एक और सियासी परिवार के बहू की राजनीति में एंट्री, बसपा के जरिये सियासी समीकरण बदलने की कोशिश

अजित जोगी ने अपनी पुत्रवधू को अहम जिम्मेदारी सौंपी है, वैसे भी ऋचा राजनीतिक रुप से काफी सक्रिय हैं।

New Delhi, Oct 23 : देश की राजनीति में सियासी परिवारों की बहूओं ने अपना लोहा मनवाया है, अब एक और बहू राजनीति में एंट्री मार चुकी है, जी हैं, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ के पूर्व सीएम अजित जोगी की पुत्रवधू और अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी की। जिन्होने हाल ही में बसपा की सदस्यता ली है। ऋचा बसपा में शामिल होकर छत्तीसगढ के सियासी समीकरण को बदलने की कोशिश में है, विधानसभा चुनाव में ऋचा लगातार लोगों के बीच जाकर चुनावी अभियान को धार देने की कोशिश में है।

ऋचा जोगी को अहम जिम्मेदारी
अजित जोगी ने अपनी पुत्रवधू को अहम जिम्मेदारी सौंपी है, वैसे भी ऋचा राजनीतिक रुप से काफी सक्रिय हैं, उनकी सियासी समझ और राजनीतिक सूझबूझ का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि पिछले दिनों अजित जोगी ने उन्हें हाई प्रोफाइल सीट राजनांदगांव की जिम्मेदारी सौंपी थी, इस सीट से सीएम रमन सिंह चुनाव लड़ते हैं। ऋचा में पार्टी के लिये वहां जमीन तैयार करने की कोशिश की है।

कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद
बसपा में शामिल होने से पहले ऋचा को जनता कांग्रेस छत्तीसगढ की ओर से राजनांदगांव सीट का प्रभारी बनाया गया था, इस सीट से मौजूदा विधायक सीएम रमन सिंह हैं, प्रभारी बनते ही ऋचा ने स्थानीय कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करना शुरु किया, पहले कहा जा रहा था कि अजित जोगी इस सीट से रमन सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे, इसी वजह से ऋचा को प्रभारी बनाया गया है, हालांकि बाद में उन्होने ऐलान किया कि वो विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।

अकलतरा सीट से बीएसपी प्रत्याशी
ऐसा भी नहीं है कि अमित जोगी की पत्नी राजनीति में नौसिखिया हैं, वो पिछले 2 सालों से लगातार कार्यकर्ताओं खासकर महिलाओं से सीधा संपर्क बनाने में जुटी हुई है, जनसभाओं और कार्यक्रमों में पहुंचने पर ऋचा के साथ सेल्फी लेने की होड़ सी मच जाती है। वो महिला कार्यकर्ताओं से ज्यादा बात करती हैं, उनकी समस्याएं सुनती हैं, और उनका समाधान करने की कोशिश करती हैं। बसपा ने उन्हें अकलतरा सीट से उम्मीदवार घोषित किया है।

बसपा के टिकट पर जकांक्ष के प्रत्याशी
मायावती और अजित जोगी के बीच गठबंधन को लेकर सीटों का जो फॉर्मूला तय हुआ है, उसे लेकर कुछ लोगों में असंतोष था, इस गठबंधन के तहत बसपा के 35 और जकांक्ष के हिस्से में 55 सीटें आई, लेकिन कहा जा रहा था कि बसपा को अच्छे उम्मीदवार नहीं मिल रहे थे, इसी वजह से जकांक्ष के ही उम्मीदवारों को बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा जा रहा है।