2019 में 2014 दुहरा पाएंगे मोदी-शाह, चिंता बढाने वाले हैं ये 5 संकेत

टीवी चैनलों पर भी कई ओपिनियन पोल प्रसारित हो चुके हैं, जिसमें ये बताने की कोशिश की गई है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है या नहीं ?

New Delhi, Sep 06 : लोकसभा चुनान में अब सात-आठ महीने का समय रह गया है, बीजेपी और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरु कर दी है, टीवी चैनलों पर भी कई ओपिनियन पोल प्रसारित हो चुके हैं, जिसमें ये बताने की कोशिश की गई है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है या नहीं ? इसके अलावा 2019 में भी 2014 जैसी बंपर जीत बीजेपी को मिलेगी या नहीं, 2014 में बीजेपी को समाज के लगभग सभी वर्गो ने सपोर्ट किया था, लेकिन हालिया कुछ सर्वे आये है, जिससे निश्चित रुप से मोदी सरकार की बेचैन बढ सकती है। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार 2019 में सिर्फ 22 फीसदी एससी-एसटी वर्ग के वोटरों को समर्थन मिलेगा, जबकि जनवरी 2018 में ये आंकड़ा 30 फीसदी था, यानी सात महीने में 8 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह 24 फीसदी किसानों ने बीजेपी को अपनी पसंद बताया है, जबकि पहले ये 49 फीसदी था।

बीजेपी के खिलाफ बढ रहा है असंतोष
सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार 61 फीसदी लोगों ने माना, कि सरकार महंगाई पर लगाम लगाने में विफल रही है, जबकि 55 फीसदी लोगों का मानना है कि ये भ्रष्टाचार दूर करने में भी नाकाम रही। इतना ही नहीं 61 फीसदी लोगों का मानना है कि मोदी सरकार भी भ्रष्ट है, 64 फीसदी लोगों ने बीजेपी के शासनकाल में विकास को नकारात्मक बताया है, 57 फीसदी लोगों का मानना है कि मोदी सरकार रोजगार के वादे निभाने में फेल रही है। कुल मिलाकर बड़ी संख्या में लोग सरकार के काम-काज से असंतुष्ट हैं।

राजनीतिक गठजोड़ बड़ी चुनौती
पिछले एक साल में देश में सामाजिक-राजनीतिक समीकरण का तेजी से बदलाव हुआ है, जहां एक तरफ एनडीए का कुनबा सिकुड़ा है, वहीं विपक्ष पहले से मजबूत दिख रहा है, देश में जातिय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का दौर जारी है, इस लिहाज से राज्यवार आंकलन करें, तो लगता है कि 2014 के मुकाबले 2019 में स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। सबसे बड़ा राजनीतिक बदलाव यूपी में देखने को मिल सकता है। क्योंकि यहां बीजेपी से लड़ने के लिये दो बड़े क्षेत्रीय दल एक साथ मुकाबला करने के लिये तैयार हैं।

कर्नाटक-महाराष्ट्र में मिलेगी चुनौती
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें है, पिछली बार 22 सीटें अकेले बीजेपी जीती थी, जबकि 9 सहयोगी दल अपने नाम करने में सफल रहे थे, इस बार जदयू के साथ आ जाने से बिहार में स्थिति एनडीए के पक्ष में ही बताया जा रहा है, असली चुनौती कर्नाटक और महाराष्ट्र में मिल सकती है, क्योंकि कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेगी, तो बीजेपी के लिये उनसे पार पाना आसान नहीं होगा, पिछली बार यहां 28 में 17 सीटें मिली थी, उसी तरह महाराष्ट्र में पिछली बार शिवसेना साथ थी, लेकिन इस बार उद्धव ठाकरे ऐलान कर चुके हैं, कि अलग चुनाव लड़ेंगे। शिवसेना के अलग होने के परिणाम पर असर पड़ सकता है।

दक्षिण भारत में मिलेगी चुनौती
दक्षिण भारत के राज्यों केरल, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 102 सीटें है, लेकिन बीजेपी यहां सिर्फ 4 सीटें जीत पाई थी, इनमें दो आंध्र प्रदेश से हैं, 2014 में बीजेपी का टीडीपी के साथ गठबंधन था, अब वो गठबंधन भी टूट चुका है। यानी दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ बीजेपी का कहीं कुछ भी नहीं है, अगर दुबारा 2014 जैसी सफलता हासिल करना चाहते हैं, तो इन क्षेत्रों में भी बीजेपी को अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

पश्चिम बंगाल में चुनौती
पूर्वोत्तर के राज्यों में खासकर असम में बीजेपी का ग्राफ बढा है, 2014 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने 2 सीटें हासिल की थी, बीजेपी अमित शाह की अगुवाई में इस प्रदेश में जमकर मेहनत कर रही है, लेकिन 2019 में दो का आंकड़ा बहुत ज्यादा आगे बढने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं, क्योंकि माना जा रहा है कि टीएमसी और कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव में उतरेगी, हालिया सर्वे के अनुसार बीजेपी नंबर वन पार्टी हो सकती है, लेकिन पूर्ण बहुमत से दूर रह सकती है।