014 से पहले तक प्रशांत किशोर कानाम शायद ही कोई जानता था, लेकिन बिहार के इस युवा ने लोकसभा चुनाव 2014 के बाद अपना सिक्‍का जमाया । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में पीके ही रहे ।prashant kishor (1) इसके बाद होने वाले हर चुनाव में उनके नाम की खूब चर्चा होती रही । लेकिन अब जबकि देश के 5 राज्‍यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, तो ऐसे में उनकी चर्चा कहीं भी नहीं हो रही है । खासतौर पर उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल से वो एकदम गायब हैं ।

क्‍या है वजह?
2014 में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे तकनीक आधारित प्रचार का हाथ रहा, ये उपज थी प्रशांत किशोर के दिमाग की । लोकलुभावन नारों के साथ मतदाताओं तक पहुंचने और रिझाने के कई नए तरीके जाद किए गए । प्रचार की इस भारी सफलता prashant kishorका पूरा श्रेय प्रशांत किशोर को मिला, और वो मीडिया में छा गए । लेकिन जीत के बाद प्रशांत किशोर का टकराव भाजपा से हो गया, उन्‍हें महत्‍वाकांक्षी कहा गया । इसके बाद वो देशभर की राजनीतिक पार्टियों के लिए काम करने लगे, दिग्‍गज उनसे सम्पर्क करने लगे । प्रोफेशनल फ्रंट पर प्रशांत ने किसी को निराश नहीं किया । लेकिन  आज वही प्रशांत गायब हैं, तो लोग तो पूछेंगे ही ।

UP चुनाव 2017 में फ्लॉप रहे
हालांकि उत्तर प्रदेश में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर बुरी तरह फेल हुए । बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के परिणाम में भी प्रशांत की जगह लालू फैक्टर ज्यादा हावी रहा । पंजाब के पिछले विधानसभा में भी प्रशांत को जमकर फजीहत झेलनी पड़ी थी । राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रशांत एक मंझे हुए रणनीतिकार हैं, देश की अधिकांश पार्टियों के साथ काम करने के बावजूद उनपर किसी पार्टी का ठप्पा नहीं लगा है । लेकिन वो एक पार्टी के ना होकर आखिर करना क्‍या चाहते हैं, इसे भांपना मुश्किल है ।
राजनेता हुए थे नाराज
बताया जाता है कि शुरू में कई राजनितिक दलों को प्रशांत किशोर की स्ट्रेटजी पसंद आई थी । लेकिन फिर दिग्‍गजों को उनके पार्टी में दखल से परेशानी होने लगी । उन्‍हें पार्टी में सीधे तौर पर आने से रोका गया । फिर वो कांग्रेस हो, टीएमसी हो या शिवसेना, सबने पीके से दूरी बना ली है ।