New Delhi, Aug 07 : न जाने लोग अपनी सोच से इतर कोई बात सुनते ही गुस्सा क्यों होने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. लोग अपनी बात कहते थे दूसरे की बात सुनते थे, बहस भी करते थे लेकिन कोई सहमति न बने तो भी एक दूसरे को गाली दिए बगैर चुपचाप अपने अपने रस्ते निकल लेते थे. जब हम छोटे थे, कॉलेज के समय भी, कम्युनिस्टों खासकर नक्सलियों को चीन या रूस का एजेंट बताते हुए हमने लोगों को सुना है.
लेकिन तब लड़ाई सिर्फ कॉंग्रेसियों और वामपंथियों के बीच थी इसलिए कोंग्रेसी गाहे बगाहे ये आरोप लगाते दिख जाते थे, पर दबी जुबान में.
आजकल तो ग़ज़ब है. बीजेपी वाले लोग तो, कम्युनिस्टों को तो छोड़िये कोंग्रेसियों को भी देशद्रोही बोल दे रहे है – राजनीतिक विरोध मने देशद्रोह.
जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं किया, जो मुखबिरों की विरासत के लोग हैं वो आज बाकी सब को देशद्रोही करार दे रहे हैं और
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