‘सत्ता की आत्मा में घर कर लिया है, सत्ता किसी की हो, कार्य-संस्कृति कांग्रेस की रहेगी’

Modi

आप नरेंद्र मोदी को ही देख लीजिए और जांच लीजिए कि इन चार सालों में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को कितना ज़बरदस्त ढंग से फालो किया है ।

New Delhi, Jul 06 : एक बात लिख लीजिए कि देश में चाहे जिस पार्टी का भी शासन हो , शासन रहेगा कांग्रेस का ही । कांग्रेस ने किसी दीमक की तरह सत्ता की आत्मा में घर कर लिया है । सत्ता किसी की भी रहे , कार्य-संस्कृति रहेगी कांग्रेस की ही । नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भले कर दें देश को लेकिन कांग्रेस संस्कृति से देश और देश की सत्ता को मुक्त करना अब किसी के वश में नहीं है ।

नरेंद्र मोदी के वश में भी नहीं । आप नरेंद्र मोदी को ही देख लीजिए और जांच लीजिए कि इन चार सालों में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को कितना ज़बरदस्त ढंग से फालो किया है । वैज्ञानिकता , तर्क और तथ्य की कसौटी पर बात करें और जो लैब्रोट्री टेस्ट करने के भी आप शौक़ीन हैं तो ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है । सिर्फ वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव के समय के नरेंद्र मोदी के विभिन्न भाषणों को सुन लीजिए । भाइयों , बहनों ! आप निश्चित ही पाएंगे कि नरेंद्र मोदी आज की अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ धुआंधार बोल रहे हैं । बोलते ही जा रहे हैं ।

आज भी लगता है कि हम मनमोहन सिंह की निकम्मी सरकार में ही सांस ले रहे हैं । सब कुछ वही-वही तो है । बदला है तो सिर्फ़ नाम , पार्टी और बोलना । Modi Lunchमनमोहन सिंह बोलते नहीं थे तो उन की थोड़ी बहुत इज्जत बची हुई थी । लेकिन नरेंद्र मोदी ने खुद बोल-बोल कर अपना पायजामा , पैंट जो कहिए ख़ुद उतार लिया है । बस कच्छा उतरना शेष है ।

अटल बिहारी वाजपेयी याद आते हैं । अटल जी कहते थे , चुप रहना भी एक कला है । लेकिन अच्छा भाषण देने की कला जानना और अच्छे दिन , आने वाले हैं ! का स्लोगन दे कर गगन बिहारी बातें करना और उसे ज़मीनी सचाई में बदलना और बात है । अपने ही इस कहे को ज़मीन पर लाना कठिन काम है । इस को ज़मीन पर लाने में दूरी ही नहीं है बहुत लंबी-चौड़ी खाई खुद गई है । यह खाई दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है । अब तो कोई भगीरथ ही चाहिए जो अच्छे दिन के स्लोगन को गंगा की तरह हिमालय से धरती पर ले आए । नरेंद्र मोदी और उन की टीम के वश का तो अब यह अच्छे दिन आने का स्लोगन बोलना और सपना देखना भी नहीं रहा । अब दिखाएंगे भी क्या और लाएंगे भी क्या ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)