‘तेरा महापुरुष बनाम मेरा महापुरुष’ की लड़ाई से इतिहास में आ रहा संतुलन!

महापुरुषों की राजनीति में बीजेपी कांग्रेस पर लगातार भारी पड़ रही है और कांग्रेस को मुंह चुराना पड़ रहा है।

New Delhi, Nov 02 : पद बड़ा होता है या कद?
जवाहर लाल नेहरू का पद बड़ा था। सरदार वल्लभ भाई पटेल का कद बड़ा था। यूं कांग्रेस की नज़र में जवाहर लाल नेहरू बड़े हैं। बीजेपी की नज़र में सरदार वल्लभ भाई पटेल बड़े हैं। जनता की नज़र में कौन बड़ा है? यह सवाल हर आदमी के ज़ेहन में उतर आया है। वैसे महापुरुषों की राजनीति में बीजेपी कांग्रेस पर लगातार भारी पड़ रही है और कांग्रेस को मुंह चुराना पड़ रहा है। देखा जाए तो कांग्रेस के महापुरुषों की लिस्ट मोटे तौर पर ऐसी दिखाई देती है- महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह।

दूसरी तरफ, बीजेपी के महापुरुषों की लिस्ट मोटे तौर पर इस प्रकार दिखाई दे रही है-
महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, भीमराव अंबेडकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद, मदन मोहन मालवीय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी।

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां बीसवीं सदी के जिन महापुरुषों को अभी तक उनका उचित सम्मान नहीं दिला पाई हैं, मोटे तौर पर उनकी सूची इस प्रकार है-
लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री।

कुछ नेता जो बहुत ही कम उम्र में शहीद हो गए, लेकिन जिनका हौसला 80-90 साल जीकर गुज़रे महापुरुषों से भी बड़ा था और जो देश के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा रहे हैं, उन्हें भी उनका उचित सम्मान मिलना चाहिए। इनकी सूची मोटे तौर पर इस प्रकार है-
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाक उल्लाह ख़ान, राम प्रसाद बिस्मिल।
बहरहाल, एक तरह से यह अच्छा ही है कि कांग्रेस और बीजेपी की इस लोकतांत्रिक लड़ाई में इतिहास अपने आप को संतुलित कर रहा है और धीरे-धीरे देश अपने विभिन्न महापुरुषों के बारे में जानने लगा है और उनका सही आकलन करने लगा है।
लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और आगामी लोकसभा चुनावों में ‘तेरा महापुरुष बनाम मेरा महापुरुष’ की इस लड़ाई का लाभ बीजेपी को कितना मिलेगा?

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)