इस एक चीज के चलते SC/ST एक्ट बन गया है मोदी सरकार के गले की हड्डी, कल होगा भारत बंद

दलित समाज की नाराजगी को देखते हुए मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने और मूल रुप में लाने का फैसला लिया।

New Delhi, Sep 05 : देश में इन दिनों एससी-एसटी एक्ट 1989 को लेकर बहुत चर्चा हो रही है, एमपी में तो मामला इतना गर्म है कि सामान्य , पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था ने इसे लेकर 6 सितंबर को भारत बंद का ऐलान किया है। इसी वजह से प्रदेश के 6 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है। आखिर इस एक्ट में ऐसा क्या है कि देश और प्रदेश में इसे लेकर इतना हंगामा हो रहा है।

एक्सपर्ट ने क्या कहा ?
एक लीडिंग वेबसाइट में छपी रिपोर्ट के अनुसार मामले के एक्सपर्ट एक वकील ने बताया कि उनके पास 80 फीसदी ऐसे मामले आते हैं, जिनमें लोग इस एक्ट का गलत इस्तेमाल करते हैं, इसी वजह से सवर्ण लोगों में इसे लेकर आक्रोश दिख रहा है, हालांकि इस वजह से सोसाइटी का ही नुकसान हो रहा है, दूसरी ओर एक और वकील ने कहा कि एससी एसटी एक्ट में बिना जांच के ही एफआईआर दर्ज हो जाती है, और गिरफ्तारी भी की जाती है। गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में पेश किया जाता है, इसके तीन दिन तक जमानत नहीं मिलती, इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी, पहले मामले का जांच करने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आपको बता दें कि इसी साल 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक सरकारी कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस एक्ट को थोड़ा नरम कर दिया था, कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत देता है, तो तुरंत मामले की जांच स्थानीय वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करें, उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाए। कोर्ट के फैसले के बाद दलित समुदाय ने भारत बंद का ऐलान किया था, इस आंदोलन में करीब दर्जन भर लोगों की मौत हो गई थी।

सरकार का फैसला
दलित समाज की नाराजगी को देखते हुए मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट को पुराने और मूल रुप में लाने का फैसला लिया, सरकार ने कोर्ट के फैसले के बाद मॉनसून सत्र में अध्यादेश के जरिये विधेयक को मंजूरी दी। जिसके बाद ये पहले जैसे मूल रुप में आ गया। 6 सितंबर को एससी-एसटी के विरोध में सवर्ण समाज ने दो मांग रखी है, पहला सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, उसे वैसा ही रखा जाए, यानी शिकायत के बाद पहले मामले की जांच की जाए, फिर शख्स की गिरफ्तारी हो। यदि केस झूठा हो, तो केस करने वाले शख्स पर आर्थिक दंड और जेल की सजा दी जाए।

क्या है एससी-एसटी एक्ट ?
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम 11 सितंबर 1989 को पारित हुआ, जिसे 30 जनवरी 1990 से जम्मू -कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू किया गया। ये अधिनियम हर उस शख्स पर लागू होता है, जो एससी-एसटी का सदस्य नहीं है, और इस वर्ग के लोगों का शोषण करता है। इस अधिनियम में 5 अध्याय और 23 धाराएं हैं, इस एक्ट का उद्देश्य एससी-एसटी के खिलाफ हो रहे अपराधों को कम करना था। इसी वजह से इन जातियों के लोगों के विशेष सुरक्षा और अधिकार प्रदान किये गये हैं।

इस एक्ट के तहत आने वाले अपराध
एससी-एसटी वर्ग के सदस्यों के खिलाफ होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध, जैसे उन्हें जबरदस्ती मल-मूत्र खिलाना इत्यादि।
उनका सामाजिक बहिष्कार करना
एससी-एसटी वर्ग के साथ व्यापार करने से इंकार करना।
इस वर्ग के लोगों को काम ना देना या नौकरी पर ना रखना।
शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास उन्हें क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट फेंकना, या ऐसी चीजें फेंकना जिससे उन्हें परेशानी हो।
बल का इस्तेमाल करना, जैसे कपड़े उतारकर, चेहरे पर पेंट पोत, सार्वजनिक रुप से घुमाना।
गैर कानूनी ढंग से फसल काट लेना, खेत जोत लेना या उसकी जमीन पर कब्जा कर लेना।
भीख मांगने या बंधुआ मजदूरी करवाने के लिये मजबूर करना।
वोट नहीं देने देना या किसी खास प्रत्याशी को वोट देने के लिये मजबूर करना ।
महिला का उसकी इच्छा के खिलाफ, या फिर बलपूर्वक यौन शोषण करना ।