‘कांग्रेसी-लेफ्ट के पालतू सेकुलर-लिबरल गैंग की इसी रवैये से देश की जनता ने उन्हें रिजक्ट किया है’

मंदसौर की घटना पर अगर कांग्रेस पार्टी कैंडिल मार्च नहीं निकालती है तो इसका मतलब यही है कि तथाकथित लिबरल-सेकुलर गैंग जाति-धर्म-समुदाय देखकर मुद्दे उठाती है।

New Delhi, Jul 02 : फिर से एक बच्ची हैवानियत का शिकार हुई. इस बार इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुई है. मंगलवार को इस बच्ची के दादा ने उसे स्कूल छोड़ा था. स्कूल में छुट्टी हो गई लेकिन वो घऱ नहीं पहुंची. परिवारवालो ने उसे हर जगह ढूंढा. जब सूरज डूबने लगा तो परिवारवालों ने पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई. रात भर ये 8 साल की बच्ची कहां रही? इसके साथ क्या हुआ इसका पता तब चला जब बुधवार को मंदसौर बस स्टैंड के पीछे ये मासूम सी बच्ची घायल हालत में मिली. वो बेसुध पड़ी थी. वो लहुलुहान था. गर्दन पर गहरा घाव था. शरीर पर जगह जगह चोट के निशान थे. गाल पर के पास गहरा जख्म था मानों किसी जानवर ने उसे काटा हो.

इस नन्हीं सी बच्ची को देखते ही मजारा समझ में आ गया. इस बच्ची के साथ वही हुआ जो दिल्ली में निर्भया के साथ हुआ था. बच्ची का इलाज कर रहे डाक्टर्स ने बताया कि हैवानों ने बच्ची के सिर, चेहरे और गर्दन पर धारदार हथियार से हमला किया था.. इतना ही नहीं, उसके नाजुक अंगों को भीषण चोट पहुंचायी थी जिसे मेडिकल जुबान में “फोर्थ डिग्री पेरिनियल टियर” कहा जाता है. रॉड घुसेड़ देने की वजह से बच्ची की आंत बाहर आ गई. मेडिकल रिपोर्ट रिपोर्ट में साफ साफ लिखा है मासूम के साथ बलात्कार ही नहीं बल्कि दरिंदगी हुई है. गाल पर दांत से कांटने के निशान हैं. शऱीर पर एक दर्जन से ज्यादा जख्म हैं. आंत फटी हुई है और उसे गले को चाकू से रेता गया है. मतलब ये कि हैवानों ने अपने हिसाब तो इसे मार ही दिया था.

हैवानियत की ये दास्तां निर्भया कांड की पुनरावृत्ति है, लेकिन अफसोस इस बात से है कि मंदसौर की घटना पर दिल्ली के जंतर मंतर में कोई प्रदर्शन नहीं कर रहा. राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा इस बच्ची को न्याय दिलाने के लिए रात के अंधेरे में कैंडल मार्च नहीं कर रहे. जबकि कांग्रेस पार्टी ने आसिफा के लिए देश भर में हंगामा मचा दिया था. लेफ्ट-लिबरल गैंग ने दुनिया भर में इसका प्रचार किया. अच्छा किया. बलात्कार के खिलाफ आवाज उठाना हर इंसान का धर्म है. लेकिन सवाल ये है कि क्या बलात्कार को भी राजनीति के चश्मे से देखा जाएगा. वोट का नफा-नुकसान देखकर कैंडल मार्च निकाले जाएंगे. क्या हम इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि बलात्कारियों की जाति और धर्म देखकर ये फैसला करने लगे हैं कि विरोध करना है या फिर चुप्पी साध लेनी है?

कांग्रेस पार्टी, लेफ्ट, तथाकथित सेकुलर पार्टियां और लुटियन गैंग पर ये आरोप गलत नहीं लगता है कि ये लोग बलात्कार जैसे जघन्य मामले को भी राजनीति के चश्मे से देखते हैं. ये लोग मंदसौर की धटना पर इसलिए आंदोलित नहीं हैं क्योंकि जिन दो दरिंदों ने 8 साल की बच्ची के साथ हैवानियत का खेल खेला उनका नाम इरफान और आसिफ है. दरअसल, इन दोनों ने तीसरी क्लास में पढ़ने वाली बच्ची को स्कूल की छुट्टी के बाद अगवा किया और उसे एक सुनसान जगह पर ले गए. इरफान एक पुराना अपराधी है. इस पर कई मामले दर्ज हैं वहीं आसिफ छत की ढलाई का काम करता है. दोनों ने एक साथ मिलकर बच्ची को अगवा किया. रात भर एक सुनसान जगह पर हैवानियत का खेल खेलता रहा. घटनास्थल से पुलिस को बियर की बोतलें भी मिली है.

सवाल ये है कि इस 8 साल की बच्ची के लिए राहुल गांधी या यचूरी या दूसरे नेता कैंडिल मार्च क्यों नहीं निकाल रहे हैं? दिल्ली के मुख्यमंत्री का नाम इसलिए लेना सही नहीं है क्योंकि उससे अब कोई उम्मीद ही नहीं बची है. लेकिन, जब ये लोग असिफा के लिए सड़क पर उतर सकते हैं तो किसी गुड़िया या लक्ष्मी के लिए क्यों नहीं? अगर ये घटिया स्तर की राजनीति नहीं है तो क्या है? क्या आसिफा के लिए राहुल का कैंडिल मार्च महज एक संवेदनावहीन इवेंट था. मीडिया में चेहरा चमकाने के लिए किया गया एक ड्रामा था. काग्रेस की दलील है कि ये मामला मध्यप्रदेश का है इसलिए वहां की कांग्रेस इकाई इसका विरोध कर रही है. अगर कांग्रेस यही तर्क है तो आसिफा कौन से दिल्ली के रहने वाली थी? वो मामला भी तो जम्मू कश्मीर का था फिर दिल्ली के इंडिया गेट पर कैंडिल मार्च राहुल ने क्यों किया?

जेएनयू के वामपंथी कहां है? वैसे तो ये लोग बात बात पर जंतर मंतर चले आते हैं. सोशल मीडिया में प्रोपेडंगा करते हैं. लेकिन ये लोग मंदसौर की घटना पर चुप क्यों है? अब ये नारा क्यों नहीं लग रहा है कि ‘आसिफ-इरफान तुम हैवान हो’ बलात्कारी को सजा दो — जबकि इस घटना के विरोध में मंदसौर में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. नीमच में प्रदर्शन हो रहा है. लेकिन, दिल्ली के ‘प्रोफेशनल- प्रोटेस्टर्स’ इस तरह से बर्ताव कर रहे हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो. राहुल गांधी जैसे नेताओं के सलाहकार पता नहीं कौन है.. लेकिन कम से कम इतना तो बुद्धि होनी ही चाहिए कि अगर इन लोगों ने आसिफा के लिए कैंडिल मार्च किया तो 8 साल की मंदसौर की बच्ची के लिए भी आगे आना चाहिए. वर्ना ऐसा लगेगा कि आसिफा के लिए किया गया कैंडिल मार्च महज एक नौटंकी है.

देश की जनता इस तरह की नौटंकी से उब चुकी है. मंदसौर की घटना पर अगर कांग्रेस पार्टी कैंडिल मार्च नहीं निकालती है तो इसका मतलब यही है कि तथाकथित लिबरल-सेकुलर गैंग जाति-धर्म-समुदाय देखकर मुद्दे उठाती है. अगर बंगाल और केरल में मुसलमान मारा गया तो दिल्ली में हंगामा औऱ अगर किसी हिंदू की हत्या होती है तो ये सब छिप जाते हैं.. बलात्कारी अगर मुस्लिम या इसाई हो तो इनकी संवेदना मर जाती है लेकिन अगर गुनाहगार कोई हिंदू हो तो हंगामा खड़ा कर देते हैं. कांग्रेसी-लेफ्ट के पालतू सेकुलर-लिबरल गैंग की इसी रवैये से देश की जनता ने उन्हें रिजक्ट किया है. अगर ये नहीं सुधरे तो इनका गर्त में जाना निश्चित है.

(मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)