कौन हैं बस्तर के गांधी, जिन्होंने CRPF के कोबरा कमांडो को छुड़वाने में मदद की?

कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास की नक्सलियों की कैद से सुरक्षित वापसी के पीछे धर्मपाल सैनी का बड़ा हाथ हैं, क्‍या आप जानते हैं इन्‍हें बस्‍तर का गांधी भी कहा जाता है ।

New Delhi, Apr 09: बीजापुर में कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मिन्हास को नक्सलियों के कब्जे से रिहा कराने में 90 बरस के स्वतंत्रता सेनानी धर्मपाल सैनी की बड़ी भूमिका मानी जा रही है । विनोबा भावे के शिष्य रहे सैनी को जनहित के कामों की वजह से बस्तर का गांधी भी कहा जाता है, स्‍‍थानीय लोग उन्‍हें प्‍यार और सम्‍मान से ताऊजी भी कहते हैं । जानें कैसे इन्‍होंने नक्‍सलियों से मध्‍यस्‍थता कर कोबरा कमांडों को सकुशल उनके घर पहुंचाया ।

घर लौटा कोबरा कमांडो
छत्‍तीसगढ़ के बीजापुर में सीमा पर 3 अप्रैल को नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बल के 24 जवान शहीद हो गए थे । इस हमले में 31 जवान घायल हुए । वहीं सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह लापता थे । दो दिनों बाद पता चला कि जवान को नक्सलियों ने अपने कब्‍जे में लिया हुआ है । इसके बाद से ही उसकी रिहाई के लिए जबरदस्‍त मशक्‍कत चल रही थी । कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इसके लिए कोशिश की लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी । इस बीच धर्मपाल सैनी सामने आए और नक्‍सलियों से बातचीत कर जवान को सकुशल रिहा करवाया ।

बस्‍तर से खास रिश्‍ता
धर्मपाल सैनी, बस्तर के गांधी यूं ही नहीं कहलाते । इसके पीछे उनका अ‍थक परिश्रम है । जिसकी शुरुआत साठ के दशक से शुरू होती है । सैनी बताते हैं कि उस दौरान उन्होंने बस्तर से जुड़ी एक खबर पढ़ी थी, जिसमें लड़कियों ने छेड़छाड़ करने वालों का जमकर मुकाबला किया था । उस समय वे विनोबा भावे के शिष्य हुआ करते थे । बस्‍तर के ऊर्जावन युवा शक्ति के लिए काम करने की इच्‍छा मन में लेकर उन्होंने अपने गुरु से बस्तर जाने की इजाजत मांगी । बताया जाता है कि विनोबा भावे ने उन्हें इस शर्त पर अनुमति दी थी कि वे अगले 10 सालों तक बस्तर से कहीं नहीं हिलेंगे । लेकिन बस्तर में सुविधाओं का अभाव भी उन्‍ळें डिगा नहीं पाया वे न केवल बस्तर में रहे, बल्कि वहीं के होकर रह गए ।

बच्‍चों को खेल की दी ट्रेनिंग
मध्यप्रदेश के धार जिले के धर्मपाल सैनी ने आगरा यूनिवर्सिटी से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था और शानदार एथलीट हुआ करते थे । बस्तर आने पर उन्होंने देखा कि यहां छोटे बच्चे भी कई किलोमीटर तक बगैर थके चलते हैं, इसके बाद वो बच्चों को खेलने के लिए ट्रेनिंग देने लगे । साल 1985 में पहली बार उनके आश्रम की बच्चियां स्पोर्ट्स कंपीटिशन में औपचारिक तौर पर शामिल हुईं, सालाना 100 स्टूडेंट्स अलग-अलग इवेंट में हिस्सा लेती और जीतती हैं । 90 बरस की उम्र पार कर लेने के बाद भी धर्मपाल सैनी बेहद एक्टिव हैं और खुद ही स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने वाली छात्राओं की ट्रेनिंग और डाइट का ख्याल रखते हैं।