सीबीआई आखिर किसके हित में काम कर रही है?

सीबीआई के पास अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ सबूत के तौर पर टेलीफोन पर हुई बातचीत के रिकॉर्ड हैं। वाट्सएप्प मैसेज के स्क्रीन शॉट्स हैं। रिश्वत की रकम की पूरी मनी ट्रेल है।

New Delhi, Oct 22 : सीबीआई अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। किसी वकील को चाहिए कि वह एक पीआईएल दाखिल करे और पिछले 2 साल में सीबीआई द्वारा दर्ज किए गए हर अहम मामले की न्यायिक जांच की मांग करे। इस एजेंसी में करप्शन इस वक़्त सतह पर तैर रहा है। ये बात हम नही, खुद सीबीआई कह रही है। ये उसके अपने टॉप ऑफिसर्स के बयान हैं। सीबीआई में नंबर दो की पोजीशन संभाल रहे गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ 2 करोड रुपए की रिश्वत का मामला दर्ज किया गया है।

अभूतपूर्व स्थिति ये है कि यह मामला खुद सीबीआई के मुखिया आलोक वर्मा की पहल पर दर्ज किया गया है। राकेश अस्थाना पर इससे पहले भी करीब आधा दर्जन मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच चल रही है। यह जांच भी किसी और ने नही बल्कि खुद सीबीआई ने खोली है। अस्थाना इससे पहले सूरत के संदेसरा ग्रुप से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में भी जांच के दायरे में हैं। वे सूरत के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं और सरकार के बेहद करीबी बताए जाते हैं। उधर अस्थाना ने भी पलटवार करते हाउस कैबिनेट सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखकर सीबीआई के मुखिया आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी है।

मगर सबसे अहम बात है वे सबूत जो CBI ने अपने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ जुटाए हैं। मोइन कुरैशी नाम के मीट कारोबारी के अवैध लेन-देन को सेटल करने के मामले में अस्थाना पर बिचौलियों के ज़रिए 2 करोड़ की रिश्वत उठाने का आरोप है। सीबीआई के पास अपने ही स्पेशल डायरेक्टर के खिलाफ सबूत के तौर पर टेलीफोन पर हुई बातचीत के रिकॉर्ड हैं। वाट्सएप्प मैसेज के स्क्रीन शॉट्स हैं। रिश्वत की रकम की पूरी मनी ट्रेल है। और इतना ही नही इस मामले में शिकायत करने वाले सतीश सना नाम के व्यापारी का सेक्शन 164 के तहत अदालत में दिया बयान भी है। सीबीआई इसी मामले में मनोज प्रसाद और सोमेश श्रीवास्तव नाम के दो दलालों को अरेस्ट भी कर चुकी है। रॉ का एक बड़ा अधिकारी भी जांच के दायरे में है। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अपनी ही एजेंसी के शिकंजे में आए सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना एक से बढ़कर एक हाई प्रोफाइल मामलों की जांच कर रहे हैं। इनमें मोइन कुरैशी का केस तो है ही साथ में नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के मामले भी हैं। विजय माल्या का केस भी उन्हीं के पास है।

अब सोचिए कि ऐसी CBI आखिर किसके हित में काम कर रही है? देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के भीतर की ये सड़न इस बात का इशारा करती है कि कितने ही मामले कमप्रोमाइज हो सकते हैं या हो चुके होंगे! कितने ही मामलों में राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ हो सकता है या हो चुका होगा! जब जांच करने वाले अधिकारियों पर ही इतने गंभीर आरोप हो तो भला ऐसी एजेंसी पर कौन भरोसा कर सकता है!! प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के जमाने की CBI को जमकर कोसते आए हैं मगर यह उनके दौर की सीबीआई है जिसके अपने फोड़े से मवाद फूट फूट कर बह रहा है। कोई हैरानी नही होनी चाहिए अगर इतिहास इस सीबीआई को अपने दौर की सबसे दागी सीबीआई के तौर पर याद करे!

(पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)