नेपाल की जीवित देवी “कुमारी” के बारे में क्‍या जानते हैं आप ? ये महाकाली का साक्षात स्‍वरूप होती हैं

भारत के पड़ोसी राज्‍य नेपाल में आज भी जीवित देवी “कुमारी” की पूजा की जाती है, आखिर क्‍या है जीवित देवी में आस्‍था की वजह । आगे जानिए धर्म से जुड़े से सबसे बड़े रहस्‍य …

New Delhi, Feb 08 :  विश्‍व के एकमात्र हिंदू देश के रूप में जाने जाने वाले नेपाल में धर्म और आस्‍था से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो आपको अचरज में डाल सकती हैं । भारतीय शास्‍त्रों में स्‍त्री को देवी कहा गया है लेकिन नेपाल में इसका अक्षरश: पालन किया जाता है । यहां जीवित देवी की पूजा की जाती है, इन्‍हें नेपाल में देवी “कुमारी” कहा जाता है । नेपाल में आए भीषण भूकंप से मची तबाही तो आपको याद ही होगी, लेकिन क्‍या आप जानते नेपाल के कुमारी देवी मंदिर में इस भूकंप से एक दरार तक नहीं आई थी ।

कुमारी ने बचाई जिंदगी
भूकंप से जहां पूरे नेपाल में विनाश लीला नजर आ रही थी वहीं कुमारी देवी का मंदिर एकमात्र ऐसी जगह थी जहां नुकसान के नाम पर पत्‍ता तक नहीं हिला था । स्‍थानीय लोगों के मुताबिक उस वक्‍त जो भी उस मंदिर में मौजूद थे सभी अपने प्राणों को बचाने में सफल रहे । ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ क्‍योंकि कुमारी देवी का आशीर्वाद उन पर था ।

नेापाल की जीवित देवी
नेपाल में कुमारी देवी की पूजा 17वीं शताब्‍दी से चली आ रही है । ऐसी मान्‍यता है कि ये देवी लोगों की प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करती हैं । कुमारी देवी मां महाकाली का अवतार मानी जाती है ओर तब तक इस पद पर विराजमान रहती हैं जब तक उनके मासिक चक्र शुरू नहीं होते । इसके बाद देवी की पदवी दूसरी कुमारी को दे दी जाती है । देवी चुनने की प्रकिया आसान नहीं होती ।

विशेष जाति से होती हैं देवी
जीवित देवी या कुमारी देवी शाक्य या वज्रचार्य जाति से संबंध रखती हैं । इन्हें नेपाल के नेवारी समुदाय द्वारा चुना जाता है । एक बार देवी का चुनाव हो जाए तो उनके 3 साल का होते ही उन्‍हें अपने परिवार से अलग कर दिया जाता है । इसके बाद उनकी 32 स्‍तरों में कड़ी परीक्षा ली जाती है । इन बालिकाओं को अविनाशी कहा जाता है । अर्थात जिनका कभी अंत नहीं हो सकता ।

जन्‍म कुंडली का भी विशेष स्‍थान
कुमारी देवी बनने के लिए बालिका की कुंडली में मौजूद ग्रह नक्षत्र देखकर ही आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है । ये प्रक्रिया भी कुछ कुछ वैसी ही होती है जैसे बोद्ध धर्म में लामा का चुनाव किया जाता है । जीवित देवी बनने के लिए बालिकाओं की कुंडली से लेकर ग्रह नक्षत्रों के दशा-दिशा को कसौटी पर कसा जाता है । इसके लिए कई प्रकार की प्रक्रिया होती हैं ।

दी जाती है बलि, राक्षस नृत्‍य
जीवित कुमारी बनने के लिए चयनित बालिका के समक्ष भेंस की बलि दी जाती है । इसके अलावा पारंपरिक राक्षसों के मुखैटे वाला नृत्‍य भी किया जाता है । इन परिस्थितियों में भी जो बच्‍ची घबराती नहीं है वहीं मां काली की अवतार मानी जाती है और कुमारी की अगली पदवी के दावेदार होती हैं । इस विशेष धार्मिक कार्यक्रम में कई लोग शामिल होते हैं ।

बाहर नहीं जातीं कुमारी देवी
कुमारी देवी बनाए जाने के बाद बच्‍ची को पूजनीय स्‍थल में ही रखा जाता है । उनकी देखभाल के लिए महिलाएं होती हैं । कुमारी देवी यहीं अपनी शिक्षा भी ग्रहण करती हैं । धार्मिक कार्यों में वो अपना ज्‍यादातर समय बिताती हैं । देश के धार्मिक कार्यक्रमों में उन्‍हें पालकी में बिठाकर लाया जाता है । लोग उनसे आशीर्वाद लेते हैं । कुमारी देवी के पांव जमीन पर नहीं रखने दिए जाते ।

कुंवारी ही रह जाती हैं
मासिक धर्म की शुरुआत के साथ ही देवी की पदवी खाली कर दी जाती है । इसके बाद कुमारी देवियां अपना सामान्‍य जीवन जीने के लिए आजाद होती हैं । हालांकि इसका एक पहलू ये भी है कि जिन बालिकाओं को कुमारी देवी माना जाता था उनके पदवी से अलग होने के बाद उनसे कोई शादी के लिए तैयार नहीं होता । मान्‍यता है कि कुमारी देवी से शादी करने वाले की मृत्‍यु जल्‍दी हो जाती है । इसलिए ज्‍यादातर पूर्व कुमारियां कुंवारी ही रह जाती हैं ।