‘हिंसा और नफ़रत के इस खेल में मानवता का गला लगातार घोंटा जा रहा है’

इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए मूल रूप से हमारे राजनीतिक दल ही ज़िम्मेदार हैं। आज सभी दलों में “देश से बड़ा दल, दल से बड़ा व्यक्ति” की नीति अपनाई जाने लगी है।

New Delhi, Jul 27 : बड़े ही अफ़सोस की बात है कि देश में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। कई जगहों पर हिन्दुओं के हाथों मुसलमान मारे जा रहे हैं, तो कई जगहों पर मुसलमानों के हाथों हिन्दू भी मारे जा रहे हैं। ये मामूली अपराध की घटनाएं नहीं हैं, बल्कि नफ़रत की वजह से दूसरे समुदाय के लोगों को निशाना बनाने की घटनाएं हैं।

नेता और बुद्धिजीवी अपनी-अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के मुताबिक अलग-अलग इंसानी जान का अलग-अलग मोल लगाते हैं। मसलन, वामपंथी, कांग्रेसी और अन्य बीजेपी-विरोधी केवल मुसलमानों के मारे जाने पर छाती पीटते हैं और हिन्दुओं के मारे जाने पर चुप्पी साध लेते हैं। इसी तरह बीजेपी से जुड़े लोग केवल हिन्दुओं के मारे जाने पर हाय-तौबा मचाते हैं और मुसलमानों के मारे जाने को तरह-तरह से जस्टिफाइ करने लगते हैं।
हिंसा और नफ़रत के इस खेल में मानवता का गला लगातार घोंटा जा रहा है और इसमें कोई भी समुदाय पीछे नहीं है। पिछले दो-तीन साल में जहां हिन्दू कट्टरपंथियों के हाथों रकबर खान, पहलू खान, जुनैद और अखलाक जैसे अनेक लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं, वहीं मुस्लिम कट्टरपंथियों के हाथों भी अंकित सक्सेना, रिया गौतम, प्रशांत पुजारी, पंकज नारंग इत्यादि अनेक लोग बलि चढ़ाए जा चुके हैं।

शुक्र है कि देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हो रहा, लेकिन हिंसा की छोटी-छोटी घटनाएं हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत और ध्रुवीकरण को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया, सोशल मीडिया, व्हाट्सऐप इत्यादि सभी इस नफ़रत और ध्रुवीकरण को हवा देने में हथियार बन गए हैं।
लेकिन इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए मूल रूप से हमारे राजनीतिक दल ही ज़िम्मेदार हैं। आज सभी दलों में “देश से बड़ा दल, दल से बड़ा व्यक्ति” की नीति अपनाई जाने लगी है और इस व्यक्ति-केंद्रित और दलगत राजनीति के चलते येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतना और सत्ता हासिल करना ही सबका लक्ष्य हो गया है।

विपक्षी दलों का आरोप है कि कथित गोरक्षक और हिंसा करने वाले अन्य हिन्दू बीजेपी और आरएसएस के समर्थक हैं, लेकिन मामला इतना सरल हो, यह ज़रूरी नहीं। मुमकिन है कि ऐसी कुछ घटनाओं के पीछे वे विरोधी दल भी हों, जो सरकार को बदनाम करके अपने पक्ष में माहौल बनाना चाहते हैं।
देश में इस वक्त जिस निम्न स्तर की राजनीति चल रही है, उसमें कुछ भी असंभव नहीं है। कोई भी पार्टी दूध की धुली नहीं है। सबका व्यवहार संदिग्ध है। सभी हिंसा और बंटवारे की राजनीति कर रही हैं। ज़मीन से कटे और समस्याओं को सुलझाने में विफल नेताओं के लिए मासूम नागरिकों को आपस में लड़ाना ही उनका वोट हासिल करने का शॉर्टकट है।

ऐसे में, जिन भी हिन्दू और मुसलमान भाइयों-बहनों को मेरे ऊपर तनिक भी भरोसा है, उनसे अपील है कि सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप इत्यादि पर
1. धर्म से जुड़ी किसी भी चर्चा पर ध्यान न दें।
2. भूलकर भी हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में न पड़ें।
3. लाख उकसाए जाने पर भी दूसरे समुदाय के लोगों के लिए अनुचित शब्दों का प्रयोग न करें।
4. दोनों तरफ से फैलाए जा रहे नफ़रत भरे संदेशों को भूलकर भी शेयर या फॉरवर्ड न करें।
5. केवल सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने वाली बातें लिखें और केवल ऐसे ही संदेशों को शेयर या फॉरवर्ड करें।

दूसरे समुदायों को लेकर सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर आप जिन संदेशों को बड़े ही उत्साह से शेयर या फॉरवर्ड करते हैं, उनसे किसी भी समस्या का हल नहीं होगा, केवल हिंसा और नफ़रत ही बढ़ेगी। आप समझते हैं कि आप अपने धर्म के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, लेकिन ऐसा करके आप केवल विभिन्न राजनीतिक दलों का हथियार बन रहे हैं।
इस देश में जहां सभी मुसलमानों को यह समझ लेना चाहिए कि मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कोई जुमला नहीं, बल्कि एक कड़वी सच्चाई है। वहीं सभी हिन्दुओं को भी समझ लेना चाहिए कि मुस्लिम तुष्टीकरण के समानान्तर हिन्दू तुष्टीकरण की राजनीति भी प्रबल हो चुकी है। अलग-अलग समुदायों के “तुष्टीकरण” की इस राजनीति में उनके “पुष्टीकरण” की मंशा पूरी तरह नदारद है।

न तो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों ने आज तक मुसलमानों का भला किया है, न ही हिन्दू तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों ने हिन्दुओं की भलाई में कोई कदम उठाया है। इसलिए राजनीतिक दलों के उकसावे पर आपस में लड़ना और एक-दूसरे से नफ़रत करना विशुद्ध पागलपन है।
याद रखें, नकारात्मक बातों से नकारात्मकता और बढ़ती है। इसलिए, हम सब केवल सकारात्मक बातें करें और सकारात्मकता को बढ़ावा दें। शुक्रिया।

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)