नंदी कैसे बने भोलेनाथ के वाहन, क्या है उनका रहस्य, जानिए

mahadev nandi

नंदी किस तरह से भोलेनाथ के वाहन बने, उनका जन्म कैसे हुआ, और क्या है उनका रहस्य, इसके बारे में आपको सारी जानकारी हम दे रहे हैं। ध्यान से पढ़िए।

New Delhi, Nov 19: महादेव के भक्तों को ये बात पता होती है कि उनकी प्रिय सवारी नंदी बैल है. लेकिन इसके पीछे की कहानी किसी को नहीं पता होगी, आखिर नंदी कैसे भोलेनाथ के वाहन बन गए. क्यों महादेव ने नंदी को ये वरदान दिया था। इस के बारे में पुराणों में जानकारी मिलती है। नंदी के शिव के वाहन बनने की पूरी कहानी आज हम आपको बताएंगे। आप अक्सर देखते होंगे कि शिव मंदिर में शिव की प्रतिमा के सामने नंदी की प्रतिमा होती है, मंदिर के बाहर भी नंदी की प्रतिमा होती है। नंदी बैल को पुराणों में भी विशेष स्थान दिया गया है। नंदी केवल शिव के गण नहीं हैं, वो उनके परम भक्त होने के साथ साथ साथी और मित्र भी हैं।

शिलाद ऋषि से शुरू हुई कहानी
पुराणों से मिली जानकारी के मुताबिक शिलाद ऋषि को ब्रह्मचारी व्रत का पालन करते हुए ये डर सताने लगा था कि उनका वंश खत्म हो जाएगा। इसलिए उन्होंने एक बालक को गोद लेने का फैसला किया। शिलाद ऋषि कोई सामान्य बच्चा गोद नहीं लेना चाहते थे। बल्कि ऐसा बच्चा गोद लेना चाहते थे जिसे भोलेनाथ का आशीर्वाद मिला है और जो आध्यात्मिक हो। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव की आराधना शुरू की।

तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए
शिलाद ऋषि लगातार तपस्या करते रहे, उनकी कठोर तपस्या से खुश हो कर महादेव प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। इस पर शिलाद ऋषि ने कहा कि वो एक पुत्र की कामना करते हैं। भगवान शिव ने उनसे कहा कि जल्द ही उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी। इसके बाद एक दिन ऋषि को खेत में एक बच्चा मिला जिसके चेहरे पर असमान्य तेज था। उसी समय आकाशवाणी हुई कि यही तुम्हारी संतान है. इसका अच्छे से लालन पालन करना। इसी बालक का नाम उन्होंने नंदी रखा।

नंदी अल्पायु थे
कुछ ही दिनों में शिलाद ऋषि को पता चल गया कि नंदी अल्पायु हैं. ये जानकर नंदी दुखी होने के बजाय हंसने लगे. उन्होंने अपने पिता से कहा कि शिव के आशीर्वाद से आपने मुझे प्राप्त किया है तो मेरी आयु की रक्षा करना भी उनका काम है। ऐसा कहकर नंदी शिव की आराधना करने चले गए। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर भोलेनाथ प्रकट हुए। उन्होंने नंदी से वरदान मांगने को कहा।

नंदी ने मांगा महादेव का साथ
नंदी अपने सामने महादेव को पाकर अपनी उम्र के बारे में भूल गए। उन्होंने वरदान में हमेशा के लिए शिव का साथ मांग लिया। इस पर महादेव खुश हुए और उन्होंने नंदी को बैल का चेहरा देकर  अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।इस तरह से नंदी ने न केवल अपनी नियती को बदला बल्कि खुद अपने हाथों अपने भाग्य का निर्माण किया।

हलाहल विष और नंदी
जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तो उस में से सबसे पहले हलाहल विष निकला था। ये विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद भी समस्त मानव जाति को खत्म कर देती। इस विष का उपयोग ना किया जाए इसलिए इसे महादेव ने खुद पीने का फैसला किया। उन्होंने विष को पी लिया। लेकिन माता पार्वती नहीं चाहती थी कि विष उनके शरीर में पहुंचे। इसलिए उन्होंने उसे गले में ही रोक लिया था।

नंदी ने भी पिया विष
जब महादेव उस विष को पी रहे थे तो उसकी कुछ बूंदे गिर गई थी। उस विष को नंदी ने अपनी जीभ से साफ किया। ये देख कर देव और दानव दोनों हैरान रह गए. महादेव को भगवान हैं, लेकिन नंदी ने कैसे ये विष पी लिया. इस पर नंदी ने कहा कि जब उनके स्वामी ने वो विष पिया तो उन्हे भी पीना ही थी। नंदी की ये बात सुनकर महादेव अत्यंत प्रसन्न हो गए।

महादेव ने दिया वरदान
नंदी के इस काम से प्रसन्न हो कर महादेव ने कहा कि नंदी मेरे सबसे बड़े भक्त हैं. मेरे पास जितनी शक्तिया हैं वो सारी नंदी के पास भी हैं। अगर पार्वती के कारण मेरी सुरक्षा हुई है तो नंदी की भी सुरक्षा होगी। विष का कोई असर नंदी पर नहीं होगा। इस घटना के बाद से ही नंदी और महादेव का साथ और मजबूत हो गया। दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गए।

नंदी के कानों में भक्त करते हैं प्रार्थना
शिव और नंदी के बीच प्रगाढ़ संबंध का अंदाजा िसी बात से लगाया जा सकता है कि शिव की प्रतिमा के सामने नंदी की प्रतिमा बनाई दाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि महादेव तो समाधि में रहते हैं। भक्त अपनी प्रार्थना नंदी के कान में कहते हैं। भक्तों की प्रार्थना महादेव तक पहुंचाने का काम नंदी करते हैं। माना जाता है कि नंदी के कान में की गई प्रार्थना खुद नंदी की अपने स्वामी से प्रार्थना बन जाती है। और महादेव नंदी की प्रार्थना को अस्वीकार नहीं करते हैं।