भगवान राम भी नहीं कर सकते थे मेघनाथ का वध, फिर कैसे अनुज लक्ष्‍मण ने इंद्रजीत को मारा, रामायण की अनूठी जानकारी  

क्‍या आप ये जानते हैं कि केवल लक्ष्मण ही पूरी दुनिया में एक ऐसे व्‍यक्ति थे जो रावण के अजेय पुत्र मेघनाथ(इंद्रजीत) का वध कर सकते थे । रामायण से जुड़ा ये प्रसंग बहुत कम लोग ही जानते हैं, पूरी जानकारी आगे पढ़ें ।

New Delhi, Oct 30 : जिस प्रकार हनुमान भगवान श्री राम की कथा में शामिल हैं उसी प्रकार उनके अनुज लक्ष्‍मण भी संसार भर में विख्‍यात हैं । लक्ष्‍मण के बिना ना तो राम कभी पूर्ण थे अज्ञैर ना ही वो इतने सक्षम थे कि रावण को हरा पाते । बहुत कम लोग ही ये बात जानते हैं कि लक्ष्‍मण ही पूरी दुनिया में एक ऐसे व्‍यक्ति थे जो रावण के अजेय पुत्र मेघनाथ (इंद्रजीत) का वध कर सकते थे । अगर वो ना होते तो मेघनाथ को कोई मार ही ना सकता ।

अजेय था मेघनाथ
मेघनाथ रावण का सबसे बड़ा पुत्र था और अजेय था । उसे ईश्‍वर से विशेष वरदान प्राप्‍त था । उसने इंद्र पर विजय प्राप्‍त की थी इसलिए उसका एक नाम इंद्रजीत भी था । कथानुसार मेघनाथ ने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और उन्‍हें बांधकर लंका ले आया था । भगवान ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में जब इंद्र को मांगा तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे । स्‍वयं प्रभु श्रीराम ने कहा था – चूंकि लक्ष्मण ने मेघनाथ का वध किया था इसलिए वे ही सबसे बड़े योद्धा हुए ।

इंद्रजीत का वध रावण से भी मुश्किल
अगस्त्य मुनि और प्रभु श्री राम के बीच हुए एक वार्तालाप के अंश अनुसार, अगस्‍तय मुनि ने बताया – इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो चौदह वर्षों तक न सोया हो, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो  । हालांकि प्रभु राम को इस बात को लेकर जिज्ञासा हुई कि कैसे लक्ष्‍मण इन सभी शर्तों पर खरे उतरे ।

रीराम ने पूछ सेवाल
तब भगवान श्रीराम बोले – परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा । मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है । अगस्त्य मुनि ये जान चुके थे कि भगवान राम अपने भाई लक्ष्‍मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो, ऐसा चाहते हुए ये प्रश्‍न पूछ रहे हें ।

लक्ष्‍मण ने स्‍वयं दिया ये जवाब
ऐसे प्रश्‍न उठने पर लक्ष्‍मण जी ने स्‍वयं ये उत्‍तर दिए । प्रभु ने पूछा, 14 वर्ष तक हम तीनों साथ रहे, फिर तुमने सीता का मुख नहीं देखा, ये कैसे संभव है । तुम्‍हे मैं अपने हाथों से फल दिए, फिर भूखे कैसे रह गए और 14 साल तक सोए नहीं ? यह कैसे संभव है ? तब लक्ष्‍मण ने कहा – जब हम भाभी को ढूंढ रहे थे तब सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा था, मैं सिवाए उनके नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था । क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं ।

अनाहार और ना सोने के प्रश्‍न का जवाब
लक्ष्‍मण ने कहा जब आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे, मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी करता था । निद्र को मैंन बेध दिया था । उन्‍हें उर्मिला के पास जाना पड़ा । वहीं जब आप मुझे फल देते तो आपने हमेशा कहा कि लो ये फल रख लो । मैंने आपकी आज्ञा का ही पालन कर किया । फल आज भी कुटिया में रखे मिल जाएंगे । लक्ष्‍मण ने बताया कि उन्‍होने विश्वामित्र मुनि से बिना आहार किए जीने की विद्या सीखी थी । इसके प्रयोग से ही मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका ।