स्टेट लेवल एथलीट कलाईमणि के नाम चार गोल्ड मेडल दर्ज है, वो फोनेक्स रनर्स टीम के साथ 41 किमी की मैराथन दौड़ में भी हिस्सा ले रही हैं।
New Delhi, Apr 11 : एक तरफ ऑस्ट्रेलिया में चल रहे 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के खिलाड़ी सोने की बरसात कर रहे हैं, तो वहीं भारत में ऐसे कई खिलाड़ी हैं, जिन्होने देश के लिये ना जाने कितने मेडल जीते हैं, देश का नाम ऊंचा किया है, इसके बावजूद वो गरीबी और तंगहाली में जीने को विवश है। तमिलनाडु की एक ऐसी ही राज्य लेवल की मैराथन धावक है, जो मुश्किल से अपना जीवन गुजर -बसर कर पाती हैं। 45 साल की इस राज्यस्तरीय एथलीट का नाम कलाईमणि है। वो अपना घर-परिवार चलाने के लिये चाय का स्टॉल लगाती हैं।
चाय से स्टॉल से परिवार का गुजारा
स्टेट लेवल एथलीट कलाईमणि के नाम चार गोल्ड मेडल दर्ज है, वो फोनेक्स रनर्स टीम के साथ 41 किमी की मैराथन दौड़ में भी हिस्सा ले रही हैं। इस दौड़ के लिये भी वो कड़ी मेहनत कर रही हैं। अपने परिवार और तीन बच्चों को पालने के लिये कलाईमणि कोयंबटूर में चाय बेचती हैं। इसी चाय के स्टॉल से जो कमाई होती है, उनसे उनके परिवार का गुजारा होता है।
सरकार से नहीं मिली कोई मदद
कलाईमणि ने एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए बताया कि मुझे ना तो प्रदेश सरकार और ना ही केन्द्र सरकार से कभी किसी तरह की कोई मदद मिली है। मैं हर दिन चाय का स्टॉल लगाती हूं, जिससे 400- 500 रुपये कमाई हो जाती है। इसी से मेरे परिवार का भी गुजारा होता है, और अपने खेलों की जरुरत को भी पूरा करती हूं।
सुबह 21 किमी दौड़ लगाती हैं
भले पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से कलाईमणि दौड़ को पूरा समय नहीं दे पाती हैं, लेकिन वो सुबह के समय वर्कआउट सेशन कभी मिस नहीं करती हैं। इस एथलीट के अनुसार वो रोजाना 21 किलोमीटर की दौड़ लगाती है, ये वर्कआउट उनके प्रैक्टिस सेशन का भी हिस्सा है, हालांकि दिन में काम होने की वजह से वो अपने दौड़ के लिये समय नहीं निकाल पाती हैं।
स्कूल से ही बनीं एथलीट
कोयंबटूर में छोटी सी चाय स्टॉल चलाने वाली एथलीट 10वीं क्लास तक पढ़ी हुई भी हैं। उन्होने न्यूज एजेंसी को बताया कि स्कूल के दिनों में वो कबड्डी खेलती थी, साथ ही एथलीट के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। स्कूल के दिनों से ही वो एथलीट की तरफ खींची चली आई, जिसके बाद आज तक वो दौड़ रही हैं।
बैंक ने नहीं की मदद
कलाईमणि ने बताया कि वो अपने एथलीट के जूनून को आगे ले जाना चाहती थी, राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में भाग लेने के लिये उन्होने बैंकों से लोन लोन की कोशिश की, ताकि उस पैसे से ट्रेनिंग की चीजें खरीद सके, लेकिन किसी भी बैंक ने उन्हें लोन नहीं दिया। हालांकि स्पोर्ट्स इवेंट्स में भाग लेने के लिये तब उनकी कुछ दोस्तों ने मदद की थी, जिसकी वजह से उन्होने कई मेडल्स जीते।
सरकार का रवैया उदासीन
चार बार गोल्ड मेडल जीत चुकी कलाईमणि ने कहा कि खेलों के लिये सरकार का रवैया भी उदासीन है। वो खिलाड़ियों को सुविधाओं और ट्रेनिंग के नाम पर कुछ भी नहीं देते और ना ही उनका उत्साह बढाने के लिये कुछ करते हैं, ऐसे में नये खिलाड़ी कहां से पैदा होंगे। अगर सरकार थोड़ी सुविधा दें, कई नये खिलाड़ी आ जाएंगे।