जिन लक्ष्मण ने खुशी-खुशी भगवान श्री राम के साथ 14 बरस का वनवास काटा उसी अनुज को भगवान राम ने मृत्युदंड दे दिया । जानिए ऐसा किन परिस्थितियों में हुआ ।
New Delhi, Jul 05 : रामायण के कई प्रसंग है जिनके बारे में में कम ही चर्चा होती है । राम वनवास, वन गमन, सीता हरण, रावण वध जैसे सभी प्रसंग लोग भलिभांति जानते सुनते आए हैं । लेकिन कुछ ऐसे भी तथ्य हैं जिन्हें सभी लोगों ने नहीं सुना है । क्या आप रामायण के उस प्रसंग के बारे में जानते हैं जब भगवान श्री राम को न चाहते हुए भी अपने जान से प्यारे अनुज लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा था ।
ये रहा प्रसंग
यह घटना उस समय की है जब श्री राम रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटे थे । कुछ समय बीतने के बाद एक दिन यम देवता किसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने के लिए श्री राम के पास आये । चर्चा प्रारम्भ होने से पूर्व उन्होने भगवान राम से कहा कि आप जो भी प्रतिज्ञा करते हैं, उसे अवश्य पूर्ण करते हैं। इसीलिए मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं, जब तक मेरे और आपके बीच ये वार्तालाप चले कक्ष में कोई ना आए । जो आएगा आप उसे मृत्युदंड देंगे । श्री राम यम को वचन दे देते हैं ।
लक्ष्मण को बनाते हैं कक्ष का प्रहरी
यम को वचन देने के बाद भगवान श्री राम लक्ष्मण को अपने पास बुलाते हैं और उन्हें द्वारपाल की जिम्मेदारी देते हुए कहते हैं कि जब तक उनके और यम के बीच वार्तालाप हो रहा है। तब तक वह किसी को भी अंदर न आने दे। अन्यथा उन्हें उस व्यक्ति को मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते है।
ऋषि दुर्वासा का आगमन
कक्ष में यम और श्री राम का वार्तालाप चल रहा था और लक्ष्मण द्वार रोके खड़े थे । कुछ समय बाद वहां ऋषि दुर्वासा आते हैं और लक्ष्मण को कहते हैं कि वह श्री राम को उनके आगमन के बारे में जानकारी दें । लेकिन बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ऐसा करने से विनम्रता पूर्वक इनकार कर देते हैं । इस पर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हाकर पूरी अयोध्या नगरी को श्रराप देने की चेतावनी देते हैं ।
श्राप से बचने के लिए उठाया ये कदम
अब लक्ष्मण जी के सामने एक विकट परिस्थिति आ गयी थी । उन्हें निर्णय लेना था कि या तो उन्हें श्री राम द्वारा दी गयी आज्ञा का उल्लंघन करना होगा या संपूर्ण आयोध्या को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाना होगा । लक्ष्मण ने ये भांपते हुए तनिक भी देर नहीं लगाई कि ऋषि का क्रोध नगर वासियों को लील जाएगा । इसलिए वह स्वयं का बलिदान देने को तैयार हो गए ।
लक्ष्मण ने कक्ष में प्रवेश किया
लक्ष्मण ने कक्ष में आकर श्री राम को दुर्वासा ऋषि के आगमन की सूचना दे दी । ये देखकर कि लक्ष्मण ने उनका दिया वचन तोड़ दिया है और अब उन्हें वचन की मर्यादा रखने के लिए अपने भाई को मृत्युदंड देना पड़ेगा राम बहुत व्यथित हो गए । उन्होने अपने गुरु का स्मरण किया और उन्हें कोई रास्ता दिखाने को कहा।
लक्ष्मण ने दिया बलिदान
गुरदेव ने श्री राम को बताया कि अपने किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो। जब लक्ष्मण जी ने यह सुना तो उन्होंने कहा कि आप से दूर रहने से तो अच्छा है कि मैं आपके वचन की पालना करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधी ले ली।