इस वजह से हार्दिक पटेल और उनका आंदोलन दोनों ‘खत्म’ हो गया, कभी बड़े-बड़े नेताओं की उड़ा रखी थी नींद

कांग्रेस में शामिल हो चुके अतुल पटेल का कहना है कि हार्दिक पटेल की ताकत एकता थी, उसके साथ जो टीम थी, वो उसे बड़ा नेता बनाने में जुटी थी, लेकिन अपने हाथों से ही उसने सबकुछ खत्म कर लिया।

New Delhi, Sep 07 : 14 दिनों से अनशन पर बैठे पाटीदार आरक्षण आंदोलन के प्रमुख नेता हार्दिक पटेल की तबीयत बिगड़ गई है, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है, आपको बता दें कि हार्दिक अनिश्चिकालीन अनशन पर बैठे हैं। इस बार उन्होने आरक्षण के साथ-साथ किसानों की कर्ज- माफी का मुद्दा भी अपनी प्रमुख मांगों में शामिल किया है, 25 अगस्त को पाटीदार नेता ने आंदोलन के 3 साल पूरे होने पर प्रशासन और प्रदेश सरकार से अहमदाबाद में भूख हड़ताल करने की इजाजत मांगी थी, ना मिलने पर उन्होने अहमदाबाद स्थित अपने घर से ही अनशन शुरु कर दिया। इससे पहले उन्होने गांधीनगर कलेक्टर से भी सत्याग्रह छावनी इलाके में अनशन पर बैठने के लिये इजाजत मांगी थी, जो उन्हें नहीं मिली थी।

भीड़ सिकुड़ी
पाटीदार आंदोलन शायद आपको भी याद होगा, लाखों की भीड़ को हार्दिक संबोधित करते थे। उनके एक आवाज पर हजारों लोग सड़कों पर उतर जाते थे, लेकिन इस बार उनका जादू फीका दिख रहा है, हालांकि पाटीदार नेता की दलील है कि प्रशासन की सख्ती की वजह से उनके समर्थक उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। लेकिन पिछले तीन सालों में ना तो गुजरात की सरकार बदली है और ना ही प्रशासन, विश्लेषकों का मानना है कि हार्दिक की लोकप्रियता कम हुई है, लोगों का उनसे मोहभंग हुआ है।

महत्वाकांक्षा की वजह से जन-समर्थन सिकुड़ा
कभी हार्दिक पटेल के ईद-गिर्ग अपार जनसमूह दिखता था, आज कुछ लोगों के बीच वो सिमट कर रह गये हैं, गुजरात के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि युवा नेता में जबरदस्त राजनैतिक और आर्थिक महत्वाकांक्षा है, जिसकी वजह से वो खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, उन्हें करीब से जानने वालों का कहना है कि वो अपने साथियों से भी राय-मशविरा करना तक पसंद नहीं करते हैं। वो सिर्फ वही करते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है। पाटीदार आंदोलन को करीब से देखने वाले लोगों का कहना है कि हार्दिक के दोस्त एक-एक कर उनसे दूर होते गये, जिन लोगों ने इस आंदोलन को खड़ा किया था, वो उनसे दूर हो गये, लेकिन हार्दिक ने ना तो उन्हें रोका और ना ही मनाने की कोशिश की, जिसकी वजह से वो खुद सिकुड़ कर रह गये।

वर्चस्व की लड़ाई
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से जुड़ने वाले वरुण पटेल ने कहा कि शुरुआत में हमने लड़ाई आरक्षण के लिये शुरु की थी, चूंकि हार्दिक सबसे छोटा था, तो उसे नेता मानने पर किसी को आपत्ति नहीं हुई, लेकिन जब आंदोलन की वजह से हार्दिक के साथ दिनेश भाई भांभनिया, केतन भाई पटेल और चिराग भाई पटेल राजद्रोह के आरोप में जेल गये, तो तीनों के घर वाले गुजर-बसर के लिये परेशान हो रहे थे, तो दूसरी ओर हमं जैसे लोग इस आंदोलन को जैसे-तैसे जिंदा रखने की कोशिश कर रहे थे, इसी बीत हार्दिक पटेल के घर वालों ने गरीबी का हवाला देते हुए समाज से चंदा मांगना शुरु कर दिया। जेल में बंद हार्दिक को डर सता रहा था, कि बाहर आंदोलन चलाने वाले लोग उनसे आगे ना निकल जाएं, इसी बात को लेकर वर्चस्व की लड़ाई शुरु हुई, जिसके बाद जेल से निकलते ही हार्दिक ने उन तीनों साथियों का पत्ता काटा, जो उनके साथ जेल गये थे। उन्हें जमानत मिलने के बाद हार्दिक ने कहा कि उन्होने सरकार से सांठ-गांठ कर ली है।

एकता थी हार्दिक की ताकत
कांग्रेस में शामिल हो चुके अतुल पटेल का कहना है कि हार्दिक की ताकत एकता थी, उसके साथ जो टीम थी, वो उसे बड़ा नेता बनाने में जुटी थी, लेकिन अपने हाथों से ही उसने सबकुछ खत्म कर लिया। एक-एक कर उसने कई लोगों को निकाल दिया, तो कुछ लोग उसकी तानाशाही की वजह से खुद ही छोड़कर चले गये। बढती राजनीतिक और आर्थिक महत्वाकांक्षा की वजह से अब वो कुछ लोगों के बीच घिरकर रह गया है।