‘पत्रकार अपने मंच से निजी खुन्नस निकाले, फिर कहे पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा है’

आपने अपने मंच की ताकत का इस्तेमाल उनके खिलाफ निजी लड़ाई लड़ने में किया और उन्हें अपनी ताकत का इस्तेमाल कर आपसे आपका मंच ही छीन लिया।

New Delhi, Aug 07 : सरकार के पास अगर ताकत है, तो वो अपनी ताकत का इस्तेमाल कर क्या किसी को भी चुप करा सकती है? नहीं करा सकती। कराती है, तो सरासर गलत है। लेकिन पत्रकार के पास अगर मंच है, तो वो अपने मंच का इस्तेमाल निजी खुन्नस के लिए कर सकता है? नहीं कर सकता। और करता है, तो वो भी पत्रकारिता नहीं कर रहा बल्कि सरकार से निजी लड़ाई लड़ रहा है। और हर लड़ाई की तरह आखिर में जीत उसी की होती है जिसके पास ज़्यादा ताकत होती है। और ये बताने की ज़रूरत नहीं कि सरकारों से ज़्यादा ताकतवर और कोई नहीं होता।

और जब सरकार अपनी ताकत का इस्तेमाल कर ऐसा करे, तो आप ये भी मत कहिए कि पत्रकारिता का गला घोंटा जा रहा है। क्योंकि पत्रकारिता करने वाले पसंदीदा नेता का इंटरव्यू लेने के बाद उसी से ये चर्चा नहीं करते कि आखिर में कौनसा हिस्सा रखा जाए, तो इंटरव्यू क्रांतिकारी हो जाएगा। अगर वो ऐसा करता है, तो वो पत्रकारिता नहीं कर रहा है बल्कि उस इंटरव्यू की आड़ में अपने पसंदीदा नेता को प्रमोट करता है। और ये मानकर चलिए अगर किसी का कोई पसंदीदा है, तो ऐसा भी कोई होगा जो उसे बेहद नापसंद भी होगा। पहले वाले मामले में बात उसी पसंद और नापसंदगी की है।

दूसरा, अगर किसी पत्रकार का रिश्तेदार भ्रष्टाचार के मामले में निशाने पर है, तो आप इसे व्यक्तिगत लड़ाई मत बनाइए। पत्रकार द्वारा सरकार की आलोचना करने और उसके प्रति ज़हर भरा होने में फर्क होता है। अगर आप ऐसी किसी व्यक्तिगत लड़ाई के चलते दिन-रात ज़हर उगलेंगे, तो भी आप अपनी पत्रकारिता को सरकार के खिलाफ निजी लड़ाई में बदल देंगे। और जैसा मैने ऊपर कहा कि हर लड़ाई में जीतता वही है जो ज़्यादा ताकतवर हो और सरकारों से ज़्यादा ताकतवर और कोई नहीं होता और वक्त आने पर उनसे ज़्यादा बेरहम भी कोई नहीं होता।

आपने अपने मंच की ताकत का इस्तेमाल उनके खिलाफ निजी लड़ाई लड़ने में किया और उन्हें अपनी ताकत का इस्तेमाल कर आपसे आपका मंच ही छीन लिया। यही इस कहानी का अंत है। फिर चाहे आपको ये अंत अनैतिक लगे या अलोकतांत्रिक, मगर इसे चुना आपने ही है।

(पत्रकार नीरज वधवार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)