हिंदी विरोध पर राजनीति में आने वाले करुणानिधि ने की थी तीन शादियां, 13 बार बनें विधायक

पेरियार से मतभेद के बाद साल 1949 में सीएन अन्नादुरई ने द्रविड़ मुनेत्र कषकम (द्रमुक) नाम की पार्टी का गठन किया, जिससे करुणानिधि भी शामिल हो गये।

New Delhi, Aug 08 : 5 बार तमिलनाडु के सीएम रहे एम करुणानिधि का मंगलवार शाम चेन्नई में निधन हो गया, वो ऐसे राजनेता थे, जो 80 साल के अपने राजनीतिक करियर में कभी भी चुनाव नहीं हारे। करुणानिधि के बारे में कहा जाता है कि उन्होने 14 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखा था, वो उस दौर में राजनीति में सक्रिय हो गये थे, जब पेरियार द्रविड़ आंदोलन के पुरोधा थे, वो हिंदी विरोधी आंदोलन के जरिये चर्चा में आए थे।

तीन शादियां
करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को तिरुवरुर जिले के तिरुकुवालाई गांव में हुआ था, उन्होने तीन शादियां की, पहली पत्नी का नाम पद्मावती, दूसरी दयालु और तीसरी रजति हैं, इनमें से पहली पत्नी पद्मावती का देहांत हो चुका है, उनके 4 बेटे और दो बेटियां हैं, एम करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के सीएम रहे, इसके साथ ही सबसे ज्यादा 13 बार विधायक बनने के उनके नाम रिकॉर्ड है।

हिंदी विरोधी आंदोलन से शुरुआत
जस्टिस पार्टी के अलागिरी स्वामी के भाषण से प्रभावित होकर करुणानिधि ने राजनीतिक जीवन में कदम रखा, तब उनकी उम्र महज 14 साल थी, वो हिंदी विरोधी आंदोलन से जुड़े, उन्होने हाथ से लिखकर ही मानवर निशान नाम का समाचार पत्र निकालना शुरु किया, फिर जब बीस साल के हुए तो ज्यूपिटर पिक्चर्स में बतौर पटकथा लेखक जुड़ गये, उनकी पहली फिल्म राजकुमारी खूब लोकप्रिय हुई, इसी बीच जस्टिस पार्टी के पेरियार इरोड वेंकटप्पा रामासामी और सीएन अन्नादुरई की नजर उन पर पड़ी। उन्होने करुणानिधि को पार्टी की पत्रिका कुदियारासु का संपादक बना दिया।

1956 में लड़ा पहली बार चुनाव
पेरियार से मतभेद के बाद साल 1949 में सीएन अन्नादुरई ने द्रविड़ मुनेत्र कषकम (द्रमुक) नाम की पार्टी का गठन किया, जिससे करुणानिधि भी शामिल हो गये, उन्होने मुरासोली नाम से अखबार निकालना शुरु किया, जो बाद में द्रमुक का मुखपत्र बन गया। अन्नादुरई ने 1956 में तिरुचि सम्मेलन में पार्टी को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला लिया, जिसके बाद करुणानिधि को तिरुचिरापल्ली जिले की कुलथलाई सीट से टिकट मिला और वो जीतकर विधानसभा पहुंचे।

द्रमुक ने अलग गणतंत्र का नारा दिया
अगले चुनावों के मद्देनजर द्रमुख ने दिसंबर 1961 में अपने कोयंबटूर सम्मेलन में ये घोषणा की, कि वो तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश को मिलाकर एक अलग गणतंत्र बनाने की दिशा में काम करेंगे, इस घोषणा के सहारे उन्होने 1962 विधानसभा चुनाव में 206 सीटों में 50 सीटें हासिल कर ली, इस चुनाव के बाद करुणानिधि को विधानसभा में डिप्टी स्पीकर चुना गया था।