‘राज्यसभा में ईवीएम नहीं था, जदयू के सांसद भी 6 थे, फिर भी कांग्रेस पटखनी खा गई’

कांग्रेस के सुखीराम रेड्डी, रानी नारा तथा विप्लव ठाकुर भी वोट डालने नहीं आए। लेकिन मेरी आंखें तो पता नहीं क्यों और किसी की नहीं सिर्फ़ राम जेठमलानी को ही तलाशती और याद करती रहीं ।

New Delhi, Aug 13 : इधर पता नहीं क्यों राम जेठमलानी की बहुत याद आ रही है । बिलकुल पारसमणि फिल्म के उस गीत की लय में कि , वो जब याद आए , बहुत याद आए ! अभी जब राज्य सभा में उप सभापति के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जद यू के उम्मीदवार हरिवंश चुने गए तो उन को हराने के लिए वोट देने के लिए राज्य सभा में नहीं दिखे जेठमलानी । तब जब कि लालू और उन के बेटे की प्राथमिकता ही सर्वदा नीतीश को पटकनी देनी है । आने को तो और भी बहुत सारे लोग नहीं आए । वह लोग भी जो नरेंद्र मोदी की नफ़रत में दिन-रात जीते हैं , वह लोग भी क्यों नहीं आए नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी को हराने के लिए वोट देने , यह भी एक यक्ष प्रश्न है ।

और तो और कर्नाटक में कांग्रेस की मदद ले कर , खून के आंसू पी कर सरकार चला रहे कुमार स्वामी की पार्टी जनता दल सेक्यूलर ने भी नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी को अपना सारा वोट थमा दिया । बीजू जनता दल ने भी नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी को वोट थमा दिया । बागी शिव सेना ने तो हरिवंश को वोट दिया बल्कि प्रस्तावक भी बनी लेकिन तृणमूल कांग्रेस के मानस भूमिया और केडी सिंह , समाजवादी पार्टी के बेनी प्रसाद वर्मा और जया बच्चन भी वोट डालने नहीं आए । कांग्रेस के सुखीराम रेड्डी, रानी नारा तथा विप्लव ठाकुर भी वोट डालने नहीं आए। लेकिन मेरी आंखें तो पता नहीं क्यों और किसी की नहीं सिर्फ़ राम जेठमलानी को ही तलाशती और याद करती रहीं ।

अभी भी मन में प्रश्न उपस्थित है कि जेठमलानी क्यों नहीं आए । नीतीश के जद यू के सिर्फ़ छ सदस्य राज्य सभा में हैं , फिर भी कांग्रेस का उम्मीदवार पटकनी खा गया । तब जब कि यहां ई वी एम भी नहीं था । ई वी एम वाली धांधली और ऐसा आरोप भी नहीं । लेकिन इस बात की चर्चा , चीख-ओ-पुकार वाले न्यूज़ चैनलों ने भी भूल कर नहीं की । मास्टर स्ट्रोक वाले आचार्य पुण्य प्रसून वाजपेयी तो चलिए रिंग से बाहर हैं अभी लेकिन रिंग में उपस्थित अपने रवीश बाबू तो फुल फ़ार्म पर हैं । उन्हों ने भी अपनी चीख-पुकार भरी पुकार में यह गुहार नहीं लगाई । अख़बारों की टिप्पणियां , संपादकीय भी चुप । और तो और सोशल साईट के जहरीले रण बांकुरे भी ख़ामोश । यह तो गुड बात नहीं हैं ।

हां , यह ज़रुर है कुछ बिघ्न-संतोषी लेखकों , पत्रकारों ने ज़रुर अपनी कुढ़ और चिढ़ ज़रूर फेसबुक पर परोसी है । लेकिन इन सवालों पर नहीं । ई वी एम की चिग्घाड़ पर नहीं । महागठबंधन की शर्मनाक पराजय पर नहीं ।कुछ दूसरे तरह की तरह नफ़रत पर उलटियां की हैं । कि अरे , हरिवंश तो हरिवंश नारायण सिंह निकले ! नीतीश का चिंटू , मोदी की गोद में बैठ गए , आदि-इत्यादि । लेकिन कम संख्या के बावजूद कांग्रेस की अधिक संख्या को पटकनी दे कर आन कैमरा कैसे जीत गए हरिवंश नारायण सिंह , संख्या बल के बावजूद । कैसे धूल चाट गया महागठबंधन । 96 संख्या वाला एन डी ए आख़िर कैसे पत्तों की तरह 125 वोट बटोर ले गया इस पर भी गहरी चुप्पी । यह रणनीति इन कुढ़ और चिढ़ में आकंठ डूबे लोगों को नहीं दिखी , न इस पर बात करना रास आया । बस यह लोग इसी बात पर तान लिए रहे , आलाप लगाते रहे कि अरे , यह तो हरिवंश नहीं , हरिवंश नारायण सिंह हैं । बताइए कि यह क्रांतिकारी लोग , बात-बेबात आग लगा देने वाले लोग , इसी दम पर , इसी रणनीति पर देश में 2019 में निजाम बदल देने की क्रांति का उदघोष करते फिर रहे हैं ।

पुनश्च : अभी मित्र Santosh Tewari ने संदेश लिख कर सूचना दी कि राम जेठमलानी अब शायद राज्य सभा सदस्य नहीं हैं । तो मैं ने अभी-अभी जांच-पड़ताल की । तो पता चला कि राम जेठमलानी राज्य सभा सदस्य हैं और कि उन्हों ने अपना कीमती वोट भी दिया है हरिवंश को । मतलब क्रास वोटिंग किया है । यह अभी-अभी आ रही खबरों में बताया जा रहा है । जनसत्ता डाट काम की ख़बर है यह । बिहार बेस्ड एक क्षेत्रीय चैनल पर भी। फिर भी राज्य सभा चुनाव में राम जेठमलानी को लाइव न देख पाने की तड़प तो जस की तस है । और उन की याद की तलब भी । तेजस्वी यादव को अलर्ट हो जाना चाहिए । क्यों कि उन के बापू लालू की सेहत के लिए यह सूचना हानिकारक है ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)