किसान की हैसियत सरकार के सामने क्या है ? यह नारों या प्रचार सामग्री से न आंकें

किसानों ने आरोप लगाया कि तहसील प्रशासन किसानों को तो पांच-सात हजार की रिकवरी पर ही हवालात में डाल रही है, लेकिन बड़े बकायेदारों पर कार्रवाई करने से डर रहा है।

New Delhi, Jul 12 : किसान की हैसियत सरकार के सामने क्या है ? यह नारों या प्रचार सामग्री से न आंकें — इसकी बानगी कल कि एक घटना बता रहा हूँ जब एक किसान द्वारा ट्रेक्टर के लोन की कुछ किश्तें न चुकाने पर बैंक ने किसान की तरफ से साक्षी के रूप में दस्तखत करने वाले दुसरे किसान को ही हवालात में डाल दिया।

ट्रैक्टर के लोन की किश्त न चुकाने के मामले में तहसील में बंद किए गए एक किसान की हालत बिगड़ने पर किसानों ने जमकर हंगामा किया। हंगामा कर रहे किसानों की तहसीलदार राज बहादुर सिंह के साथ नोक झोंक भी हुई।

9 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद जिले के मोदी नगर के गांव शकूरपुर निवासी किसान धर्मवीर ने करीब पांच साल पहले बैंक से लोन लेकर एक ट्रैक्टर खरीदा था। धर्मवीर किश्त अदा नहीं कर पाया। बैंक द्वारा जारी की गई आरसी को लेकर तहसील प्रशासन ने धर्मवीर के न मिलने पर उसे लोन दिलाने में गवाह के रूप में हस्ताक्षर करने वाले शाहजहांपुर निवासी वृद्ध सुरेश पाल (63) को ही तहसील के हवालात में डाल दिया।
हवालात में पंखा व खिड़की न होने के कारण भीषण गर्मी के चलते सुरेश पाल की हालत बिगड़ गई। हालत बिगड़ने की सूचना पर तहसील में मौजूद किसानों ने हंगामा शुरू कर दिया। किसानों ने आरोप लगाया कि तहसील प्रशासन किसानों को तो पांच-सात हजार की रिकवरी पर ही हवालात में डाल रही है, लेकिन बड़े बकायेदारों पर कार्रवाई करने से डर रहा है। इसे लेकर किसानों की तहसीलदार से नोक झोंक भी हुईं।

इसी साल जनवरी में सीतापुर जिले के एक किसान के ट्रैक्टर लोन की रिकवरी एजेंटों ने किसान को अपना ट्रैक्टर सौंपने के लिए कहा, लेकिन किसान नहीं माना. किसान के ना मानने पर रिकवरी एजेंट ने उस पर ट्रैक्टर चलाकर उसे मौत के घाट उतार दिया. ज्ञानचंद के भाई ओमप्रकाश ने बताया कि कल कुछ रिकवरी एजेंट घर आये और जबरन ट्रैक्टर ले जाने लगे। ज्ञानचंद ने उन्हें रोकने की हरसम्भव कोशिश की. इसी दौरान वह ट्रैक्टर से नीचे गिर गया. आरोप है कि ट्रैक्टर चला रहे रिकवरी एजेंट ने ज्ञानचंद को कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.
यह खबर किसी मीडिया में मिलेगी नहीं, प्रायोजित खबरें, प्रायोजित संवेदना, प्रायोजित उपलब्धियां और किसान के हालात बद से बदतर।

(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)