सुहागिन महिलाओं के मंगलसूत्र से जुड़ी अनोखी बातें, ज्‍योतिष क्‍या कहता है ये भी जानें

क्‍या महिमा है मंगलसूत्र की, आखिर इसे पहनने के पीछे क्‍या वजह, क्‍यों सिर्फ सुहागिन महिलाएं ही मंगलसूत्र पहनती हैं, इन सारे सवालों का जवाब आपको यहां मिलेगा ।

New Delhi, Nov 22 : विवाह पूर्व जहां एक लड़की मेकअप, ज्‍वेलरी से बहुत दूर रहती है वहीं विवाह के बाद पांव से लेकर माथे तक सुहाग की अलग-अलग निशानियों से लद जाती है । पांव में बिछिया, पायल, हाथ में चूड़ी, गले में मंगलसूत्र, माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर । ये सभी उनके सुहागिन होने की निशानी समझे जाते हैं । इनसे वो तभी अलग होती है जब उसके पति की मौत होती है या फिर वो उससे अलग हो जाती हैं ।

मंगलसूत्र का है विशेष महत्‍व
सुहाग की सभी चीजों में मंगलसूत्र का विशेष महत्‍व है । जिस तरह सिंदूर सुहाग का प्रतीक है उसी प्रकार मंगलसूत्र भी सुहागिन के सुहाग की सलामती का प्रतीक है । विवाह में मंगलसूत्र पहनाकर पुरुष स्‍त्री को अपना बनाता है और स्‍त्री अपने दांपत्‍य जीवन पर पड़ने वाली हर बुरी नजर से बचाने के लिए इस मंगलसूत्र को धारण करती है ।

बुरी नजर से बचाते हैं मंगलसूत्र के काले मोती
मूलत: मंगलसूत्र काले मोतियों और सोने से बना होता है, मंगलसूत्र के काले मोती दंपति को बुरी नजर से बचाते हैं । ये शनि की काली छाया से बचाव करते हैं । मंगलसूत्र के मोती अगर टूटकर गिर जाएं तो उन्‍हें समेटकर दोबारा पिरो दें । ज्‍योतिष में मंगलसूत्र को विपत्तियों से बचाने वाला बताया गया है । इसे पहनना आवश्‍यक माना गया है ।

मंगलसूत्र का सोना सेहत के लिए लाभदायक
ज्योतिष के अनुसार सोना गुरू ग्रह के प्रभाव में होता है । ये ग्रह वैवाहिक जीवन में खुशहाली, संपत्ति और ज्ञान का कारक होता है । यह ग्रह धर्म का भी कारक है ।  सोना पहनने से सकारात्‍मक ऊर्जा का उत्‍सर्जन होता है और ये हृदय के लिए बहुत लाभदायक होता है । गले में सोना पहनने से  स्‍त्री का इम्‍यून सिस्‍टम स्‍ट्रॉन्‍ग रहता है ।

कप डिजाइन वाले मंगलसूत्र का अर्थ
आजकल बाजार में कई प्रकार के मंगलसूत्र मौजूद हैं । मनभावन डिजाइन में ये मंगलसूत्र सुहागिन महिलाओं का बहुत भाते हैं । लेकिन इसका पारंपरिक डिजाइन दो कप वाला ही है । ये कप सत्‍व सत्व गुणों से भरपूर माने जाते हैं । इन्‍हें शिव और शक्ति का प्रतीक माना जाता है । शिव शक्ति एक दूसरे के पूरक कहे जाते हैं, इनके प्रेम से अधिक प्रेम की व्‍याख्‍या कहीं नहीं मिलती ।

अलग-अलग राज्‍यों में अलग-अलग मायने
भारत के हर राज्‍य में मंगलसूत्र अलग-अलग तरह के प्रयोग में लाए जाते हैं । महाराष्‍ट्र में अलग तरह के मंगलसूत्र पहने जाते हैं तो वहीं दक्षिण भारत में अलग । लेकिन मंगलसूत्र पहनने के मायने सभी जगह एक रहते हैं । सुहागिन की पति की लंबी उम्र की कामना और बुरी नजर से उनका बचाव । इसे अलग अलग नामों से भी पुकारा जाता है लेकिन सबका अर्थ एक ही होता है ।

मंगलसूत्र उतारना है निषेध
प्राचीन मान्‍यताओं के अनुसार पति ने एक बार गले में मंगलसूत्र पहना दिया तो वो तब तक नहीं उतारा जा सकता जब तक कोई अनहोनी ना हो जाए । अन्‍यता किसी भी परिस्थिति में मंगलसूत्र को उतारने की मनाही है । इसका खोना और टूटना दोनों ही अशुभ माना जाता है । मंगलसूत्र यदि कभी उतारना भी पड़े तो उसकी जगह पर एक काला धागा गले में डाल लेना चाहिए ।

प्राचीन समय में बांधा जाता था पीला धागा
मोती और सोने के मंगलसूत्र नए जमाने के फैशन मात्र है । प्राचीन समय में सफेद धागे को हल्‍दी में डुबोकर मंगलसूत्र के रूप में पहनाया जाता है । इस मंगलसूत्र में तीन गांठें लगाई जाती थीं । एक दूल्‍हा लगाता था और दो दूल्‍हे की बहन द्वारा लगाई जाती थी । महिलाएं इस धागे को तब तक इसे पहने रहती थीं जब तक उनके पति की मृत्‍यु नहीं हो जाती थी ।

वर पक्ष की ओर से लाया जाता है मंगलसूत्र
शादी में पहनाया जाने वाला मंगलसूत्र प्राचीन काल से वर पक्ष की ओर से ही लाया जाता है । क्‍योंकि इसे पहनाने के बाद दुल्‍हन सदा के लिए वर की हो जाती है इसलिए इसे वर पक्ष की ओर से लाने की ही परंपरा है । पुराने समय मांएं अपनी बेटियों के वर या मंगलसूत्र को भी नहीं देखती थीं, ऐसा कहते हैं कि इससे नजर लग जाती है ।