मधुबनी शेल्टर होम से लापता की गई लड़की गूंगी नहीं है ! इसे खुलासा ही समझ लीजिए

मुजफ़्फ़रपुर के शेल्टर होम से मधुबनी के शेल्टर होम तक पहुंचने के बीच गायब हुई लड़की का छुपा हुआ सच जान लीजिए।

New Delhi, Aug 12 : मधुबनी शेल्टर होम से लापता की गई लड़की गूंगी नहीं है! इसे खुलासा ही समझ लीजिए।कल कुछ और खुलासे और सवाल। आज इसे पढ़िए। जिन 11 अवयस्क लड़कियों को मुजफ़्फ़रपुर बालिका रक्षागृह से मधुबनी के शेल्टर होम में हटाया गया उनका ठीक-ठीक अता-पता क्यों नहीं चल रहा? जबकि पीड़ित लड़कियों को रक्षा गृह प्रशासन ने सुरक्षा और संरक्षण के नाम पर मुजफ़्फ़रपुर से मधुबनी ‘परिहार बालिका गृह’ शिफ़्ट किया था। इसमें वो लड़की भी थी, जिसने सबसे पहले हिम्मत दिखाई और सरगना ब्रजेश ठाकुर की उसकी छपी फ़ोटो से पहचान की।

पहले जो छन कर खबरें आई, उसमें कहा गया कि वह लड़की गूंगी है, बोल नहीं सकती। (माफ़ करियेगा मैं ‘गूंगी’ लिख रहा हूँ क्योंकि ऐसे पात्र चरित्र को आम लोग इसी तौर पर कहते बोलते हैं।) वैधानिक भाषा में उसे मुकवधिर या दिव्यांग कहने का सरकारी प्रावधान है। वैसे सरकारी प्रावधान तो ये भी है कि सच को सच और झूठ को झूठ कहा जाय पर ऐसा इस केस में हो नहीं रहा। सरकारी प्रावधान ये भी है कि देश के इस सबसे बड़े बलात्कार कांड की पीड़ित बच्चियों को पूरी सुरक्षा मिले। तब नहीं तो अब सही, उनकी सलामती की सरकार-प्रशासन और शेल्टर होम के संबंधित संचालक एनजीओ गारंटी करते।

दुखद कि ऐसा कुछ भी न हुआ और न हो रहा। ये तथ्य अब सार्वजनिक तौर पर पब्लिक डोमेन में सामने आ चुका है कि जो लड़कियां हैवानियत और उनके जिस्म के गिद्धभोज के बाद वहां से हटाई गयीं, उनकी हाज़िरी में गड़बड़ी है। और कोई इसकी जवाबदेही लेने को तैयार नहीं। कैसे और क्या है ये खेला, ये कहानी कल होगी, कल की रिपोर्ट का इंतजार करिये! फ़िलहाल मुजफ़्फ़रपुर के शेल्टर होम से मधुबनी के शेल्टर होम तक पहुंचने के बीच गायब हुई लड़की का छुपा हुआ सच जान लीजिए। *उस लड़की का नाम बेहद प्यारा है जैसे हिमालय की ऊँची और मनोहारी चोटियों में से एक। नाम नहीं उजागर करने की वैधानिक बंदिश है सो उसका नाम “ममता” रख लीजिये। *ममता गूंगी नहीं, बोलती है। बोलती तो है पर हकलाती है। पता चला है कि तब से वह ज़्यादा ही हकलाने लगी, जब से वह और उसकी सखियां यौनाचार का संगठित और निरंतर चलने वाला घिनौना खेल झेलने लगीं। *ममता की उम्र के बारे में सूत्रों से पता चला है कि वह तेरह साल उम्र की नाबालिग है। *यही वह ममता है जिसने मजिस्ट्रेट और पुलिस के सामने फ़ोटो देखकर होम मालिक ब्रजेश की उंगली रख कर पहचान की थी।

इतना ही नहीं, बताया जाता है कि उसके भीतर उस वहशी के प्रति घिन्न और गुस्सा ऐसा कि ममता ने उसकी तस्वीर पर सबके सामने ही थूक दिया था। खेलने की उम्र में शारीरिक और मानसिक यातना की शिकार ममता और उसकी सखियां! हमारी खोई हुई ममता इधर जबकि सारी मीडिया, सभी चैनल और सभी राजनैतिक दल इस्तीफ़ा-इस्तीफ़ा खेल रहे हैं, मधुबनी की ममता की सुध किसी को नहीं। जिस तरह का षड्यन्त्र और बचाव का खेल  मुजफ़्फ़रपुर महापाप में खेला जा रहा, ऐसे में सोचिये ज़रा उन ‘अपहचानी बच्चियों’ को बदल भी दिया जाय तो हमें, आपको या किसी को क्या पता चल पायेगा? क्या पता जो ममता अंतिम तौर पर गायब ही कर दी गई हो? क्या जाने ग़ायब बच्ची “ममता” ज़िंदा भी है कि नहीं? गरचे ज़िन्दा है तो किन हालात में है ? कहाँ है ? न कोई इसकी सुध ले रहा, न कोई आधिकारिक तौर पर उसके बारे में बता रहा!क्या उस बेनाम बेचेहरा लावारिस यतीम बच्ची के लिए कोई संविधान कोई न्याय कोई समाज नहीं ? है तो कोई कुछ उसके बारे में क्यों नहीं बता रहा?…उठिये…पूछिये…बचाइये महापाप की उस गवाह कड़ी को! बचाइये ममता को।… अपनी ममता । इस निर्भया को !बस इतना ही समझ लीजिए~

(रुपेश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)