2019 चुनाव में फिर पीके बन सकते हैं ‘किंगमेकर’, नीतीश ने आखिर क्यों चुना उन्हें अपना उत्तराधिकारी ?

बिहार में नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि अब सवालों के घेरे में है, तेजस्वी यादव लगातार हमलावर हैं, शराबबंदी जैसे मामले में भी नीतीश के तेवर ठंडे पड़ गये हैं।

New Delhi, Sep 23 : चुनावी रणनीति बनाने का काम छोड़कर प्रशांत किशोर अब जदयू में शामिल हो चुके हैं, नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी में शामिल करवाते हुए दो बातें कही थी, पहला कि वो भविष्य हैं, और दूसरा ये कि पीके का पार्टी में शामिल होना मेरी व्यक्तिगत खुशी है। इन दोनों बयानों के कई सियासी मायने निकाले गये हैं, पीके ऐसे समय में जदयू से जुड़े हैं, जब नीतीश कुमार कई मोर्चों पर घिरे हैं, वो उन्हें इस मुश्किल से निकालने का काम कर सकते हैं, इसके साथ ही बीजेपी के साथ गठबंधन में उन्हें वही रुतबा दिला सकते हैं, जो आज से करीब 5 साल पहले था। आइये आपको बताते हैं कि पीके कैसे नीतीश के लिये फायदेमंद होंगे।

नये चेहरे और आइडिया की जरुरत
बिहार में नीतीश कुमार की सुशासन वाली छवि अब सवालों के घेरे में है, तेजस्वी यादव लगातार हमलावर हैं, शराबबंदी जैसे मामले में भी नीतीश के तेवर ठंडे पड़ गये हैं, इसलिये उन्हें नये आइडिया और उन्हें लागू करने के लिये चेहरे की आवश्यकता थी, जो उनकी सुशासन वाली छवि को दुबारा से स्थापित कर सके, पीके इसमें अहम योगदान निभा सकते हैं, आपको बता दें कि 2015 विधानसभा चुनाव में सात निश्चय की परिकल्पना पीके की ही सोच थी।

दूसरे दलों में पहुंच
प्रशांत किशोर के रुप में नीतीश कुमार को एक ऐसा दूत मिल गया है, जिसकी पहुंच तमाम राजनीतिक दलों के शीर्ष पर बैठे नेताओं के साथ भी है। अगर 2019 में गठबंधन दौर की वापसी हुई, तो क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढेगी, ऐसे समय में पीके महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कहा जा रहा है कि अमित शाह नीतीश की बैठक में पीके भी मौजूद थे, जहां बिहार की सभी 40 सीटें जीतने के लक्ष्य की बात कही गई है।

युवा ब्राह्मण चेहरा
राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि 41 वर्षीय प्रशांत किशोर को ब्राह्णण होना भी नीतीश के सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा हो सकता है, जदयू कभी भी अपने दम पर बिहार में मजबूत ताकत नहीं रही, इसी वजह से उन्हें सत्ता पाने के लिये हमेशा सहयोगियों की जरुरत पड़ती है। इसका एक कारण जदयू का जातिगत वोट बैंक में बंधना भी है। अगर रीके नई सोशल इंजीनियरिंग को गढते हैं, तो शायद जदयू की ताकत बढ सकती है।

लोकसभा चुनाव में लिटमस टेस्ट
2019 लोकसभा चुनाव में पीके पटना में बैठ पूरे बिहार पर नजर रखेंगे, कहा जा रहा है कि वो खुद बक्सर से चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा बीजेपी कार्यकारिणी बैठक में पूरे 40 सीट जीतने का लक्ष्य रखा गया है, इस बार बिहार में सभी राजनीतिक दल करीब-करीब दो खेमों में हैं, एक तरफ बीजेपी-जदयू-लोजपा की एनडीए है, तो दूसरी ओर राजद-कांग्रेस हम समेत कुछ और छोटी पार्टियां है, ऐसे में इस चुनाव को पीके के लिये लिटमस टेस्ट कहा जा रहा है।