कृषि कानूनों की वापसी का पंजाब पर होगा सबसे ज्यादा असर, बन रही ये 5 संभावनाएं

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पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस ने कृषि कानूनों का लगातार विरोध किया है, उसने केन्द्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ पंजाब विधानसभा में दो बार रिजॉल्यूशन भी पास किया था।

New Delhi, Nov 19 : पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है, बड़ी संख्या में पंजाब के किसान इन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, ऐसे में ठीक गुरुपर्व के दिन पीएम द्वारा इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान करना कई राजनीतिक संकेत भी देता है, खासतौर पर ये देखते हुए कि पंजाब में कुछ ही दिनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, आइये जानते हैं कि ये फैसला पंजाब के चुनावी माहौल में किस तरह का सियासी असर डाल सकता है।

बीजेपी के लिये आशा
पिछले करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन के बाद पीएम मोदी के इस फैसले से पंजाब में बीजेपी को आशा की नई किरण नजर आने लगी हैं, कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी पंजाब में जमीनी स्तर पर काफी विरोध झेल रही थी, इसकी वजह से 24 साल पुराने सहयोगी अकाली दल से पिछले साल ही अलगाव हो चुका है, इसके अलावा पंजाब के ग्रामीण इलाकों में भी बीजेपी का रास्ता मुश्किल हो रहा था, अब पंजाब में बीजेपी मोदी के हालिया बयान से खुद के लिये उम्मीदों को नया जीवन देने की कोशिश करेगी, ये भी गौर करने वाली बात है कि 2 दिन पहले ही सिख श्रद्धालुओं के लिये करतारपुर कॉरिडोर खोला गया है, ये फैसला भी सिख समुदाय में बीजेपी के लिये अच्छा माहौल बना सकता है।

श्रेय लेने आगे आएगी कांग्रेस
पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस ने कृषि कानूनों का लगातार विरोध किया है, उसने केन्द्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ पंजाब विधानसभा में दो बार रिजॉल्यूशन भी पास किया था, नरेन्द्र मोदी द्वारा ये कानून वापस लिये जाने के फैसले पर कांग्रेस श्रेय लेने की लड़ाई में सबसे आगे रहेगी, वो दावा करेगी कि उसने मोदी सरकार को ये फैसला लेने के लिये मजबूर किया, सीएम चन्नी ने ग्रामीण वोटरों को लुभाने के लिये पहले ही कई घोषणाएं रखी है, ऐसे में केन्द्र द्वारा कृषि कानून वापस लेने का फैसला कांग्रेस सरकार की राह और आसान करेगा, हालांकि इस होड़ में वो अकेले नहीं होंगे, बल्कि आम आदमी पार्टी और बीजेपी भी इसका क्रेडिट लेने की कोशिश करेगी।

नये राजनीतिक समीकरण
कृषि कानूनों को वापस लिये जाने के फैसले ने पंजाब में नये राजनीतिक समीकरणों के संभावनाओं को जन्म दे दिया है, इस फैसले से सबसे बड़ी राहत शिरोमणि अकाली दल को मिली है, कृषि कानूनों पर उसने मोदी सरकार से समर्थन तो वापस लिया ही था, लेकिन अपने कोर वोटर्स में उसकी किरकिरी इस बात के लिये हो रही थी, कि उसने कृषि कानूनों पर ऑर्डिनेंस पास करने में मोदी सरकार का समर्थन किया था, इधर चुनाव को देखते हुए अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन किया था, उसने 117 में से 20 सीटें बसपा के लिये छोड़ी थी, हालांकि चन्नी के सीएम बनने के बाद ये दांव भी उल्टा पड़ता दिख रहा है, क्योंकि वो पंजाब के पहले दलित सीएम हैं, ऐसे में बसपा के परंपरागत वोट कांग्रेस के खाते में जा सकती है। हालांकि पंजाब में एक बड़ा सवाल अब भी ये है कि क्या अकाली और बीजेपी का फिर गठबंधन होगा, सिख और हिंदू मेजॉरिटी वाली विधानसभा में ये गठबंधन खासा कामयाब रहा था, राजनीतिक एक्सपर्ट भी इस संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं।

कैप्टन और बीजेपी गठजोड़
किसान कानूनों को वापस लिये जाने के फैसले ने एक और संभावना की राह खोल दी है, ये संभावना है कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी के बीच गठजोड़ की राह, पंजाब में सीएम पद से हटने के बाद कैप्टन ने कांग्रेस का साथ छोड़कर अपने लिये नया रास्ता तलाश लिया है, उन्होने पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से नई पार्टी बनाई है, साथ ही ये भी संकेत दिये हैं कि अगर कृषि कानून के मुद्दा सुलझ जाता है, तो वो बीजेपी के साथ सीटों का बंटवारा कर सकते हैं, ये बात ध्यान देने वाली है कि कैप्टन की पकड़ पंजाब के शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी है, ऐसे में आने वाले चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है।

किसान संगठनों का एक्स फैक्टर
संयुक्त किसान मोर्चा में 32 किसान संगठन जुड़े हुए हैं, जिसमें ज्यादातर की जड़े पंजाब से जुड़ी है, किसान कानूनों को वापस लिये जाने के बाद ये सभी विजय के उत्साह में रहेंगे, लेकिन क्या वो इस मामले में मिली अपनी जीत को चुनावी मुद्दे में तब्दील होने देंगे, ये भी एक बड़ा सवाल है, अभी तक इन सभी ने चुनाव लड़ने की संभावनाओं से इंकार किया है, लेकिन राजेवाल गुट जैसे कुछ संगठन है, जो राजनीतिक मंशा रखते हैं, कांग्रेस तथा आप इन्हें लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।