‘पेट्रोल, रोजगार और किसानों की कर्जमाफी सरकार के बस में नहीं है, ऐसी सरकार को बने रहना का हक नहीं’

भीड़ की हिंसा को बढ़ावा देते हुए झारखंड में हत्या के आरोपियों को माला पहनाने का काम करना राज्य मंत्री के बस में था। लेकिन किसानों का कर्ज़ माफ़ करना सरकार के बस में नहीं है।

New Delhi, Sep 13 : कभी पेट्रोल की घटती कीमत को अपना नसीब बताने वाले पीएम ने अब बढ़ती कीमत को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। आज महाराष्ट्र के परभणी में पेट्रोल 90 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है। देश में पेट्रोल इतना महँगा कभी नहीं हुआ था। आज डीज़ल के दाम में भी 14 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम इन दिनों तुलनात्मक रूप से काफी कम हैं। अभी कुछ दिनों पहले आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक भारत 15 देशों को 34 रुपये प्रति लीटर की कीमत पर पेट्रोल बेच रहा है और 29 देशों को 37 रुपये प्रति लीटर की कीमत पर डीज़ल।

सरकार कहती है कि पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें कम करना उसके बस में नहीं है, जबकि इसी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से बाहर कर दिया था। जो सरकार के बस में है, उसमें कोई ढिलाई नहीं हो रही। जैसे अख़लाक़ की हत्या के आरोपी के अंतिम संस्कार में केंद्रीय मंत्री का शामिल होना सरकार के बस में था।

भीड़ की हिंसा को बढ़ावा देते हुए झारखंड में हत्या के आरोपियों को माला पहनाने का काम करना राज्य मंत्री के बस में था। लेकिन किसानों का कर्ज़ माफ़ करना सरकार के बस में नहीं है। बेरोज़गारों को रोज़गार देना भी उसके बस में नहीं है। लेकिन पेट्रोल पंप पर ज़बरदस्ती पीएम की होर्डिंग लगवाकर महँगा पेट्रोल-डीज़ल ख़रीदते नागरिकों का मज़ाक उड़ाना उसके बस में है।

पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों के लगातार बढ़ने के कारण महँगाई भी बढ़ रही है; किसान बहुत मुश्किल से ट्रैक्टर के लिए डीज़ल ख़रीद पा रहे हैं; यातायात के साधन व फल-सब्जियाँ इत्यादि के दाम बढ़ते जा रहे हैं और सरकार के मंत्री बेशर्मी से कह रहे हैं कि ये हमारे नियंत्रण के बाहर है। जो सरकार देशवासियों का इतना भी भला नहीं कर सकती, उसे कुर्सी पर बने रहने रहने का कोई अधिकार नहीं है।

(जेेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)