हिंदू धर्म में शादी के समय मांग में सिंदूर भरने का क्या महत्व है, क्यों विवाहित स्त्रियों के लिए सिंदूर लगाना जरूरी माना गया है । जानिए सिंदूर से जुड़े इन रहस्यों के बारे में ।
New Delhi, Feb 16 : एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानों …. फिल्म का ये डायलॉग असल जिंदगी में भी उतना ही महत्व रखता है । चुटकी भर सिंदूर माथे पर सजा हो तो लड़की विवाहिता कहलाती है । वो किसी के पूरे जीवन को उस लाल रंग के सिंदूर में समाए हुए रहती है । माना जाता है कि विवाहिता की पूरी दुनिया उस सिंदूर में ही समाहित होती है । स्त्री के 16 श्रृंगार में से सबसे महत्वपूर्ण माने गए सिंदूर के महत्व के बारे में क्या जानते हैं । आखिर हिंदू महिलाएं क्यों सिंदूर लगाती हैं । आगे जानिए …
सिंदूर लगाने के पीछे मान्यताएं और कारण
ये तो आप जानते ही होंगे कि सिंदूर में पारा यानी कि मर्करी पाया जाता है । पृथ्वी पर ये अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है । मान्यता है कि सिंदूर को माथे पर लगाने से दिमाग शांत रहता है और शीतल अनुभव होते हैं । शादी के बाद ये स्त्री की यौन क्षमताओं को बढ़ाता है और रक्त संचार में सहायक होता है । ये महिला को तनावमुक्त रखता है ।
बुरे प्रभावों से बचाता है पारा
पारा धातु को बरुी नजर से बचाने वाला भी माना जाता है । इसे मस्तक पर लगाने से महिला को किसी की भी बरुी नजर नहीं लगती । सिंदूर का लाल रंग बुरी गतिविधियों को महिला से दूर रखता है । जिस स्थान में सिंदूर भरा जाता है यानी कि सिर में मांग का स्थान, वह ब्रह्मरंध और अध्मि नामक मर्म के ऊपर होता है । यहां सिंदूर लगाने से बुरी ऊर्जाओं से विवहिता की रक्षा होती है ।
सामुद्रिक शास्त्र
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार एक स्त्री के बिगड़े भाग्य को भी सिंदूर की मदद से ठीक किया जा सकता है । स्त्री की किस्मत विवाह के बाद बदल जाती है । ये स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है साथ ही विवाहिता के अपने पति में प्रेम को भी दर्शाता है । एक विवाहिता कितनी भी सज धज के तैयार हो जाए लेकिन उसके मांग का सिंदूर उसकी सुंदरता में चार चांद लगा ही देता है ।
देवी पार्वती की कृपा
हिंदू धर्म में लाल रंग शुभता का प्रतीक है । इस रंग के माध्यम से सती और पार्वती की ऊर्जा को दर्शाया गया है । सती हिंदू धर्म में आदर्श पत्नी के रूप में मीनी गई हैं, जिन्होने अपने पति के सम्मान के लिए खुद को अग्नि वेदी को समर्पित कर दिया था । हिंदू धर्म में माता पार्वती की पूजा करना विवहित स्त्रियों के लिए मंगलकारी माना गया है । माता स्त्रियों को ‘अखंड सौभागयवती’ होने का आशीर्वाद देती हैं।
दिमाग को तनावमुक्त रखता है पारा
विवाह के बाद एक लड़की की पूरी जिंदगी बदल जाती है । ससुराल में जिम्मेदारियों के चलते उसे तनाव हो सकता है । सिंदूर में पारा होने के कारण जब कोई स्त्री इसे अपने माथे में लगाती है तो यह उसे शीतलता प्रदान करता है । सिंदूर महिलाओं को सिर में दर्द, अनिद्रा जैसे अन्य मस्तिष्क से जुड़े रोगों से दूर रखता है । विवाह के पश्चात इसीलिए सिंदूर लगाने को जरूरी माना गया है ।
देवी लक्ष्मी का प्रतीक
हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है सिंदूर । माथे पर कुमकुम का टीका और मांग में सिंदूर देवी लक्ष्मी के लिए सम्मान का प्रतीक माना गया है । देवी लक्ष्मी अच्छे भाग्य और स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक हैं । शुभ अवसरों में पति को पत्नी की मांग में सिंदूर भरना चाहिए, ये शुभ माना गया है । सिंदूर लगाने से दंपति एक दूसरे के साथ ज्यादा समय तक रहते हैं ।
सिंदूर लगाने के पीछे की पौराणिक कथा
सिंदूर की प्रथा कहां से शुरू हुई इसके पीछे एक पौराणिक कथा का वर्णन मिलता है । भगवान ने वीरा और धीरा नाम के दो युवक और युवती को बनाया और उनको सुंदरता सबसे अधिक दी गई। धीरा दिखने में बहुत ही सुंदर थी और वीरा तो वीरता कि मिशाल था। भगवान ने इन दोनो का विवाह करवाने का फैसला किया था। दोनो का हुआ विवाह विवाह के बाद दोनों एक दूसरे के साथ काफी खुश थे। इन दोनो कि बातें पूरे देश में फैल गई और चर्चे भी होने लगे।
धीरा पर मोहित हुआ डाकू
कहा जाता है कि वीरा और धीरा दोनो ही शिकार खेलने जाते थे कि तभी कालिया नाम के एक डाकू ने धीरा को देख लिया और उसपर मोहित हो गया। धीरा को पाने के लिए उस डाकू ने वीरा को मारने की योजना बनाई। एक दिन शिकार में देर होने के कारण दोनों ने पहाड़ी पर रात गुजारने का फैसला कर लिया। धीरा को अचानक प्यास लगी तो वीरा रात में ही पानी लेने के लिए निकल गया।
वीरा ने रक्त से भरी धीरा की मांग
पानी लेने जा रहे वीरा पर अचानक कालिया डाकू ने हमला कर दिया जिससे वीरा घायल हो गया और धरती में गिर के तड़पने लगा। ये देखकर डाकू जोर जोर से हंसने लगा जिसकी आवाज धीरा ने सुन ली। जब धीरा भागती हुई उस जगह पर पहुंची तो वीरा की हालत देखकर क्रोधित होकर पीछे से डाकू पर हमला कर दिया। धीरा के वार से घायल डाकू जब आखिरी सांसे गिर रहा था तभी वीरा को होश आया और उसने धीरा की वीरता से खुश होकर उसके मांग में अपने रक्त भर दिया। उसी दिन से सिंदूर भरने की ये प्रथा की शुरुआत हुई थी।