श्राप के कारण पिता नहीं बन सकते थे पांडु , तो पांडव किनके पुत्र थे ? ये कथा जान कर आप हैरान हो जाओगे

महाभारत से जुड़ी कई ऐसी कथाएं है जिनके बारे में आज भी कई लोग विस्‍तार से नहीं जानते हैं । आज जानिए पांडवों के जन्‍म से जुड़ी कथा, पिता का सुख प्राप्‍त ना करने का श्राप मिलने के बावजूद आखिर पांडु को 5 संतानें हुई कैसे ?

New Delhi, Jul 06 : महाभारत से जुड़े कई ऐसे रहस्‍य है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं । कौरवों और पांडवों के बारे में कई ऐसी बातें है जो लोगों के लिए आज भी पहेली जैसी है । महाभारत काल में पांडवों के जन्‍म की कथा भी बड़ी रोचक है । महाराज पांडु कभी पिता नहीं बन सकते थे, उनकी दोनों पत्नियां कुंती और मादरी ने फिर भी 3 और दो संतानों को जन्‍म दिया । इसके पीछे की कहानी जानेंगे तो आप भी हैरान रह जाएंगे ।

पांडु नहीं थे पांडवों के पिता
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये 5 पांडव कुंती और माद्री के पुत्र थे । लेकिन उनके पिता महाराज पांडू नहीं थे | कई लोग ऐसे होंगे  जिन्‍हे इस सत्‍य के बारे में जानकारी होगी लेकिन इसके पीछे का कारण क्‍या है ये बहुत कम लोग ही जानते हैं । आज जानिए यही रोचक कहानी, पांडवों के जन्‍म और महाराज पांडु को मिले इस श्राप की ।

इस वजह से मिला श्राप
एक बार की बात है जब महाराज पांडू वन में शिकार करने गए थे तो उन्होंने एक मृग जोड़े का पीछा करते हुए उनका शिकार कर लिया| परन्तु उन्हें पता नहीं था की वो मृग का जोड़ा वास्तव में एक ऋषि किंडम और उनकी पत्नी थे जैसे ही उन्हें तीर लगा वो अपने वास्तविक रूप में आ गए और महाराज पांडू को श्राप दिया की जैसे तुमने हमें काम क्रीडा करते वक़्त मारा है वैसे ही अगर तुम किसी के साथ भी काम क्रीडा करोगे तो तत्काल तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी|

उदास पांडु ने कुंती से कही मन की बात
इस श्राप से आहत होकर पांडू ने सारा राजकाज विदुर और पितामह भीष्म को सौंप कर वन में रहने का निर्णय किया| उनके साथ देवी कुंती और देवी माद्री भी सारे सुख और ऐश्वर्य का त्याग कर के वन की ओर चल पड़ी| एक दिन महाराज पांडू बड़े ही उदास बैठे थे| कुंती ने उनसे उनकी हताशा का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताते हुए कहा की मेरे बाद पांडू वंश का नामो निशान मिट जायेगा| तब कुंती ने उन्हें अपने वरदान के बारे में बताया की वो किसी भी देवता का आवाहन कर उनसे पुत्र प्राप्त कर सकती है|

धर्मराज का आह्वाहन कर हुई युधिष्ठिर की प्राप्ति
ये सुनकर पांडू आश्चर्य और प्रसन्नता से भर गए और उन्होंने कुंती को धर्मराज का आवाहन करने को कहा| उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए कुंती ने वैसा ही किया और उनके आशीर्वाद से उन्हें एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई जिसका नाम युधिष्ठिर रखा| उसके बाद पवनदेव के आशीर्वाद से भीम और देवराज इंद्र के आशीर्वाद से अर्जुन नामक पुत्र हुए|

मादरी को भी हुई दो पुत्रों की प्राप्ति
उनके पुत्रों को देख कर देवी माद्री की ममता भी जागृत हो उठी और उन्होंने भी देवी कुंती से एक बार उस दिव्य मंत्र के बारे में बताने को कहा| देवी कुंती को माद्री से बड़ा प्रेम था और वो उन्हें अपनी छोटी बहन मानती थी इसलिए उन्होंने उन्हें वो दिव्य मन्त्र बता दिया| देवी माद्री ने देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों का आवाहन किया और उसके फलस्वरूप नकुल और सहदेव की माता बनने का गौरव प्राप्त किया|

ऐसे हुई पांडु की मृत्‍यु
पांडवों के जन्‍म के बाद एक बार वसंत ऋतू में पांडू देवी माद्री की सुन्दरता देख कर आतुर हो उठे और देवी माद्री के लाख मना करने पर भी नहीं माने । उनसे प्रेमालाप के फलस्वरूप तत्काल उनकी मृत्यु हो गयी । पति की मृत्‍यु से आहत होकर देवी माद्री भी उनके साथ सती हो गयी | इसके बाद देवी कुंती ने पांचों पांडवों का लालन पालन करने का जिम्मा उठाया | पांचों पांडवों को शिक्षा दीक्षा के साथ अच्‍छे संस्‍कार दिए ।