गौरी लंकेश- जिनके शब्दों में इंसानियत की आवाज़ होती है, उनकी आवाजें चारो ओर गूंजती रहती है

गौरी लंकेशों को इसलिए मार दिया जाता है ताकि समाज में सांप्रदायिकता का ज़हर बोने का काम बिना किसी परेशानी के होता रहे।

New Delhi, Sep 05 : गौरी लंकेश की हत्या सिर्फ़ गोली चलाने से नहीं हुई, बल्कि इस हत्या का असली कारण वह विचारधारा है जिसमें ग़रीबी, शोषण आदि से ध्यान हटाने के लिए किसी समुदाय या देश को सभी परेशानियों का कारण बता दिया जाता है। जब आतंकवाद के मामले में गिरफ़्तार व्यक्ति के जेल से बाहर आने पर उसका नायक की तरह स्वागत होने लगे तो हमें समझ जाना चाहिए कि गौरी लंकेश जैसी शख़्सियत का हमारे बीच मौजूद होने का क्या मतलब था। भीड़ में लोकतंत्र की हत्या का जश्न मनाया जा रहा है और नागरिक ख़ुद को पहले से ज़्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं । गौरी लंकेशों को इसलिए मार दिया जाता है ताकि समाज में सांप्रदायिकता का ज़हर बोने का काम बिना किसी परेशानी के होता रहे।

गौरी लंकेश ने जनता की भाषा में जनता से बात करने का रास्ता चुना था। यही काम मराठी में गोविंद पानसरे व नरेंद्र दाभोलकर और कन्नड़ में कलबुर्गी कर रहे थे। आज जो भी जनता से जनता के असली मुद्दों पर जनता की भाषा में संवाद कर रहा है उस पर ख़तरा मँडरा रहा है।

जिनके शब्दों में इंसानियत की आवाज़ होती है, उन्हें मारने के बाद भी उनकी आवाज़ चारों तरफ़ गूँजती रहती है। क्या गौरी लंकेश की बेख़ौफ़ अभिव्यक्ति की झलक हमें सोफ़िया की बुलंद आवाज़ में नहीं दिखती जिसे भाजपा की आलोचना करने के कारण जेल भेजने की कोशिश की गई? क्या गौरी लंकेश की आवाज़ में कैंपसों की उन लड़कियों की आवाज़ नहीं शामिल है जो अपने अधिकारों के लिए पुलिस की लाठियों का पूरी हिम्मत से सामना कर रही हैं? क्या गौरी लंकेश के तेवर हमें देश के उन तमाम एक्टिविस्टों की हिम्मत में नहीं दिखते जो धमकियों और साज़िशों का सामना करते हुए जनता के लिए संघर्ष कर रहे हैं?

लोकतंत्र में असहमति का सम्मान किया जाता है। जो विचारधारा असहमति को कुचलने की बात करती है, उससे भारतीय लोकतंत्र को बचाने की कोशिश करके ही हम गौरी लंकेश को सच्चा सम्मान दे पाएँगे। उनसे मुझे न केवल माँ का प्यार मिला, बल्कि दोस्ती का सच्चा स्नेह भी मिला था। हालात कैसे भी हों, हमें अन्याय देखकर चुप नहीं बैठना है – यही गौरी लंकेश के जीवन का संदेश है। अगर हम इस संदेश को अपने जीवन में उतार लें तो भारतीय लोकतंत्र का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।

(JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)